मेरे ऑफिस में मेरे लिए ख़ास टॉयलेट भी है!
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मेरे ऑफिस में मेरे लिए ख़ास टॉयलेट भी है!

द्वारा Sonal Pradhan फरवरी 19, 05:28 बजे
जब सोनल, एक ट्रांसवुमेन, बैंगलोर में शिफ्ट हुई और उन्होंने एक नई कंपनी में जॉब करना शुरू किआ, तो उन्हें क्या पता था कि उसका एचआर न केवल उनके रहने के लिए घर ढूंढने में मदद करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि उनके पास इस्तेमाल करने के लिए जेंडर न्यूट्रल बाथरूम हो। उन्होंने राइज (RISE) जॉब फेयर के माध्यम से एलजीबीटीक्यू संवेदनशील कार्यस्थल पर नौकरी हासिल की और लव मैटर्स के साथ अपनी कहानी साझा की।

भुवनेश्वर की सोनल प्रधान एक ट्रांस महिला हैं। वह 247 पर काम करती है।

किसी ने मुझे नहीं समझा

जब मैं पैदा हुयी तब मेरा नाम सूरज रखा गया था। मुझे बचपन से ही लड़कियों के कपड़े पहनने और उनकी तरह दिखने का शौक था। बचपन का अल्हड़पन समझ के घरवालों ने नज़रअंदाज़ तो कर दिया लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ी होती गयी, मुझे मेरे चाल ढाल, पहनावे और हरकतों के लिए टोका जाने लगा। 

मैं 15 साल की थी जब मुझे एहसास हुआ कि मैं बाकी लड़कों जैसी नहीं थी। मुझे ना लड़कों के पहनावे सुहाते थे और ना ही उनकी तरह बर्ताव करना अच्छा लगता था। मैंने अपने माता-पिता को अपनी असल पहचान बताने का फ़ैसला किया। वह दौर मेरे लिए काफ़ी संघर्षपूर्ण था। ना मेरे माता-पिता को मेरी बातें समझ आ रही थी और ना ही मैं उनको समझ पा रही थी। ट्रांसजेंडर और एलजीबीटी (LGBT) का कांसेप्ट उनके लिए काफ़ी नया और पेचीदा था। शुरुवात में उन्हें लगा कि मुझे कोई दिमागी बीमारी हो गयी है जो वक़्त और इलाज़ के साथ ठीक हो जाएगी लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता गया, उन्हें मेरे बातों की गंभीरता का भी एहसास होने लगा पर फिर भी उन्होंने मेरा समर्थन नहीं किया।

मैं उस वक़्त को याद करती हूँ  जब मेरे माता-पिता ने मुझे कह दिया था की अगर मैं लिंग परिवर्तन कराती हूँ तो मुझे उनके साथ रहने की ज़रूरत नहीं। इस घटना से मैं डिप्रेशन में चली गयी थी और अपनी पढ़ाई को भी समय से पूरा नहीं कर पायी। इस सब के बावजूद मैंने कभी हार नहीं मानी और अपनी एक अलग पहचान बनाने में लगी रही। मैंने 2015 में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया जो कि दरअसल 2010 में हो जाना चाहिए था। 

नौकरी की खोज

ग्रेजुएशन के बाद मेरे संघर्ष का दूसरा चरण शुरू हुआ जब मैंने नौकरी की तलाश शुरू की। लेकिन हर बार बात मेरी पहचान पर आकर रुक जाती थी। ओडिशा की कोई भी कंपनी एक ट्रांसवुमन को नौकरी पर रखना नहीं चाहती थी। अगर कोई कंपनी राज़ी हो भी जाती तो सैलरी इतनी कम देती कि एक दिहाड़ी मज़दूर भी ना कर दे। जब किसी कंपनी ने मुझे योग्यता के लिए उनको रखना भी चाहा तो बाकी कर्मचारी मुझे अजीब तरीके से देखते। मुझे एक नौकरी भी छोड़नी पड़ी क्योंकि मुझे कोई आवास नहीं दिया गया था। नतीजा यह था की मुझे कही भी नौकरी नहीं मिली। 

फिर मैंने एक प्लास्टिक इंजीनियरिंग कॉलेज के एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में दाख़िला दिया जहाँ मुझे प्लास्टिक प्रोसेसिंग के बारे में सिखाया गया। चूकि मुझे कही भी नौकरी नहीं मिल रही थी, मैंने यह शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग प्रोग्राम करने का फैसला किया। ट्रेनिंग के दौरान मुझे लोगों से काफ़ी सहयोग और प्रशंसा मिली। छह महीने की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद मुझे वही दूसरों को ट्रेनिंग देने के लिए रख लिया गया। वह पहली ऐसी जगह थी जहाँ किसी को मेरी पहचान से कोई आपत्ति नहीं थी। 

परिवर्तन का समय

अपनी एक अन्य ट्रांसजेंडर साथी के ज़रिये मुझे प्राइड सर्किल के बारे में पता चला जो भारत का पहला और सबसे बड़ा LGBTI जॉब फेयर, राइज (RISE) को बेंगलुरु में आयोजित करने जा रहा था। उस ट्रेनिंग संस्थान में तकरीबन एक साल और आठ महीने काम करने के बाद मैंने बेंगलुरु आने का सोचा। मुझे हमेशा से भुवनेश्वर से बाहर किसी बड़े शहर में रहने और नौकरी करने की इच्छा थी जहां मुझे मेरी पहचान के साथ स्वीकारता मिल सके। जहां कोई भेदभाव ना हो और मुझे भी समान अधिकार मिल सके। राइज (RISE) मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। एक ऐसा जॉब फेयर जो सिर्फ हम जैसों के लिए ही हो, जहाँ सब जानते हो कि हम किस वर्ग और समुदाय से आते है और फिर भी हमें निष्पक्षता के साथ अपनाये तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है। 

वो पल मुझे आज भी याद हैं जब मुझे पहली अंतर्राष्ट्रीय कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव मिला था। इस जॉब फेयर ने न केवल मुझे एक अच्छी कंपनी में काम करने का अवसर बल्कि अपनी खुद की एक पहचान भी दिलाई है जो शायद यूँ मुमकिन ना होता। मुझे कई कंपनियों से नौकरी के प्रस्ताव आये, मैं काफ़ी लोगों से मिली, उनके बारे में समझा और जाना की सबकी अपनी एक संघर्ष की कहानी है। किसी को तो करना चाहिए था यह हमारे लिए प्राइड सर्किल ने किया।

जब मैं जॉब फेयर में गयी थी तो मुझे अंदाज़ा भी नहीं था कि यह मेरी ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख देगा। मुझे 247.ai में काम करते हुए अब पाँच महीने हो चुके है। मेरी कंपनी मुझे काफ़ी सपोर्ट करती है। मेरी कंपनी के HR की सिफारिश पर मुझे एक अच्छा पेयिंग गेस्ट भी मिल गया वरना लोग मुझे देख कर रहने की जगह देने से मना कर देते थे। जब लोग मुझसे मेरी पहचान और बदलाव के बारे में पूछते है तो मुझे उन्हें बताना अच्छा लगता है। मुझे यह सोच कर ख़ुशी होती है कि मैं पहली ट्रांसजेंडर हूँ जो उनके साथ काम कर रही है। मैं कभी यह नहीं सोचती कि मुझे उन लोगो से बात नहीं करनी चाहिए लेकिन इस बात के लिए तैयार रहती हूँ कि मुझे काफ़ी लोगों से नज़रअंदाज़ किया जायेगा। 

मेरे कंपनी ज्वाइन करने के बाद जेंडर न्यूट्रल बाथरूम से लेकर कॉमन एरिया तक में काफी परिवर्तन किये गए। यह देख कर अच्छा लगता है कि कंपनियां हमारे लिए इतना कुछ कर रही है। हमारे जेंडर या पहचान के बारे में न पूछ कर हमारे कौशल के लिए हमें नौकरियाँ दे रही है। आज मेरे -पिता मुझे सक्षम और अपने बलबूते पर खड़े देख कर खुश है। संघर्ष है और चलता रहेगा, उन्हें मुझे पूरी तरह अपनाने में भी वक़्त लगेगा पर मैं हार नहीं मानूंगी। एलजीबीटी होना इतना आसान नहीं। हम समाज से अपनी पहचान छुपाने के दौरान खुद को ही खो देते है और साथ ही अपने परिवार को भी। ऐसे में माता-पिता को बच्चों का सहारा बनना चाहिए। मेरे माता-पिता मुझे अपने पैरो पर खड़ा देख खुश है और जब भी में घर जाती हूँ वे प्यार और सम्मान देते हैं।  

प्राइड सर्किल RISE के दूसरे अध्याय को लेकर दिल्ली आ रहा है। RISE एलजीबीटी समुदाय के लिए भारत की सबसे पहली और बड़ी जॉब फेयर है जिसमे हर वर्ग और जाती के लोग बिना किसी एंट्री फ़ीस के आ सकते है। अगर आप एलजीबीटी समुदाय से है या किसी ऐसे को जानते है जो इस समुदाय से संबंधित है तो उन्हें जॉब फेयर के बारे में ज़रूर बताये! 

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