20 साल के विवेक एक स्टूडेंट हैं और दिल्ली के समलैंगिक समुदाय में काफ़ी सक्रिय हैं।
जितनी जानकारी उतनी ही समझ
दिल्ली में सर्द सोमवार की एक शाम थी। कॉलेज से लौटकर फ्रेश होने के बाद अभी मैं अपने कमरे में हल्की नींद ले ही रहा था कि मेरा फोन बजा। फोन पर मेरे अंकल थे। उन्होंने मुझसे बात करने के बाद मम्मी को फोन देने को कहा। मैं मम्मी को फोन देकर वापस सोने चला गया।
कुछ मिनटों बाद ही मम्मी की जोर जोर से रोने की आवाज सुनायी दी। मैं घबरा गया। मैंने बाहर आकर जो नज़ारा देखा वह किसी भयावह सपने से भी ज़्यादा डरावना था। मेरे मम्मी पापा एक साथ बैठे कर मेरा इंस्टाग्राम देख रहे थेI एक दम से माहौल में चुप्पी छा गयी थीI इतनी खामोशी कि मेरे दिल की धड़कनें भी मुझे रेलगाड़ी की आवाज़ जैसे लग रही थीI
मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उसका फायदा भी नहीं होने वाला थाI मेरी माता पिता ने अपने मन में एक कहानी बुन ली थी और अपने हिसाब से शायद एक निर्णय पर भी पहुँच गए थेI मेरी किसी भी सफाई से अब कुछ भी न यही बदलने वाला थाI
मेरे मम्मी पापा कभी सोशल नेटवर्किग साइट्स चेक नहीं करते थे। इसलिए पिछली रात अपने ब्वॉयफ्रेंड समीर के साथ कॉफी डेट की फोटो पोस्ट करते समय मैंने इस बारे में सोचा तक नहीं था। अंकल से फोन पर बात करने के बाद मेरी मम्मी ने मेरा इंस्टाग्राम एकाउंट और मेरे फोन की फोटो गैलरी चेक की।
बचाव के लिए पुलिस बुलानी पड़ी
मैंने अपने लिए इतनी गालियां और ऐसे अपशब्द अपने मम्मी पापा से कभी नहीं सुने थे। मेरी मम्मी ने मुझसे कहा कि तुम हमारे लिए मर चुके हो। मुझ पर चिल्लाने और मेरी बेइज़्ज़ती करने के बाद भी उनका गुस्सा कम नहीं हुआ था। वो दो उसके बाद शराब पीनी बैठ गए थेI अगर वो उन्होंने अपना गुस्सा कम करने के लिए था तो मुझे उसका कोई फायदा नज़र नहीं आ रहा था क्यूंकि जैसे जैसे रात बढ़ती जा रही थी, उन दोनों का पारा भी बढ़ रहा थाI मैं खुद को बहुत असुरक्षित महसूस कर रहा थाI उनकी बातों से लगा कि वे मुझे पीट पीट कर अधमरा करने की तैयारी में थे। इसलिए उस वक्त मैं अपने को बचाने के लिए जो कर सकता था वो मैंने किया। 100 नंबर पर फोनI
इसके बाद मैं दूसरे कमरे में चला गया। वे कुछ भी करने की कोशिश करते तो मैं अंदर से सिटकनी लगा देता। लेकिन तब तक पुलिस आ गई और अब परिस्थितियां मेरे पापा के पक्ष में नहीं थी। वे नशे में थे और मुझे पुलिस के सामने ही ना सिर्फ गाली दे रहे थे बल्कि मारने की भी कोशिश कर रहे थेI
पुलिसकर्मी ने मुझसे बात की और मेरे पिता को कोने में ले जाकर उन्हें उनके इस व्यवहार के लिए फटकार लगायी और फिर छोड़ दिया। उन्होंने मेरे साथ ऐसा व्यवहार करने की वजह नहीं पता थी और ना ही उन्होंने जानने की कोशिश कीI इसलिए बात सिर्फ़ यहीं तक रह गई कि मेरे पापा ने नशे में आकर मुझे डराया धमकायाI मुझे नहीं मालूम कि यदि पुलिस वालों को पता चलता कि इस सब का कारण मेरा समलैंगिक होना था तो वे मेरे पक्ष में होते भी या नहीं।
इस रात की सुबह नहीं
वो मेरी जिंदगी की सबसे लंबी रात थी। एक एक सेकेंड पूरे दिन के बराबर लग रहा था। मैं काफी देर तक मां का रोना-धोना और पिता की गालियां सुनता रहा। मैं अपने कमरे में अकेला, डरा सहमा, भूखा प्यासा बैठा रो रहा था। मुझे लग रहा था इस रात की कभी सुबह नहीं होगी। मैंने पूरी रात उनके सोने या मुझे बाहर आने के लिए कहने का इंतज़ार किया, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
कहने की ज़रूरत नहीं है कि मैं उनसे बिल्कुल अलग हो गया। वे मुझसे रुखेपन से बात करने लगे। अब मैं कहीं आने जाने और अपनी अन्य ज़रूरतों के लिए अपने इंटर्नशिप के पैसे पर निर्भर था। काफ़ी समय बीतने के बाद भी चीजें बेहतर नहीं हुईं। मैं अपनी इंटर्नशिप को बदलकर जॉब में आ गया। मेरे माता पिता ने मुझे जिद छोड़कर एक सामान्य पुरुष बनने के लिए मनाने की कोशिश की। काश मैं उन्हें समझा पाता कि मैं जो हूं उसमें मैं कितना सामान्य महसूस करता हूं।
चूंकि मैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं था। इसलिए मेरे पास अपने माता पिता के साथ रहने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। मैंने धैर्यपूर्वक वह सब सहा जो मैं सह सकता था। मैं इस उम्मीद में था कि एक दिन उनका नज़रिया बदलेगा लेकिन मैं ग़लत था।
मेरी मां ने मुझे जला दिया
इस दौरान मेरी मां रोज मुझपर चिल्लाती रहीं और एक दिन उन्होंने मुझे खाना बनाने वाले गर्म चिमटे से जला दिया। मैं बचने के लिए भागा और दरवाजा बंद कर लिया। जलनी की पीड़ा उतनी दर्दनाक नहीं हो रही थी जितना यह एहसास कि मेरे माता पिता मुझे समझ नहीं पा रहे हैंI मैंने अपने दो दोस्तों को फोन किया जिन्हें मेरी स्थिति के बारे में मालूम था और उनसे पूछा कि क्या मैं उनके यहां आ सकता हूं। उन्होंने हामी भर दी। मैंने बैग में अपने कपड़े, पहचान पत्र और ज़रूरी कागज़ात रखे, कैब बुक की और घर से निकल गया। उस दिन के बाद मैंने पीछे मुड़कर अभी तक नहीं देखा।
कुछ दिन बीतने के बाद मैंने अपने ऑफिस के पास ही किराए पर घर ले लिया। मेरे माता पिता ने मुझे कई बार फोन किया लेकिन मैंने कोई ज़वाब नहीं दिया। अभी यह फैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि आगे क्या करना हैI जल्दीबाजी के कारण कई बार प्लान खराब भी हो जाते हैं। किसी सस्ते कॉलेज में पत्राचार कोर्स के लिए मुझे अपना कॉलेज कोर्स छोड़ना भी पड़ सकता है। हालांकि मुझे अपने फ़ैसले पर अफ़सोस नहीं है। मैंने वही किया जो मुझे अपने बचाव के लिए करना चाहिए था। दुःख बस इसी बात का है कि काश इस सब नहीं होताI
*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल किया गया है।
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