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'महिलाओं के टॉयलेट में मत जाओ'

द्वारा Roli Mahajan जुलाई 10, 05:07 बजे
लव मैटर्स ने 5 LGTB से उनके अनुभवों के बारे में पूछाI उन्होंने हमें नफरत, हिंसा, तिरस्कार और यहाँ तक कि हत्या के प्रयास की दिल दहला देने वाली आपबीतियां सुनायींI

'पशु अधिकार?'

काफी समय तक अपनी सचाई को दुनिया से छुपा कर रखने के बाद हाल ही में मैं सार्वजानिक रूप से अपने समलैंगिक होने की बात स्वीकारीI मुझे पुरुषों के लिए आकर्षण महसूस होता था लेकिन मैं ये स्वीकार नहीं कर सकता था और शायद इस कश्मकश के चलते मेरा कभी कोई रिलेशन ही नही हो पाया, क्यूंकि मैं खुद अपनी लैंगिकता के बारे में निर्णय नहीं कर पाया थाI मैं अपने कॉलेज के समलैंगिक अधिकारों के हिट में काम करने वाले दल का हिस्सा थाI

मेरा मानना था की दिल्ली के लोग, खासकर मेरे कॉलेज के लोग समलैंगिकता को लेकर उदार विचारधारा रखते थेI मेरा ये भ्रम उस दिन टूटा जब एक दिन मेरे कॉलेज के एम. फिल. गाइड ने मुझसे पूछा," और भाई, तुम्हारे पशु अधिकारों का आंदोलन कैसा चल रहा है? कोई तुम्हे समर्थन दे भी रहा है या नहीं?"

गिरीश(26), विद्यार्थी

'महिला बाथरूम में मत जाओ'

मैं एक विपरीतलिंगी महिला हूँI मेरी किस्मत  अच्छी है की मुझे मेरे माता-पिता से प्रोत्साहन मिलाI.

मुझे मूलभूत शिक्षा मिली और ओपन यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई कीI सामान्य कॉलेज में मैं ज़्यादा दिन नहीं गुज़र सकी क्यूंकि आसपास के लोगों का नजरिया मेरे लिए निराशाजनक थाI मेरे साथ सबका व्यव्हार ऐसा था मानो मैं वहां उपस्थित ही नहींI टीचर्स मुझसे कभी कोई सवाल नहीं पूछते थे, और कोई मुझसे दोस्ती करने को तैयार नहीं थाI अंत में मैंने कॉलेज छोड़ ही दियाI

हद तो तब पार हो जाती थी जब आया मुझे महिलाओं के बाथरूम में नहीं जाने देती थी और कहती थी कॉलेज के बहार जो पुरुषों का शौचालय है, मुझे वहां जाना होगाI

रात्रि (28), ऑफिस सहायक

'मेरे परिवार ने मेरी जान लेने की कोशिश की'

जब मैंने अपने परिवार को बताया की मैं लेस्बियन हूँ, तो ये बात किसी के गले नहीं उतरीI उन्होंने सब कुछ करने की कोशिश की, मुझसे बात न करना, गुस्सा, मारपीट और अंत में परिवार में से ही किसी ने मुझे ज़हर देकर मरने की कोशिश की और मुझे इसके बाद खुद ही अपना घर छोड़ देना पड़ाI

मैं संयुक्त परिवार में रहती थी इसलिए मुझे नहीं पता की ये किसने किया, लेकिन मेरे खाने में ज़हर मिलाया गयाI मैं तो बच गयी, लेकिन मेरे अंदर मानवता के ऊपर से विश्वास मर गयाI. क्या लेस्बियन होने की सज़ा मौत है?

किरा (26)

'देश छोड़ना पड़ा'

जब मैं 19 साल का था तब मेरी सौतेली बहन को मेरे समलैंगिक होने के बारे में पता चल गया और उसने ये बात मेरे मम्मी पापा को बता दीI  उसके बाद का एक साल मेरे जीवन का सबसे मुश्किल साल थाI मेरा घर से बहार निकलना बंद करा दिया गया, मेरे पापा ने मुझे बहुत मारा और मुझे मेरी इस 'बीमारी' के इलाज के लिए एक मनोवैज्ञानिक के पास ले जाया गयाI इसके बाद जबरन मेरी सगाई कर दी गयी ये कहते हुए की शादी के बाद सब अपने आप सामान्य हो जायेगाI

आखिरकार मैं घर छोड़ के भाग गया, लेकिन बदकिस्मती से मुझे फिर ढून्ढ लिया गयाI मेरे अंकल ने मश्वरा दिया की परविवार की बदनामी न हो, इसलिए मुझे इस देश से बाहर भेज देना चाहिएI तब से मैं स्वीडन में हूँI मुझे खर्च के पैसे भेजे जाते हैंI मैंने अपने परिवार वालों से तीन साल से बात नहीं की और मैं एक-दो बार भारत गया लेकिन उन्हें इस बात की खबर नहीं हैI

स्नेहल (24) स्टूडेंट

'कॉलेज आपके लिए नहीं है'

विपरीतलिंगी होने के कारण मेरी शिक्षा बहुत मुश्किल से हुईI मुझे लड़कों के स्कूल में भेजा गया और जब उन्हें मेरे बारे बारे में बता चला तो मैं हंसी और तिरस्कार का पात्र बनके रह गयाI खैर, जब मैंने सोचा की अपने इस भयानक कल को भूलकर कॉलेज में एक नयी शुरुवात करूँगा, तो कुछ और ही सामने आयाI

कॉलेज के चौकीदार ने मेरे पहले दिन पार मुझे उम्र से नीचे तक देखा और बोला, "यहाँ हिजड़े भी पढ़ने आते हैं!" मैंने उसकी बात को अनसुना कर क्लास की तरफ कदम बढ़ायेI आपसी परिचय के दौर के बाद वो क्लास से बाहर चली गयी और वापस आकर मुझे कहा गया की हेड मास्टर मुझे बुला रहे हैंI हेडमास्टर ने कहाI" मुझे यह कहते हुए दुःख है की तुम इस कॉलेज में नहीं पढ़ सकतेI इससे बाकि लोगों पार गलत असर पड़ेगाI"

पता नहीं इसकी वजह क्या थी? शायद ये की मैंने साडी पहनी थी, या शायद एक विपरीतलिंगी पढ़- लिखना चाहता था. 

मोहन (29), स्टूडेंट

यह लेख पहली बार 12 मई 2014 को प्रकाशित हुआ था।

इस लेख में सभी के नाम बदले हुए हैंI फोटो में मॉडल् हैं।  

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