hijra story
Shutterstock/christinarosepix/तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है

'हम हिजड़ों को नहीं दे सकते'

द्वारा Umeza Peera जून 29, 05:34 बजे
कोरोनावायरस महामारी की दूसरी लहर में शिज़ु का ब्यूटी पार्लर बंद हो गया और उसकी नौकरी छूट गयी। उसके पास किराया देने, बिजली का बिल जमा करने या राशन खरीदने के भी पैसे नहीं बचे और इसलिए उसने भीख मांगने का निश्चय किया। उसे लगता है कि अगर वह ज़्यादा पढ़ी लिखी होती तो शायद वह भी अपने पार्लर के कस्टमर्स की तरह ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर पाती। उसने अपनी कहानी लव मैटर्स के साथ शेयर की।

शिज़ु , 22 वर्षीय ,मुंबई के एक ब्यूटी पार्लर में काम करती थी। 

खाली पेट रहना 

वह उमस और गर्मी से भरी जून की सुबह थी। मैं कमज़ोरी और भूख महसूस करती हुई उठी। कल ही हम सबने राशन और पैसे बचाने के लिए एक टाइम का खाना छोड़ने का निश्चय किया था। मेरी रूममेट्स रीमा, सायरा और करिश्मा अपने पेट पर पत्थर रख कर सोईं क्योंकि भूख से बेहाल हालत में सो पाना नामुमकिन था।

खाना हमेशा हमारे दिमाग में घूमता रहता। उस पर हम गर्मी के दिनों में बिना पंखे के सोते। हम बिजली बचाने की हर कोशिश कर रहे थे ताकि हमें बिल ना भरना पड़े। हम अपने मोबाइल फ़ोन को भी एक दिन छोड़ कर चार्ज करते। 

जबकि मेरी जान-पहचान के बहुत से लोग , ज़्यादातर मेरे कस्टमर , घर से काम करने का आनंद ले रहे थे, मेरे दोस्त और मैं घर पर ही फंसे हुए थे, बिना पैसे, नौकरी यहाँ तक कि बिना खाने क। 

उसी दिन सुबह कुछ सरकारी कर्मचारी हमारे क्षेत्र में आये और हमें सामाजिक दूरी बनाने और साबुन और सैनिटाइज़र आदि खरीदने का निर्देश दिया जबकि मेरे दिमाग और मन में सिर्फ और सिर्फ  राशन का ख्याल दौड़ रहा था। तभी, मेरे एक पड़ोसी ने बताया कि हमारे क्षेत्र में राशन बांटा जा रहा है। मैं सब कुछ छोड़-छाड़ कर उस तरफ भागी।

'हिजड़ों के लिए नहीं'

मेरे रूममेट्स और मैं कतार में खड़े थे, इस उम्मीद में कि अब अगले कुछ महीनों तक के गुज़ारे के लिए हमें खाना मिल जायेगा। आखिरकार जब हमारी बारी आयी, राशन बांटने वाली वह महिला रुक कर बोली, 'हिजड़े हो ना? हम तुमको नहीं दे सकते', यह सुन कर हमें बहुत बड़ा झटका लगा। 

हमारे अंदर बहस करने की ताकत नहीं थी और हम वहां तमाशा नहीं करना चाहते थे। हमें भूख लगी हुई थी और कमज़ोरी भी महसूस हो रही थी । हम वहां से यह सोच कर चुपचाप चले गए कि शायद ऐसा कोई नियम होगा। शायद इसलिए क्योंकि हम परित्यक्त हैं? मैनें सोचा। 

जबकि मेरे सामने ही हर ज़रूरतमंद व्यक्ति को मदद मिल रही थी, और एक तरफ हम थे, बिना किसी सहायता या भोजन के, घर वापस आते हुए। मुझे बहुत ही गुस्सा, चिढ़, भूख और दुःख सब एक साथ महसूस हो रहे थे। हम इस लॉकडाउन में कैसे गुज़ारा कर पाएंगे?

हम सब घर आये और बिना चीनी और दूध की चाय पी। मुझे हैरानी थी कि लोगों के लिए हमारे मुँह पर ना कहना कितना आसान है।

'काश मैनें पढ़ाई की होती'

लॉकडाउन से पहले मैं ब्यूटी पार्लर में एक सहायक के तौर पर काम कर रही थी। जिसकी वजह से मुझमें आत्मविश्वास था और मैं स्वतंत्र थी। मैं इस बात के लिए आभारी थी कि मेरी अम्माची (ग्रुप के मुखिया)ने मुझे पांच साल की प्राथमिक शिक्षा प्रदान की, इस बात पर ज़ोर डालते हुए कि हमारे मास्टरजी हमें घर पर ही पढ़ाने आएं।

काश मैं थोड़ा और पढ़ पाती। शायद तब मैं भी घर से काम कर पाती , बिलकुल उन लोगों की तरह जो हमारे ब्यूटी पार्लर में आते थे। आज अम्माची, जिन्होंने मुझे तब पाला जब मेरे परिवार ने मुझे बचपन में छोड़ दिया था,हमारे बीच नहीं रहीं। 

कोविड की दूसरी लहर हम पर भावनात्मक , मानसिक और आर्थिक रूप से भी भारी पड़ी। मैनें कभी नहीं सोचा था कि यह महामारी इतनी लम्बी चलेगी कि यह हमारी ज़िंदगी को इतना ज़्यादा मुश्किल बना देगी। हर दिन एक युद्ध की तरह लगता है। हर सुबह उठने के बाद हम यह सोचते हैं कि आज गुज़ारा कैसे होगा- क्या खाएंगे, कैसे कमाएंगे। 

मैं अपने मकान मालिक की भी बहुत आभारी हूँ, जिन्होंने हमारी स्थिति पर दया दिखाते हुए तीन महीने का किराया नहीं लिया। मगर यह ज़्यादा चल नहीं पायेगा। पार्लर की मालिक ने मुझे कोई वेतन नहीं दिया है। अब वह कहती है कि उसके पास पार्लर चलाने के लिए भी पैसे नहीं हैं।

भीख मांग कर गुज़ारा 

मेरे रूममेट्स, जो शादियों पर नाचते और भीख मांगते थे, उन्होंने मुझे अपने साथ भीख मांगने के लिए कहा। 

हमारे क्षेत्र में कोई भी हमें काम देने के लिए तैयार नहीं है. लोग सोचते हैं कि हम गंदे हैं और कोरोना वायरस के कैरियर हैं। मैंने निश्चय किया कि मैं बाहर जा कर भीख मांगूंगी पर जब मैं ट्रेन में भी भीख मांगने जाती हूँ , लोग हमारे साथ बहुत अजीब सा व्यवहार करते हैं। भीख मांगने से जो पैसे मिलते हैं वे खाना खाने या किराया देने के लिए बहुत कम होते हैं। 

कभी कभी मुझे लगता है कि काश मैं ट्रांसवूमन नहीं होती और अपनी असली पहचान छुपा लेती। बहुत लोग सोचते हैं कि हम शापित हैं। और जिस तरह से चीज़ें हो रही हैंअब मुझे लगता है, शायद हम हैं।

यूँ तो 2018 में समलैंगिक संबंधों को भारत में वैध करार दिया गया, भारत के LGBTQIA + समुदाय की मुश्किलें पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुई हैं। अभी बहुत से मुद्दे हैं जहां उन्हें विषमलैंगिक और सिजेंडर लोगों के मुकाबले आये दिन भेद-भाव और मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। उनके लिए लड़ाई अभी जारी है। भारत के LGBTQIA + समुदाय को अब भी विवाह, गोद लेने, बीमा, विरासत, सामाजिक स्वीकृति के साथ-साथ आजीविका जैसे मुद्दों पर समान अधिकारों के लिए संघर्ष करना पडता है। अंतर्राष्ट्रीय  प्राइड मंथ 2021 को चिह्नित करने के लिए और उनके इस संघर्ष को उजागर करने के लिए, लव मैटर्स इंडिया जून में  कहानियों की एक श्रृंखला प्रकाशित करेगा। पढ़ें और अपने कमैंट्स ज़रूर शेयर करें - #JungJaariHai

गोपनीयता का ध्यान रखते हुए, तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है।

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