Asexuality
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मुझे लड़का और लड़की दोनों ही पसंद नहीं हैं!

द्वारा Harish P अक्टूबर 25, 02:52 बजे
किशोरावस्था की देहलीज़ पर आते ही हमें औरों के प्रति यौन आकर्षण महसूस होना शुरू हो जाता हैI हम सबके पास बचपन के उस सुन्दर लड़के, और प्यारी सी लड़की की कहानियां हैंI लेकिन, उनका क्या जिनके पास ऐसी कोई कहानी नहीं है? आइये, मुंबई की वैभवी (22), से मिलते हैं जिनका बचपन कुछ ऐसा ही थाI

ट्रुथ एंड डेयर में बाहर आया सच

बात है 2007 की और मैं उस समय आठवीं कक्षा में थीI मेरी सहेलियां अक्सर उन लड़को के बारे में बातें करती थी जो उन्हें अच्छे लगते थेI स्कूल की कई लंच ब्रेक इसी हंसी-मज़ाक में निकल जाती थीI एक दिन हम दोपहर के भोजन के ब्रेक के दौरान क्लास में ही ट्रुथ एंड डेयर (इस खेल में आपको हर सवाल का जवाब सही देना पड़ता है नहीं तो कोई हिम्मत भरा काम करना पड़ता है) मुझसे स्कूल के उस लड़के का नाम बताने को कहा गया था जो मुझे अच्छा लगता थाI

मुझे उस प्रश्न का उत्तर सोचने में बहुत वक़्त लगा और उसके बाद भी मैंने झूठ-मूठ ही एक लड़के का नाम ले लियाI मेरे जवाब के बाद बाकी लोग तो हंसी-मज़ाक में मशगूल हो गए लेकिन मेरा दिल बैठ गया थाI क्यूंकि एक ऐसा विचार दोबारा मेरे अंदर कुलबुलाने लगा था जिसे मैंने भरसक दबाने की कोशिश की थी - मुझे वास्तव में किसी के भी प्रति यौन आकर्षक नहीं होता था!

यह मेरे साथ किशोरावस्था में पहुँचते ही होना शुरू हो गया थाI मेरी कुछ दोस्तों के तो सातवीं से ही बॉयफ्रेंड बन गए थेI मुझे कोई अच्छा ही नहीं लगता थाI यहाँ तक की कोई लड़की भी नहीं (जी हाँ, मैंने अपने दिमाग में लड़कियों के प्रति भी आकर्षित होने की कोशिश की थी)!

 

पॉर्न का सहारा

शायद कोई कारण था जिसकी वजह से यह बात मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रही थीI हालाँकि आज यह सोचकर बड़ी हंसी आती हैI मुझे याद है कि जीव-विज्ञान की कक्षा में प्रजनन के ऊपर पढ़ना हो या एड्स जागरूकता शिविर, यह सब मेरे लिए छाती में चाक़ू घुसने की तरह थाI मतलब यह कि सेक्स से सम्बंधित कोई भी बात मेरे लिए असहनीय थीI

 

जैसे-जैसे समय बीतता रहा मेरी बेचैनी भी बढ़ती गयीI मुझे यह डर लगना शुरू हो गया था कि कहीं मैं जीवन भर अलैंगिक ना रह जाऊंI मैंने अलैंगिकता के बारे में पढ़ना शुरू किया तो वो इतना नकारात्मक और डरावना था कि मेरी निराशा और भी बढ़ गयी - यहां तक ​​कि यह सकारात्मक जानकारी भी कि 'हर अलैंगिक व्यक्ति जीवन भर अलैंगिक नहीं रहता' मेरी निराशा को कम नहीं कर पा रही थीI मैंने इस उम्मीद में पॉर्न देखना भी शुरू कर दिया था कि शायद उससे मेरे 'सोये हुए तार' हिल जाएँI लेकिन उससे फायदे से ज़्यादा नुकसान हो रहा था क्यूंकि मैं सेक्स के करीब जाने की बजाय उससे दूर हो रही थी!

बाहरी मदद

जब मेरे लिए यह सब संभालना कठिन हो गया तो मैंने अपनी नौवीं की दोस्त प्रिया को सब सच बता दियाI वो हमारे स्कूल की सबसे बिंदास लड़की थी, क्यूंकि उसने सारी 'कूल' चीज़ें औरों से पहली की होती थीI पहले तो उसे मेरी बात समझ नहीं आयीI लेकिन फिर उसने सुझाव दिया कि यौन रूचि जगाने के लिए मुझे एक लड़के के साथ शारीरिक स्पर्श करके देखना चाहिएI

बहुत दिन सोचने के बाद, मैंने वो भी करके देख लिया, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआI बल्कि ऐसा करने के बाद कुछ देर के लिए मुझे अपने आप से ही घिन्न हो गयीI मैंने स्कूल काउंसलर से भी मदद मांगे की कोशिश की लेकिन उनका कहना था कि मुझे इन फ़िज़ूल की बातों में समय बर्बाद करने के बजाय अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए!

हैरानी इस बात की है कि इससे मुझे सच में मदद मिली! उनकी बातें सुनकर मुझे ठेस तो ज़रूर पहुँची थी, लेकिन शायद उनके कठोर शब्दों की वजह से मेरा ध्यान इन बातों से हट गया थाI मैं स्कूल कॉउंसलर को कुछ कर के दिखाना चाहती थी और मैंने अपनी सारी ऊर्जा पढ़ाई और अन्य गतिविधियों में लगा दीI इस वजह से मैं अब अलैंगिकता के बारे में कम सोचने लगी थीI

देर आये दुरुस्त आये

मेरी कामुकता के बारे में मेरी चिंताएं अब मुझे पहले के तरह डराती नहीं थीI हाँ मेरी पूरी स्नातक की पढ़ाई के दौरान मैं इस बात से परेशान ज़रूर रहीI मेरे कुछ दोस्त गंभीर रिश्तों में थे और कुछेक की शादी भी होने वाली थीI वो पागलपन वापस आना शुरू हो गया थाI लेकिन जब मैं ऑफिस में रौनक से मिली तो अचानक से सब बदल गयाI मैंने उसके साथ एक अजीब सा भावनात्मक और बौद्धिक जुड़ाव महसूस किया था जिसका एहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ थाI हम दोनों ने काफ़ी समय इकट्ठा बिताना शुरू कर दिया थाI कुछ महीनों के बाद, एक दिन मुझे रौनक को छूने, गले लगाने और चूमने की इच्छा हुईI मुझे वो क्षण तो ठीक से याद नहीं हैं लेकिन शायद यह वही एहसास था जो मेरी दोस्तों को सातवीं और आठवीं में हुआ थाI मेरी 'किशोरावस्था' आ गयी थीI स्कूल की लंच ब्रेक के कई सालों बाद!

आज, जब मैं मुड़ के देखती हूँ तो मुझे लगता है कि शायद यौन विकास के मामले में मैं किसी प्रकार की दौड़ में भाग रही थीI मेरा शरीर मेरे दोस्तों के शरीरों की तरह ही विकसित हुआ था बस मैं उनकी तरह किसी के प्रति यौन रूप से आकर्षित नहीं होती थी और इस छोटी से बात को मैंने जीवन-मृत्यु का सवाल बना दिया थाI

सबके लिए अलग

जैसे जैसे आप बड़े होते हैं आपके कई डर और चिंताएं अपने आप ही ख़त्म हो जाते हैंI ऐसा ही कुछ मेरे भी साथ हुआ थाI मेरी अलैंगिकता की कहानी तो कुछ वर्षों की ही थी लेकिन कुछ लोगों के साथ ऐसा जीवन भर हो सकता हैI आज मैं समझ गयी हूँ और कह सकती हूँ कि कामुकता प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग हैI अगर मुझे बड़े होने पर एहसास होता कि मैं अलैंगिक हूँ तो शायद मैं उस स्थिति से बेहतर निपट पातीI लेकिन किशोरावस्था में आपका मुख्य मुद्दा बाकियों की तरह रहना और उनकी शैली की नक़ल करना यही होता हैI उस उम्र मैं यह समझना थोड़ा कठिन हो सकता हैI

क्या आपको भी कभी लगा कि आप किसी के भी प्रति यौन रूप से आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं? अपनी कहानी फेसबुक के ज़रिये या नीचे टिप्पणी करके लवमैटर्स से साझा करेंI अगर आपके पास कोई विशिष्ट प्रश्न है, तो कृपया हमारे चर्चा मंच पर जाएंI

लेखक के बारे में: मुंबई के हरीश पेडाप्रोलू एक लेखक और अकादमिक है। वह पिछले 6 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। वह शोध करने के साथ साथ, विगत 5 वर्षों से विश्वविद्यालय स्तर पर दर्शनशास्त्र भी पढ़ा रहे हैं। उनसे लिंक्डइन, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर संपर्क किया जा सकता है।

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Comments
Ye soch kisi ke saat bhi ho shakta h ye koi bhut bhadi baat nhi thi mhuje to ye soch kar sharm aa rha h ki hum log kya sach me 21we shade me h jaha ek ladki aapne logo se help mag rhi h our koi thik se madat bhi nhi kar pa rhe h hum bolte h dosti ka rista bhut khas hota h par yaha do ek dost ne aapne dost ko help karne ki jagah galat kam he karne ko bol diya ek baar bhi nhi socha ki aage kya hoga so sorry ji par bhut dhuk hua ye Jan kar
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