24 साल की रिया दिल्ली में एक एनजीओ में काम करती है।
अपनी बहन के नक्शेकदम चलते हुए जैसे ही मेरी पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी हुई मैंने सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली संस्थाओं में काम ढूंढना और उनके लिए आवेदन करना शुरू कर दिया। बच्चों के अधिकारों पर काम करने वाली संस्था में 'फ़ील्ड कोर्डनिटर' के पद के लिए मेरा सेलेक्शन हुआ तो नई जॉब, बच्चों के लिए काम करने के ख्याल से ही मैं उत्साह से भर उठी।
ज्वाइनिंग वाले दिन अपना खाने का डिब्बा, पानी की बोतल अपने बैग में डाले और जोश के साथ ऑफ़िस पहुँची। वहाँ मेरा परिचय चार सहकर्मियों से करवाया गया जो कि दो लड़कियाँ और और दो लड़के थे। हमने एक दूसरे को परिचय दिया और काम शुरू करने की ट्रेनिंग साथ शुरू कर दी।
प्रस्ताव और अस्वीकृति
हम सभी को दो के गुट में बच्चों के सर्वे से काम करना था। दो में से एक विजय उस काम के लिए मेरा साथी था। ट्रेनिंग के दौरान हुई हमारी बातचीत से हम सभी एक दूसरे को अच्छे से समझने लगे थे और जानने लगे थे। इतने तनावपूर्ण और मुश्किल काम में साथ काम करते-करते खाना, खाना, हंसी -मज़ाक करना हम दोनों को ही बहुत मदद करता था। पता ही नहीं चला और एक महीना साथ गुज़र गया और अब तक हम सहकर्मी से दोस्त बन चुके थे।
एक दोपहर जब हम दोनों ब्रेक में चाय पी रहे थे विजय ने बोला 'रिया तुम मुझको बहुत अच्छी लगती हो या कह लो प्यार करने लगा हूँ'। मेरे मुँह से चाय में डूबा हुआ बिस्किट वापिस गिर गया और मैं एक दम हैरान रह गई। इसकी मुझे उम्मीद ही नहीं थी। मैंने बहुत असहज होते हुये कहा 'विजय माफ़ करना, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता, हाँ बिलकुल तुम्हारे साथ काम करना अच्छा अनुभव रहा है लेकिन प्यार जैसा मेरी तरफ से कुछ नहीं है’।
लेकिन शायद विजय कुछ और सुनने की उम्मीद में था। वो थोड़ा रुका और बिना कुछ कहे वहां से उठ कर चला गया। मैंने भी अपना काम ख़त्म कर घर का रुख लिया।
उत्पीड़न का सिलसिला
अगले कई दिन विजय ऑफिस नहीं आया। और जब ऑफ़िस आया तो उसने फिर से मुझसे यही बात कही कि मैं इस बारे में सोचूँ जिसमें उसने जोड़ते हुए कहा कि 'हम शादी कर सकते हैं, साथ रह सकते हैं फिर यहाँ साथ काम पर आया करेंगे ' इस बार मेरा जवाब बहुत मज़बूती और स्पष्ट रूप से गया।
मैंने उसे कहा कि वो यह सब बातें बंद करे वरना मुझे आगे अपना फ़ील्ड पार्टनर बदलने के लिए बात करनी पड़ेगी। साथ ही मैंने उसे एक बार फिर यह कहा कि मैं आख़िरी बार इस बारे में उससे बात कर रही हूँ और मैं उसे फिलहाल एक सहकर्मी या एक दोस्त से आगे कुछ नहीं मानती और अगर वो आगे ऐसी बात करता है तो मुझे मैनेजमेंट से इस बारे में बात करनी होगी।
उस दिन के बाद से मुझे विजय के बदले हुये तेवर के साथ फ़ील्ड पर जाने में असहजता होने लगी। मैं फिर भी अपने काम पर ध्यान लगाती और उसकी तरफ ध्यान देने से बचती। वो मुझे देख कर दिल टूटे हुए आशिकों वाले गाने गाता, अजीब क़िस्म के मैसेज भेजता। काम के बारे में करने या कुछ पूछने पर सीटी बजाता या जवाब नहीं देता। मेरे लिए चुप रहना और बर्दाश्त करना अब नामुमकिन हो चला था। मैंने उसे कहा कि यह बहुत ही गैर-ज़िम्मेदाराना, और बत्तमीज़ी से भरा हुआ व्यवहार है जिसके ख़िलाफ़ मैं आगे बात करुँगी और अब इन हालातों में उसके साथ काम नहीं कर सकती।
उसी शाम विजय हमारी टीम का दूसरा लड़का सोनू ऑफिस से घर निकलते समय मेरा पीछा करने लगे कुछ दूर जाने पर सोनू ने मुझे कहा रिया 'इतना घमंड ठीक नहीं’ और मुझे विजय को हाँ कर देनी चाहिए। मैं बहुत डर कर चुपचाप आगे बढ़ने लगी, अब विजय आगे बढ़ा और मेरा कंधा ज़ोर से दबा कर बोला कि ‘मैं तुझे बर्बाद कर दूँगा तुझे तेरी जगह बताऊँगा'।
मैंने उन दोनों को धक्का दिया और ज़ोर से चिल्लाया। वो दोनों शायद डर गए और वहां से निकल गये। मैंने जल्दी से एक कैब बुक की उसकी जानकारी अपने घर वालों को दी और रोते हुए अपने घर पहुँची।
मज़बूत क़दम की बारी
मैंने यह बात अपनी दीदी को बताई और रोते हुए कहा कि मैं अब वापिस काम पर नहीं जाऊँगी। दीदी ने मुझे शांत किया डरने की जगह उनका सामना करने और इस बारे में आगे लिख कर उचित कार्रवाई करने की सलाह दी।
दीदी की एक बात ने मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत दी। दीदी ने कहा कि अगर तुम अपने साथ हुए ग़लत के विरुद्ध खड़ी नहीं हो सकती तो किसी और के अधिकारों के लिए काम करने का कैसे सोचोगी!
अगले दिन मैंने मैनेजमेंट को एक ईमेल में जो कुछ हुआ लिखते हुए और विजय के जितने भी मोबाइल मेसेज थे संलग्न करके भेज दिए और एक उचित करवाई करने की प्रार्थना भी की।
मुझे एक दिन बाद उनका जवाब आया जिसमें उन्होंने मेरी शिकायत को आंतरिक शिकायत समिति के हवाले किया और मुझे बताया कि मेरी शिकायत 'कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न' के दायरे में देखी जाएगी। उन्हें मुझे उचित करवाई करने का आश्वासन और धैर्य रखने की सलाह दी।
मुझे मुख्य कार्यालय बुलाया गया, मुझसे हर तरह से पूछताछ की गई। लेकिन इस बीच आंतरिक शिकायत समिति सदस्यों ने कुछ बेहद अजीब सवाल भी किये जैसे-वहां और लड़कियाँ भी है तो यह आपके साथ ही क्यों हुआ! क्या आपको लगता है आपने उन्हें ऐसा करने का अवसर दिया वगैरा! जिनके जवाब में मैंने दलीद दी कि मुझे और लड़कियों का तो नहीं पता लेकिन मैंने यह बात आप तक पहुंचाई है जिसका जवाब उन लड़कों से माँगना उचित है कि उन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों किया! और कोई भी इंसान किसी को खुद के साथ रास्ते में रोक कर, काम करने की जगह पर शोषण, छेड़-छाड़ करने का अवसर नहीं देता ।
फ़ैसले की घड़ी
पूछताछ का सिलसिला चलता रहा, मेरे परिवार ने मेरा हौसला बनाए रखा। और मैंने न्याय पर अपना विश्वास।
अब उन लड़कों को और मुझे उस दिन एक साथ पूछताछ के लिए बुलाया गया। ऑफिस के बाहर प्रतीक्षा में वो दोनों अपना सिर झुकाए बैठे थे। उस दिन अंतिम फ़ैसला आना था। मुझसे पूछा गया की मैं क्या चाहती हूँ। मैंने कहा कि वो दोनों मुझसे लिख कर माफ़ी माँगे और यह सुनिचित किया जाये कि अगर यह दोनों इस संस्था के साथ काम जारी रखते हैं तो यह व्यवहार मेरे या किसी के भी साथ दोबारा न कर पायें।
मैनेजमेंट ने फ़ैसला सुनाया और मुझे कहा कि उन्होंने बहुत गहराई से इस मामले की जांच की है और उन्होंने इन लड़कों खास तौर से इस लड़के विजय को दोषी पाया है लेकिन किसी भी नज़र से सोनू ने जो किया उसको वो नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा 'हम इन्हे संस्था के साथ काम जारी रखने की अनुमति नहीं देते हैं। और भविष्य में इस संस्था के साथ काम करने के अधिकारों या यहाँ किए काम की आगे अनुशंसा करने से उन्होंने वंचित कर रहे हैं।’
संस्था ने मेरे उठाये गए कदम की प्रशंसा करते हुए मुझे बताया कि मेरे केस के बाद वो अबसे कर्मचारियों के व्यवहार पर नज़र रखेंगे और कोशिश करेंगे कि जो मेरे साथ हुआ किसी और के साथ उस ऑफ़िस में दोबारा न हो।
विजय और सोनू के माफ़ीनामे भले ही किसी पश्चाताप से नहीं मज़बूरी से मेरे नाम लिखे हों लेकिन मुझे उनको मिले दंड से संतुष्टि और ख़ुशी थी। और इस बात की भी संतुष्टि थी कि अपने साथ काम करने वालों का शोषण करने वाले इस ज़िम्मेदारी भरे पद पर अब नहीं है।
यह जॉब मैंने बहुत मेहनत से हासिल की थी। मुझे ख़ुशी थी की ज़रूरतमंद बच्चों के लिए काम करने की मेरी कोशिश अब बिना किसी डर और अफसोस के वापिस शुरू हो पायेगी।
रिया* ने ये कहानी लव मैटर्स इंडिया के साथ #It’sTimeToAct कैंपेन के अंतर्गत साझा की। इस कैंपेन का मकसद हिंसा या उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं द्वारा लड़ी गयी लड़ाइयों की कहानियों को सामने लाना है।
पहचान की रक्षा के लिए, तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है और नाम बदल दिए गए हैं।
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