21 साल के रजनीश एक क्वीर फेमिनिस्ट हैं और एनएसआईटी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन कर रहे हैं।
लौटना पड़ा
शुक्रवार की दोपहर तक मेरी परीक्षा ख़त्म हो गयी थी और मैं अपने वीकेंड को मज़ेदार बनाने के के लिए बहुत उत्साहित था। मैंने अपनी पसंदीदा ड्रेस पहनी और अपने सबसे पसंदीदा जगह कनॉट प्लेस पर मौज मस्ती करने के लिए निकल पड़ा।
किफ़ायती और बेहतर माहौल होने की वज़ह से मैं उस ज़गह का शौकीन था। वह परिचित जगह थी। हालांकि जब मैं अंदर जाने के लिए सीढ़ियों तक पहुंचा तो दरबान ने मुझसे अजीब तरीके से पूछा कि मैंने यह क्या पहना है। मैं कुछ बोल नहीं पाया। उसने मुझसे कहा कि वह इन कपड़ों में मुझे अंदर नहीं जाने देगा।
उसके शब्द मेरे कानों में काँटो की तरह चुभे। मैंने पिछले महीने में उसे कई बार टिप दिया था। आज उसने मुझे गेट पर रोक दिया। उसने सिर्फ़ मेरी पोशाक के बारे में ही मुझसे पूछताछ नहीं की, बल्कि मुझे अंदर भी नहीं जाने दिया।
मैंने आत्मसंयम बनाए रखा और चेहरे पर नकली मुस्कान लिए उससे आख़िरी बार पूछा- तो आप मुझे अंदर नहीं जाने देंगे? उसने ‘ना’ में सिर हिलाया ।
टूट गया
मैं वहां से लौट आया और फिर ब्लॉक के चारों ओर घूमता रहा। अभी अभी जो कुछ भी हुआ था मैं उसे याद नहीं करना चाहता था।
मैं निश्चित रूप से किसी के पूर्वाग्रहों के कारण अपनी योजनाओं को बदलना नहीं चाहता था। हालाँकि मुझे संदेह था इसलिए मैं फिर से दूसरे लाउंज में गया। जब मुझे वहां टेबल पर बैठाया गया और अच्छी सेवा दी गई, तो मुझे यह बहुत ही शानदार लगा।
एक बार जब मेरा गुस्सा शांत हुआ तो दिन की घटनाएं एक बार फिर से मुझे याद आ गईं। मुझे आज एक ऐसे ज़गह से लौटा दिया गया था जहां इससे पहले मैंने अच्छा ख़ासा पैसा ख़र्च किया था। मैं पहले शर्ट पहन कर वहाँ गया था, तब अच्छी सेवा दी गई थी।
जब मैं वह पोशाक पहनकर गया तो मुझे दरवाजे से ही लौटा दिया गया। मैंने देखा था कि महिलाएं भी इसी तरह के कपड़े पहनती हैं और उन्हें अंदर जाने दिया जाता है। फिर मुझे क्यों नहीं? अचानक मेरा पैसा अब उनके लायक नहीं रहा? मेरा गुस्सा जल्द ही आंसुओं में बदल गया। मैं वॉशरूम में गया और खूब रोया।
बार बार
मैंने जब बिल भरा तब भी मैं काफ़ी परेशान था और वहां से निकल गया। इसलिए, मैंने अपने दोस्त अभि को फोन करके मिलने के लिए बुला लिया। दूसरे दिन उसकी परीक्षा थी लेकिन जब उसने सुना कि मैं परेशान हूं, तो वह मुझे मिलने चला आया।
हम गले मिले और मैंने उस दिन जिस अपमान का सामना किया था, उसके बारे में अभि को बताया। अभि ने धैर्यपूर्वक मेरी बातें सुनी क्योंकि मैं काफ़ी दुखी था और रो रहा था।
इस घटना के बारे में सुनकर अभि भी अचंभित रह गया। उसने कभी भी इस तरह के भेदभाव की कल्पना नहीं की थी। मेरी ड्रेस के आधार पर भेदभाव और वो भी कनॉट प्लेस पर, यानि दिल्ली की एक ऐसी जगह जो समलैंगिक पुरुषों के मौजमस्ती का प्रमुख स्थान है, पर संभव नहीं था।
हो सकता है मैंने उस रात अभि को कई बार उस घटना के बारे में बताया हो। वह पूरी रात बैठकर मुझे धैर्य से सुनता रहा। अभि ने उस समय मेरा साथ दिया जब मुझे उसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत थी। यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी।
मेरा हौसला बढ़ाया
जब मेरी बातें खत्म हो गई तो उसने मुझे घर छोड़ने के लिए कहा। फ्रेश होने के बाद मैंने अपना चेहरा धोया ताकि ऐसा न लगे कि रोते रोते मेरी आंखें बाहर निकल आयी हैं। उसने मुझे सलाह दी कि जब तक मेरी मनोस्थिति बेहतर नहीं हो जाती तब तक मुझे इंतजार करना चाहिए, ऐसा न हो कि मुझे घर पर ख़ुद को समझाना पड़े। चलते चलते हमने आइसक्रीम भी खायी।
वो मुझे इधर उधर की बातें और मज़ेदार चुटकुले सुनाकर ख़ुश करने की कोशिश में लगा रहा। थोड़ी देर के बाद, मैं बहुत बेहतर महसूस कर रहा था और अब बिना आंसू बहाए दिन की घटनाओं और उस अपमान के बारे में बारे में बात कर सकता था।
उसने मुझे घर तक छोड़ा और उस रात मैसेज करके मेरा हाल पूछता रहा। उसे अगले दिन भी मेरी चिंता थी। मुझे अपने अन्य मित्रों से अधिक समर्थन तब मिला जब मैंने अपने फेसबुक पेज पर इस घटना के बारे में अपने साथियों को जगह के बारे में चेतावनी देते हुए लिखा।
मेरे साथ जो कुछ भी हुआ उसके बावजूद मुझे ख़ुशी है कि उस दिन अभि ने मेरा साथ दिया।
रजनीश ने हमारे अभियान #AgarTumSaathHo के लिए लव मैटर्स इंडिया के साथ अपनी कहानी साझा की। इस महीने हम एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को दोस्तों, सहकर्मियों, माता-पिता, शिक्षकों या समाज से मिले / या दिए गए समर्थन, स्वीकृति, प्रेम और सम्मान की कहानियां प्रकाशित करेंगे।
*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल किया गया है।
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