वैसे तृतीय लिंग नया लिंग नही है। ट्रांसजेंडर लोगों के लिए यह प्रावधान है कि वे सभी कागज़ी कार्यवाहियों और दस्तावेजों मे ख़ुद की पहचान को ट्रांसजेंडर के रूप मे दर्ज करवाएं। यह प्रावधान सभी ट्रांस पहचान वाले लोगों जैसे कि ट्रांस मेन, ट्रांसवीमेन और हिजड़ों पर लागू होता है हालांकि इस प्रावधान मे ट्रांस के रूप में पहचाने जाने वाले लोगों के बीच ट्रांसमेन या ट्रांस विमेन आदि का वर्ग विभाजन नहीं किया गया है।
हालांकि तृतीय लिंग का विकल्प कई तरह के आधिकारिक पहचान पत्रों जैसे राशन कार्ड या पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वाले फॉर्म में बहुत समय पहले से मौजूद है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के 2014 मे दिए अपने ऐतिहासिक फ़ैसले मे ट्रांसजेंडर लोगों द्वारा समान अधिकारों के लिए किये जा रहे संघर्ष को जरूरी सहारा देते हुए, भारतीय संविधान के अंतर्गत ट्रांसजेंडर लोगों के मौलिक अधिकारों की पुष्टि की।
अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह तृतीय लिंग के समुदाय के लोगों को शैक्षिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दे। एक बहुत ही सहानुभूति भरे निर्णय मे न्यायधीशों ने आधिकारियों से आग्रह किया कि वे ट्रांसजेंडर लोगों से जुड़े दुराग्रहों को कम करने के लिए सार्थक कदम उठाएं।
नहीं, तृतीय लिंग की अवधारणा केवल लैंगिक पहचान (इसका आशय किसी के द्वारा ख़ुद की पहचान पुरुष, स्त्री या ट्रांसजेंडर के रूप मे करने से है) पर लागू होती है ना कि lयौन अभिविन्यास
पर (इसलिए यह अवधारणा लेस्बियन गे अथवा बायसेक्सुअल लोगों के लिए नही है)। एल.जी.बी. लोग खुद की पहचान पुरुष, स्त्री या ट्रांसजेंडर के रूप मे कर सकते हैं इसलिए जहां तक लैंगिकता का सवाल है उनके लिए अलग से श्रेणी की ज़रुरत नहीं है।
स्पष्टता के अभाव में सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक आदेश जारी करने के दो साल बाद यानी 2016 मे स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि केवल ट्रांसजेंडर लोग ही तृतीय लिंग मे शामिल किये जाएंगे।
इसकी कोई जांच नहीं होती है। अदालत ने यह फ़ैसला व्यक्ति पर छोड़ दिया है। कोई भी व्यक्ति जो खुद की पहचान तृतीय लिंगी के रूप मे करना चाहता है, ऐसा कर सकता है। और, तृतीय लिंग श्रेणी मे शामिल होने के लिए ट्रांसजेंडर लोगों को लिंग पुनर्मूल्यांकन सर्जरी या हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी ( इसका मतलब मेडिकल विधि की सहायता से ख़ुद को उस लिंग मे परिवर्तित करने से है जिससे आप जुड़ा हुआ महसूस करते हैं) नहीं करवानी पड़ती है। लैंगिकता सिर्फ़ इस बात पर निर्भर करती है कि आप क्या महसूस करते हैं।
भारतीय दंड संहिता की कुख्यात धारा 377 का सम्बन्ध 'अप्राकृतिक सेक्स' (इसमे लिंग-योनि मैथुन के अतिरिक्त हर तरह का मैथुन शामिल है पर जोर मुख्यतः गुदा मैथुन पर है) से है। इसका तृतीय लिंग अवधारणा से किसी तरह का कोई सम्बन्ध नहीं है। धारा 377 उन सभी व्यक्तियों जो अप्राकृतिक मैथुन मे शामिल हैं, पर लागू होती है चाहे वो समलैंगिक हों अथवा विषमलिंगकामी। हालांकि इस धारा का ज्यादातर इस्तेमाल समलैंगिक लोगों को प्रताड़ित करने के लिए होता है।
2014 के ऐतिहासिक फैसले को ढंग से लागू नही किया गया। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा फैसला लागू करवाने हेतु तृतीय लिंगियों की पहचान करने के बारे मे बार बार स्पष्टीकरण मांगने के लिए सरकार को फटकार लगायी। हालांकि इस सम्बंध मे कुछ सकारात्मक प्रगति पहले ही हो चुकी है। मार्च 2016 में, बिहार सरकार द्वारा तृतीय लिंगियों को सरकारी नौकरियों मे आरक्षण देने की घोषणा की जा चुकी है।
फिर भी, सभी सरकारी और निजी संस्थाओं द्वारा फैसले को पूरी तरह लागू करना अभी बाकी है, इसलिए अभी भी हमें ऐसे कई आधिकारिक दस्तावेज मिलते हैं जिसमें उन लोगों के लिए प्रावधान नहीं है जो ख़ुद की पहचान तृतीय लिंगी के रूप मे करते हैं। और फिर, अभी तो और भी लड़ाइयां बाकी हैं, इन लड़ाइयों मे ट्रांसजेंडर लोगों के लिए अलग से सार्वजनिक शौचालय व्यवस्था या उन्हें उस लैंगिकता के अनुरूप टॉयलेट का इस्तेमाल करने का अधिकार शामिल हैं।
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लेखक के बारे में: मुंबई के हरीश पेडाप्रोलू एक लेखक और अकादमिक है। वह पिछले 6 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। वह शोध करने के साथ साथ, विगत 5 वर्षों से विश्वविद्यालय स्तर पर दर्शनशास्त्र भी पढ़ा रहे हैं। उनसे लिंक्डइन, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर संपर्क किया जा सकता है।