20 वर्षीय लावण्या भोपाल में रहती हैं और पत्रकारिता की छात्रा है। वह एक वोकल इंटरसेक्शनल फेमिनिस्ट और उभयलिंगी हैं। वह उन लोगों के लिए काम करती हैं जो हाशिए पर हैं और उन्हें खुलकर अपनी बात कहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
भाई को ही बता सकती थी
मैं स्कूल में थी जब मुझे पहली बार यह एहसास हुआ कि मैं अन्य लड़कियों की तरह सामान्य नहीं हूं। अपने अंदर उठ रही भावनाओं को मम्मी पापा से बताने के बारे में सोचना भी किसी बुरे सपने से कम नहीं था। वास्तव में यह कुछ ऐसा था जिसमें मैं उलझी हुई थी और इसके अलावा कुछ सोच नहीं पा रही थी।
समलैंगिक होने का एक पहलु यह भी है कि आप कई बार अपने आपको बेहद अकेला पाते हैंI मुझे यह लगने लगा था कि मैं सबसे अलग हूँ। इसलिए मैंने अपने छोटे भाई विश्रुत को इसके बारे में बताया।
मेरा भाई सच में नहीं जानता था कि दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो समान लिंग की तरफ़ आकर्षित होते हैं। वह बहुत उलझन में था और थोड़ा परेशान भी कि उसकी बड़ी बहन अन्य लड़कियों को पसंद करती है।
हालांकि, उसने अपनी यह परेशानी अभी कुछ दिन पहले तक मुझे पता भी नहीं चलने दी थी और इसके मैं उसकी दाद देना चाहूंगीI
क्या होता अगर?
कभी-कभी मुझे यह सोचकर बहुत डर लगता था कि अगर उसने मम्मी पापा को यह जाकर बता दिया कि उसकी बहन थोड़ी अज़ीब तरह की है तो क्या होगा। मुझे पता है कि उसके मन में मुझे लेकर कई तरह के सवाल आते होंगेI
लेकिन ऐसा कुछ करने की बज़ाय विश्रुत ने हमेशा मुझसे ही सवाल किये कि लेस्बियन होने के आखिर में क्या मायनें हैं? उस समय तक मुझे लगता था कि मैं केवल महिलाओं के प्रति ही आकर्षित हूं।
उसने मुझे समझाने की कोशिश की कि मैं समलैंगिक नहीं हूं। और यह कि मैं केवल इसलिए कह रही हूं क्योंकि मैं खुद उलझी हुई हूं। जैसे-जैसे साल बीतते गए, विश्रुत ने मुझे और अधिक समझा और मुझे स्वीकार किया।
मैंने कहा था ना'
अपनी किशोरावस्था में मैंने अपना पहला चुम्बन, लड़की को ही किया था। मैंने विश्रुत को इसके बारे में बताया। मेरा भाई भी किसी भी अन्य भाई की तरह सुनकर अवाक रह गया लेकिन उसने मुझे बताया कि मेरी ख़ुशी में उसकी ख़ुशी है।
इतना ही नहीं उसने हमेशा मुझे सहारा दिया और इस यात्रा में जब जब मैं दुखी और परेशान हुई तो उसका कंधा हमेशा तैयार रहता थाI
जैसे-जैसे समय बीता, मुझे महसूस हुआ कि मुझे पुरुष भी अच्छे लगते हैं। मेरा भाई मेरा मजाक उड़ाता और कहता कि 'मैंने तुमसे कहा था ना'। अगले कुछ महीनों में यह उसकी टैगलाइन बन गई क्योंकि इस दौरान मैंने ख़ुद को ही जानने के लिए काफी मेहनत की कि वास्तव में मैं हूं क्या?
जब मैंने उसे एलजीबीटी शब्दावली से परिचित कराया तो उसने मुझे धैर्यपूर्वक सुनाI
मेरा सबसे बड़ा सहयोगी
जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई और मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मैं उभयलिंगी हूं, इसके बारे में सबसे पहले मैंने विश्रुत को ही बताया। जब मेरे मम्मी पापा को इसके बारे में बता चला तब भी उसी ने मेरा सबसे ज़्यादा साथ दिया।
मेरा सफ़र आसान नहीं रहा। मैंने कई बार होमोफोबिया (समलैंगिकता से नफरत करने वाले लोग) और तिरस्कार का सामना किया है। जब भी मैं उसे बताती कि किसी ने मुझे मेरा मज़ाक उड़ाया तो बाकी भाइयों की तरह, वह भी लोगों से पंगा लेने के लिए हमेशा तैयार रहता। कुछ महीने पहले किसी ने मुझे 'नकली उभयलिंगी' बोलकर परेशान किया और हम दोनों ही उनकी बेहूदी बातों पर हँसे।
कुछ समय पहले मुझे अवसाद और कई अन्य मानसिक रोगों का सामना करना पड़ा। मैं अक्सर नकारात्मक विचारों से ग्रसित रहती और मन में आत्महत्या करने का ख़याल आते।
मैं सोच भी नहीं सकती कि यदि विश्रुत ने इतना प्यार और साथ नहीं दिया होता तो मेरा मानसिक संतुलन कितना बिगड़ गया होता। इस दुनिया को उसके जैसे और भाइयों की ज़रूरत है।
जब विश्रुत के दोस्त होमोफोबिक या ट्रांसफोबिक कहकर टिप्पणी करते तो वह अपने दोस्तों को भी ऐसा करने के लिए मना करता। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो मैं उसे इस बार प्राइड परेड में ले जाने के बारे में सोच रही हूं।
लावण्या ने हमारे अभियान #AgarTumSaathHo के लिए लव मैटर्स इंडिया के साथ अपनी कहानी साझा की। इस महीने हम एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को दोस्तों, सहकर्मियों, माता-पिता, शिक्षकों या समाज से मिले / या दिए गए समर्थन, स्वीकृति, प्रेम और सम्मान की कहानियां प्रकाशित करेंगे।
*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल किया गया है।
क्या आपके पास भी लोगों को प्रोत्साहित करने वाली ऐसी कोई कहानी है? हमारे फेसबुक पेज पर लव मैटर्स (एलएम) के साथ उसे साझा करें या हमारे चर्चा मंच पर एलएम विशेषज्ञों से पूछें।