Imran story
Shutterstock/HBRH/तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है.

‘ज़िन्दगी जी नहीं, काट रहा हूँ’

द्वारा Imran Khan जून 2, 03:20 बजे
'जो लोग खुद को 'सामान्य' कहते हैं, उनकी पत्नी या पति के साथ-साथ बच्चे भी होते हैं। लेकिन हम कहां जाएं? हमारे केवल कुछ दोस्त थे, और वे भी चले गए ’, इमरान ने लव मैटर्स को बताया कि कैसे कोरोना वायरस महामारी ने उन्हें और एल.जी.बी.टी समुदाय के और लोगों को प्रभावित किया है।

30 साल के इमरान खान दिल्ली में रहते हैं।

हमेशा से ही लॉकडाउन 

लॉकडाउन होना हमारी नज़र में कोई नई बात नहीं। हमारे लिए ये लॉकडाउन हमेशा से मौजूद रहा है। हमेशा से हम अपना रोजगार ढूंढते आ रहे हैं। मेरा सपना था मैं टीचर बनूं। जिसके लिए मैंने दिन रात एक कर दिए। सब कुछ होने के बाद मैंने स्कूलों में जॉब अप्लाई करना शुरू किया। 

ओखला के मशहूर स्कूल में मुझे 2016 में नौकरी मिली। प्रिंसिपल ने मेरा इंटरव्यू लिया और मुझे नौकरी पर रख लिया गया। तीन दिन तक मेरी ट्रेनिंग हुई और मैं अपने सीनियर टीचरों की उम्मीदों पर खरा उतरा। वहीं जब इंचार्ज साहब ने मुझे देखा तो उन्होंने मुझसे छूटते ही बोला आप मेरे रूम में आइए।

मैं गया और उनके प्रश्न से मैं परेशान हो गया। उन्होंने सवालों की बौछार कर दी, 'क्या आप गे हैं? आपकी बोली कुछ  औरतों जैसी है। आप टीचर क्यों बने? आप फ़ैशन डिज़ाइनर, मीडिया इन सब में जाते। आपके ऐसे बर्ताव से बच्चों पर गलत असर पड़ेगा।' मैंने उनसे कहा सर मैं तीन दिन तक ट्रेनिंग कर चुका हूं। मुझे मेरे सीनियर्स ने कंसीडर कर दिया है और मैं खुश हूं कि बच्चों को मेरा पढ़ाया हुआ समझ आ रहा है। इसके बाद आग बबूला होकर उन्होंने मुझे साफ इंकार कर दिया। 

नाईट शिफ्ट

इस सब से निराश और तंग आकर, मैंने एक कॉल सेंटर में नौकरी ले ली। वहां काम करने के मेरे अनुभव ने मुझे भावनात्मक और शारीरिक दोनों तरह से प्रभावित किया। 

मुझे अब भी नहीं पता कि समलैंगिक होने का मतलब यह था कि हम सेक्स के भूखे थे। गार्ड से लेकर मेरे सहकर्मियों तक ने मेरा बहुत मज़ाक उड़ाया, मुझ पर टिप्पणियां करी। मैं समलैंगिक होने के लिए खुद से नफरत करने लगा। हमारे काम को कम करके आंका जाता है, लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं और उन्हें लगता है कि हम हमेशा सेक्स के लिए उपलब्ध हैं। मेरे जैसे और भी कई लोग हैं जिन्होंने इसे अपनी किस्मत ही मान लिया है। उन्हें इस तरह से मजबूर किया जाता है कि उन्हें कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझता।

जब मैं इसे और नहीं ले सका, तो मैंने अपनी नौकरी छोड़ने और घर पर बैठने का फैसला किया। मैंने कुछ बच्चों को घर पर ही ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और इससे अपना खर्चा निकाला। घर से काम करना एक तरह से मेरे लिए बाहर की दुनिया से बातचीत बंद करने का एक तरीका था क्योंकि मैं किसी भी अप्रिय टिप्पणी से बचना चाहता था। ट्यूशन लेते हुए मैंने अपने काम को इस तरह से प्लान किया कि मुझे बाहर बिल्कुल भी नहीं जाना पड़े। मैंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, जो लोगों के ताने सुनने से कहीं बेहतर था। इससे मुझे खाना और दवाओं के लिए पर्याप्त पैसा कमाने में मदद मिली। 

फिलहाल कोरोना के बाद से हालात अच्छे नहीं रहे। सभी ने बच्चों के ट्यूशन छुड़वा लिए। मेरे पास आय का बस वही साधन था।

बद से बदतर 

मौजूदा हालात में हम सभी पर दोहरी मार पड़ी है। पहले हालात बदतर थे और अब और भी ज़्यादा बदतर हो गए। पहले बच्चों को पढ़ा कर कुछ पैसे कमा लेता था अब लॉकडाउन के बाद वो भी छिन गए। कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि रात को भूखा सोना पड़ता है। दूध या दूध से बनी चीज़ों का इस्तेमाल मैंने आख़िरी बार फरवरी 2020 में किया था। 

अब कहीं राशन बंट रहा होता है तो वो ही मिल जाए तो बहुत गनीमत होती है। 

मैं शारीरिक रूप से कमजोर महसूस करता हूं। मेरे पास जीवित रहने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है। यही हकीकत है। 

मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से संघर्ष कर रहा हूं। मेरी आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद, मेरे मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ा। परिवार के बाहर के लोगों के साथ मेरे कुछ ही संबंध हैं। इनमें से कुछ ने दिल्ली छोड़ दिया, जबकि अन्य जो आसपास थे, उन्होंने उन्होंने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया।

हर किसी के पास कोई न कोई होता है। जो खुद को 'सामान्य' कहते हैं, उनकी पत्नी या पति के साथ-साथ बच्चे भी होते हैं। उनका एक परिवार है। लेकिन मैं कहाँ जाऊँ?  

रोज़गार भी, रिश्ते भी 

बचपन से ताने सुनते सुनते वैसे ही खुद को चारदीवारी में समेट लिया ऊपर से ये कोरोना और लॉकडाउन। सभी अक्सर मेरे रोने और कमज़ोर पड़ने पर मुझे यही समझाते आए की 'इमरान खुद को मजबूत बनाओ, स्ट्रांग बनो। इमोशनल मत रहो।' मेरे पास मज़बूत होने के लिए एक बेहतर बचपन और परवरिश की ज़रूरत थी। मुझे इनमें से कुछ नहीं मिला। 

मगर मेरे को खुद के अंदर कोई कमी नज़र नहीं आती। कहीं न कहीं मां की गोद की और पापा के आगोश की ज़रूरत पड़ती है। हम चाहे जितने भी बड़े क्यों न हो जाएं। जब हमारे पास ऐसा कोई मौजूद नहीं होता तो हम दूसरों में अपना सहारा ढूंढने लगते हैं। कोरोना काल ने मुझसे मेरा रोजगार तो छीना, साथ ही ऐसे रिश्ते भी दूर कर दिए जिनके साथ से मुझे ताकत महसूस होती थी। कोई ऐसा कंधा होता था जहां सिर रख कर हम रो सकते थे। फिलहाल मैं ज़िन्दगी जी नहीं रहा, काट रहा हूँ।  

यूँ तो 2018 में समलैंगिक संबंधों को भारत में वैध करार दिया गया, भारत के LGBTQIA + समुदाय की मुश्किलें पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुई हैं। अभी बहुत से मुद्दे हैं जहां उन्हें विषमलैंगिक और सिजेंडर लोगों के मुकाबले आये दिन भेद-भाव और मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। उनके लिए लड़ाई अभी जारी है। भारत के LGBTQIA + समुदाय को अब भी विवाह, गोद लेने, बीमा, विरासत, सामाजिक स्वीकृति के साथ-साथ आजीविका जैसे मुद्दों पर समान अधिकारों के लिए संघर्ष करना पडता है। अंतर्राष्ट्रीय  प्राइड मंथ 2021 को चिह्नित करने के लिए और उनके इस संघर्ष को उजागर करने के लिए, लव मैटर्स इंडिया जून में  कहानियों की एक श्रृंखला प्रकाशित करेगा। पढ़ें और अपने कमैंट्स ज़रूर शेयर करें - #JungJaariHai

गोपनीयता का ध्यान रखते हुए, तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है।

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