क्रिसमस की रात और दो दिलों की कहानी
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क्रिसमस की रात और दो दिलों की कहानी

क्रिसमस की रात कबीर और अनन्या के बीच कुछ खास हुआ। ठंड की सर्द रातों में प्यार की गर्माहट थी और भी बहुत कुछ था…

वो क्रिसमस की रात थी। दिल्ली की सर्द हवा में भी कुछ नर्म सा घुला हुआ था। आसमान में सितारे टिमटिमा रहे थे और चर्च की घंटियों की आवाज़ दूर तक फैल रही थी। उसी रात, अनन्या और कबीर एक पुराने कैफ़े में आमने-सामने बैठे थे। एक-दूसरे से थोड़ा घबराए हुए, थोड़ा उत्सुक।

अनन्या और कबीर की मुलाक़ात एक साल पहले हुई थी। शुरुआत दोस्ती से हुई फिर लंबी बातें, रातों को मैसेज भेजना और वो धीरे-धीरे घुलता एक अनकहा-सा एहसास लेकिन जैसे-जैसे नज़दीकियां बढ़ीं, रिश्ते के सवाल भी आने लगे। प्यार तो था पर प्यार के साथ चाहत, शरीर की ख्वाहिशें और डर भी था। “अगर हम ज़्यादा चाहने लगे तो?” “अगर तुम बदल गए तो?” ये सवाल किसी एक के मन में नहीं, बल्कि दोनों ही तरफ थे। 

इसलिए दोनों ने एक-दूसरे को वक्त देने का सोचा। प्यार या रिश्तों में हड़बड़ाहट को जगह ना देते हुए क्योंकि वो कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते थे ताकि बाद में दोनों में से किसी को भी एक-दूसरे के करीब आने पर अफसोस हो। 

कबीर और अनन्या लगातार वीकेंड्स पर एक-दूसरे से मिलते, घंटों बातें करते और साथ में कहीं घुमने जाते और इसी दौरान एक-दिन दोनों ने कुछ पल अकेले में बिताने का फैसला किया इसलिए कबीर ने एक होटल रुम बुक किया। कबीर और अनन्या दोनों इस तरह से मिलने के लिए काफी उत्साहित थे लेकिन अनन्या के मन में कहीं ना कहीं एक डर की भावना थी क्योंकि ये पहली बार था, जब वो किसी लड़के के साथ किसी कमरे में अकेली होगी। इस बारे में अनन्या ने मन में ही सोचा, “मैंने कबीर को इस बारे में पहले भी बताया है कि मैं कभी किसी लड़के के साथ इतनी करीब नहीं हुई हूं। पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचेगा?” 

फाइनली मन में कई उलझनों के साथ अनन्या और कबीर एक-दूसरे के साथ होटल के कमरे में थे लेकिन अनन्या थोड़ी परेशान दिख रही थी और कहीं ना कहीं कबीर भी थोड़ा उलझा हुआ था कि शुरूआत कहां से और कैसे करे? इस दौरान सबसे पहले दोनों ने इधर-उधर की बातें की और धीरे-धीरे एक-दूसरे को छूने की कोशिश की लेकिन वैसी बॉन्डिंग महसूस नहीं हो रही थी कि तभी अनन्या और कबीर ने एक-साथ कहा, आज रहने देते हैं।

पहले एक-दूसरे के साथ थोड़ा और जान लें और एक-दूसरे के कंर्फोट जोन को समझ सकें, तब ऐसा कोई कदम आगे बढ़ाएंगे। अनन्या ने जब कबीर के मुंह से बातें सुनीं, तो उसे सबसे पहले विश्वास नहीं हुआ कि कोई लड़का इतना मैच्योर कैसे हो सकता है। उस दिन अनन्या के मन में कबीर के लिए इज्ज़त थोड़ी बढ़ गई थी। दोनों ने इस पर खुलकर बातें की, एक-दूसरे को दिल से समझने की कोशिश की और अपने रिश्ते और विश्वास को मजबूत किया। 

क्रिसमस की शाम को कबीर ने कहा, “मैं तुम्हें सिर्फ़ दिल से नहीं चाहता। तुम्हारी क़रीबी मेरे लिए मायने रखती है।” अनन्या ने नज़रें झुकाकर जवाब दिया, “मेरे लिए भी लेकिन मैं चाहती हूं कि ये सब भरोसे और इज़्ज़त के साथ हो।”

कैफ़े से बाहर निकलकर वे टहलते हुए कबीर के फ्लैट तक पहुंचे। कमरे में हल्की पीली रोशनी थी, बैकग्राउंड में धीमा सा कैरोल चल रहा था। उन्होंने एक-दूसरे को छुआ लेकिन जल्दबाज़ी नहीं की और कुछ पल में ही सबकुछ सामान्य हो गया। हालांकि उस पहले स्पर्श में सवाल भी था और इजाज़त भी।

उस रात उनके बीच सिर्फ़ शरीर नहीं मिले बल्कि डर और चाहतें भी साझा हुईं। अनन्या ने महसूस किया कि सेक्स सिर्फ़ इच्छा नहीं, बल्कि संवाद भी है। कबीर ने समझा कि प्यार का मतलब सिर्फ़ पाना नहीं, बल्कि सामने वाले की सोच का सम्मान करना भी है।

सुबह जब चर्च की घंटियां फिर बजीं, दोनों खिड़की के पास खड़े थे। बाहर बर्फ़ तो नहीं थी लेकिन शहर सजा हुआ था। अनन्या ने मुस्कुराकर कहा, “ये क्रिसमस मेरे लिए खास है क्योंकि आज मैंने खुद को और तुम्हें दोनों को थोड़ा और समझा।”

कबीर ने उसका हाथ थाम लिया और कहा, “शायद यही प्यार है, जहां दिल, शरीर और बातों के बीच कोई दीवार नहीं होती।”

क्रिसमस की उस सुबह, उन्हें एहसास हुआ कि रिश्ते परफेक्ट नहीं होते लेकिन अगर ईमानदारी, सहमति और प्यार हो, तो वो बेहद ख़ूबसूरत हो सकते हैं और यही उस क्रिसमस का सबसे बड़ा तोहफ़ा था।

 

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