हिजड़ा - एक समुदाय और व्यक्तित्व
हिजड़ा को आमतौर पर जन्म से ही पुरुष माना जाता है जबकि इनकी लैंगिक पहचान उनके जन्म के समय निर्धारित लिंग के अनुकूल नहीं होती है। यही कारण है कि हिजड़ा समुदाय में ट्रांस महिलाएं भी शामिल रहती हैं। ये ट्रांस महिलाएं सामान्य औरतों की तरह कपड़े पहनकर बच्चे के जन्म, शादी समारोह, मृत्युशोक जैसे कई कार्यक्रमों में पहुंचती हैं जो इनकी रोजी रोटी का मुख्य माध्यम है।
हिजड़ा समुदाय ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो विशेष कर्मकांडी परंपराओं, संस्कृतियों और वैकल्पिक पारिवारिक संरचनाओं को मानते हैं। यहां तक कि ज़रूरत पड़ने पर एक दूसरे को भावनात्मक और सामाजिक सहयोग भी प्रदान करते हैं।
सभी ट्रांस लोग हिजड़ा नहीं होते
यहां यह बताना बेहद ज़रुरी है कि सभी ट्रांस लोग, विशेष रूप से भारत में ट्रांस महिलाएं हिजड़ा या हिजड़ा समुदाय का हिस्सा नहीं होते हैं। ये सिर्फ़ तभी होता है जब वे इस समुदाय में शामिल होना चाहते हैं और समुदाय उन्हें स्वीकार करता है। उसके बाद उन्हें हिजड़ा कहा जाता है। इसमें शामिल होने के लिए कभी कभी व्यक्ति को इस समुदाय के नसबंदी जैसे कर्मकांड से भी गुज़रना पड़ता है।
हिजड़ा समुदाय को घराना और हवेली में बांटा गया है। प्रत्येक हवेली का संचालक एक नायक होता है और बहुत से हिजड़े इन घरानों और हवेलियों में एक साथ रहते हैं। इनके बीच मातृवंशीय रिश्ता होता है और वे गुरु शिष्य की परंपरा का काफी दृढ़ता से पालन करते हैं। हिजड़ा समुदाय में नए व्यक्ति का प्रवेश किसी वरिष्ठ महिला की देखरेख में होता है और वही उसे समुदाय के नियम और तरीकों को सिखाती है।
अन्य नामकरण
‘किन्नर’ शब्द का प्रयोग भी इसी समुदाय के लिए किया जाता है लेकिन इससे जुड़े नकारात्मक अर्थों के कारण इस इस शब्द का प्रयोग बंद कर दिया गया है। यह उन पुरुषों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें नसबंदी कराने के लिए मजबूर किया जाता है।
कोठी उन पुरुषों को कहा जाता है जिनके हाव भाव महिलाओं जैसे होते हैं। वे खुद को ट्रांस नहीं मानते हैं और हिजड़ा समुदाय के विपरीत किसी ख़ास जगह पर एक साथ नहीं रहते हैं।
हाशिए का इतिहास
हिजड़ा समुदाय का उल्लेख कई प्राचीन पांडुलिपियों में किया गया हैI मुगल दरबार में तो इन्हें सत्ता में रखने तक का प्रमाण मिलता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हिजड़ा समुदाय को ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर नहीं रखा गया और बहिष्कृत नहीं किया गया।
हिजड़ा समुदाय को उनके अधिकारों से तब वंचित किया गया जब औपनिवेशिक सरकार ने उन्हें 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम के तरह अपराधी की श्रेणी में शामिल किया। औपनिवेशिक सरकार उन्हें अपराधियों के रूप में देखती थी और उनकी आबादी को ख़त्म करना चाहती थी।
हिजड़ा समुदाय को तीसरे लिंग के रूप में आधिकारिक तौर पर 1994 में मतदान का अधिकार मिला और सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में हिजड़ा और ट्रांस लोगों को तीसरे लिंग के रूप में पहचान की मान्यता दी। इसका मतलब यह था कि कागज पर कानूनी मान्यता प्राप्त करने के अलावा वे कॉलेजों और सरकारी नौकरियों में विशेष आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
हिजड़ा समुदाय के कई सदस्य महत्वपूर्ण कार्यालयों में काम कर रहे हैं। जैसे मनाबी बंधोपाध्याय को पश्चिम बंगाल में एक सरकारी स्कूल में प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया। मधु बाई किन्नर और शबनम मौसी महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्यालयों के काम देख रही हैं।
चुनौतियां और भी हैं
हिजड़ा समुदाय को अभी भी कई भेदभावों का सामना करना पड़ रहा है। चूंकि कई जगहों पर उनका महत्व घट रहा है जिसके कारण यह समुदाय भीख मांगने और यौन धंधों में तेजी से शामिल हो रहा है। ये लोग लंबे समय से हिंसा की घटनाओं का सामना करते आ रहे हैं लेकिन अभी भी नौकरियां पाने की कोशिश में लगे रहते हैं ताकि उन्हें सही वेतन और इज्जत प्राप्त हो सके। इसके अलावा उन्हें शारीरिक और मानसिक हिंसा का भी सामना करना पड़ता है।
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