कविता* दिल्ली में रहने वाली एक सामजिक कार्यकर्ता है
शुरुआती समय
मैं पहली बार नाज़मा से तब मिली जब उसका परिवार उत्तर प्रदेश से पूर्वी दिल्ली में हमारे पड़ोस में रहने आयाI हम उम्र होने के नाते हम दोनों जल्द ही दोस्त बन गए और वो सारे खेल खेलने लग गए जो सात-आठ साल की लडकियां खेलती हैंI कभी-कभी हमारे भाई भी हमारे साथ खेलते थे और हम सभी एक साथ खूब मज़े करते थेI
नाज़मा कभी हमारी तरह स्कूल नहीं गयी थीI मुझे यह अजीब लगता था लेकिन कभी इस बारे में उससे पूछने कि हिम्मत नहीं हुईI हालांकि, एक महिला अपने धर्म के बारे में सिखाने के लिए दोपहर में उसके घर ज़रूर आती थी।
मेरा समय उसी के साथ बीतता था और मुझे लगने लगा था की वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है
हर अच्छी चीज़ कि तरह एक दिन हमारी दोस्ती भी अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गयीI अपने बड़े बेटे को अपना कारोबार सौंप कर नाज़मा के पिता दिल्ली से बाहर चले गएI नाज़मा और उसका छोटा भाई भी अपने गांव वापस चले गएI उसके बाद लगभग एक दशक तक मैंने उसे नहीं देखा।
पुनर्मिलन
हमारा एक-दूसरे के साथ संपर्क पूरी तरह टूट गया थाI मैं अपनी पढ़ाई में व्यस्त होने के कारण नाज़मा को पूरी तरह भूल सी गयी थीI लेकिन एक दिन, अचानक वो मेरी जिंदगी में फ़िर से वापस आ गयीI जब वो अपने बड़े भाई से मिलने के लिए दिल्ली आयी तो मुझसे मिलने के लिए मेरे घर भी आयीI इतने सालों बाद अपनी बचपन कि दोस्त को अपने सामने देख मेरी ख़ुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं थाI अब हम दोनों सत्रह बरस के हो गए थे और हमारे अंदर बहुत सी नई भावनाएं का जन्म भी हो चूका थाI
पुराने पलों को याद करते करते कब समय बीत गया हमें पता ही नहीं चलाI जाने से पहले नाज़मा ने मेरे साथ एक तस्वीर खिंचवाने की इच्छा व्यक्त की। हम दोनों पास के एक स्टूडियो में गए और कुछ अच्छी फ़ोटो खिंचवाईI हमने उन फ़ोटो की एक एक कॉपी अपने पास रखी और एक दुसरे के नंबर भी ले लिएI उसके बाद नाज़मा फ़िर अपने गाँव चली गयीI।
संकेत
जाने के बाद नाज़मा अकसर मुझे फ़ोन कर के बताती कि उसे मेरी बहुत याद आ रही हैI शुरुआत मैं तो मुझे कुछ अजीब नहीं लगा लेकिन धीरे-धीरे यह बहुत ज़्यादा होने लगा थाI पहले तीन दिन में एक बार फ़ोन आता था लेकिन अब एक दिन में चार-पांच बार वो यही बात बोलती थीI एक दिन उसने मुझे फ़ोन करके कहा कि, 'मैंने स्टूडियो में जाकर फोटोशॉप की मदद से हमारी तस्वीरों में कुछ बदलाव किए हैं, जैसे तुम्हारे सूट को हटाकर तुम्हे साड़ी पहना दी हैI" फ़ोन रखते हुए उसने यह भी कहा कि उसकी नज़र मेरी फ़ोटो से हट नहीं रही है और वो मुझे बेहद चाहने लगी हैI
मैंने यह उम्मीद नहीं की थी और यह सब मेरे लिए बहुत अजीब था कि वो क्यों हमारी तस्वीर को फोटोशॉप करवाएगीI उसकी बातें सुनकर मैं बैचेन हो गयी थीI जब मैंने उसकी बातें अपने स्कूल की एक सीनियर सीमा को बताई तो उसका कहना था कि मुझे उससे दूर रहना चाहिए क्यूंकि वो अच्छी लड़की नहीं हैI
झिड़कना
मेरा मासूम दिमाग नाजमा की भावनाओं के बारे में कुछ समझ ही नहीं पा रहा था और इसलिए मैंने उसे अनदेखा करने का फैसला कर लिया थाI वो रोज़ मुझे कई बार फ़ोन करती थी, खासकर सुबह-सुबह, और कहती थी कि उसे मेरी बहुत याद आती हैI वो कहती थी कि वो मुझसे मिलना चाहती है और काश वो भी दिल्ली में रह रही होतीI ।
जैसे-जैसे समय गुज़रा मेरी चिंता बढ़ने लगीI मेरी मां ने भी मुझे फोन पर पूरे दिन देख कर डांटना शुरू कर दिया थाI मैंने उन्हें नाज़मा के निरंतर फोन और उन चीजों के बारे में बताया जो उसने मुझे बताई थीI मेरी मां ने मुझसे पूरी तरह से उसके फ़ोन और बातों को अनदेखा करने के लिए कहा। माँ की बात मानकर मैंने उसके फ़ोन उठाने बंद कर दिए क्यूंकि मैं खुद भी इस सबसे तंग आ गयी थीI शायद नाज़मा को भी एहसास हो गया था कि उसे अनदेखा किया जा रहा हैI अंततः उसने भी मुझे फ़ोन करना बंद कर दियाI
अंत
फिर से संपर्क खोने के एक दशक के बाद, मुझे एक आम दोस्त के माध्यम से पता चला कि नाज़मा की उसके गांव में शादी हो गयी थी। हालांकि, उसकी शादी कुछ महीनों से अधिक नहीं चल पायी थी। नाज़मा अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती थी और अकसर अपने माता-पिता के घर वापस आ जाती थींI लेकिन उसके माता पिता उसे बार-बार ससुराल भेज देते थेI वो अपने विवाहित जीवन को समायोजित करने के लिए संघर्ष कर रही थी
मेरी भी शादी हो गयी और मैं अपने पति के घर चली गयी थीI मुझसे नाज़मा का नंबर भी खो गया था, इसलिए उसे फिर से संपर्क करने का कोई रास्ता नहीं बचा था। हालांकि मैंने उसके बारे में कई सालों से नहीं सोचा था, लेकिन अपने बचपन के दोस्त की इन मुश्किल परिस्थितियों में हर संभव मदद करना चाहती थीI
एक दिन मुझे पता चला कि नाज़मा की मृत्यु हो गई थी और पुलिस इस बारे में उसके ससुराल वालों से पूछताछ कर रही थी। मुझे यह जानकर बेहद झटका लगा था और इस बात का दुःख भी हो रहा था कि मैंने वर्षों तक उसको नजरअंदाज किया थाI लेकिन अब इस भूल को सुधारने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं थाI
नयी शुरुआत
इस दुखी खबर से संघर्ष करते हुए मैंने एक गैर-सरकारी संगठन के साथ काम करना शुरू कर दिया था जो कामुकता और स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम रही थीI अपने काम के ज़रिये मुझे एहसास हुआ कि इतने सालो से मेरी दोस्त पर क्या बीत रही थीI मेरी दोस्त मेरी ओर आकर्षित थी और शायद वो सभी फ़ोन कॉल और उसके द्वारा कही बातें उसकी कामुकता की अभिव्यक्ति थी। मुझे यह भी लगने लगा था कि कहीं उसकी अप्राकृतिक मृत्यु उसकी कामुकता से जुड़ी तो नहीं हैI
अब मेरे पास यह पता करने का कोई तरीका नहीं हैI मेरी दोस्त चली गयी है और मैंने उसे अनदेखा करने के अलावा कुछ नहीं कियाI मुझे अकसर लगता है कि अगर हम दोनों उसकी कामुकता के बारे में थोड़ा और जानते और समझ पाते तो क्या चीजें अलग हो सकती थींI मैंने अनजाने में जो कुछ किया, उसके लिए कड़वाहट महसूस करने के बाद अब मैं नाजमा की स्मृति को अपने दिल के करीब रखती हूं। इससे मुझे कामुकता के क्षेत्र में एक ऐसे भयानक जुनून और लगाव के साथ काम करने में मदद मिलती है, जो आप किसी भी प्रशिक्षण से प्राप्त नहीं कर सकतेI
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