गेराल्डिन मिरांडा (परिवर्तित नाम) एक 34 वर्षीय लेखक और संपादक हैं जो नई दिल्ली में रह रही हैं।
आखिरकार एक वयस्क
एक एंग्लो-इंडियन-बर्मी होने के नाते, अपने सांस्कृतिक इतिहास से मेरा सम्बन्ध वैसे ही कुछ कटा-कटा सा थाI बात इतनी सी होती तो ठीक था लेकिन जब मैंने होश संभाला तो पाया कि मैं एक समलैंगिक हूँ, लेकिन रहना पुरुषों की तरह चाहती हूँI मतलब यह कि मेरी ज़िन्दगी जटिलताओं का पिटारा हैI
मेरे बचपन के कुछ अनुभव बहुत आसान नहीं थे। स्कूल, कॉलेज में मेरे ज़्यादा दोस्त नहीं बन पाए थे क्यूंकि हर कोई मेरे लिंग को लेकर ब्रमित रहता थाI सार्वजनिक रूप से बेइज़्ज़त होना, जिसमे थप्पड़ खाना भी शामिल था, आम बात थीI मुझे हंसी का पात्र समझा जाता था और मेरा यौन उत्पीड़न किया जाता थाI
जब मैं छोटी थी, तो 'बच' जैसे शब्द का मुझे अर्थ भी नहीं पता था, यहाँ तक कि मैंने ये शब्द सुने ही नहीं थे। यद्यपि, लेस्बियन शब्द को सामान्य रूप से इस्तेमाल किया जाता था लेकिन हमेशा किसी को अपमानित करने के लिए। ना जाने क्यूँ मेरे मन में एक विश्वास था कि जब मैं बड़ी हो जाऊंगी , तब मुझे प्यार मिल जायेगा और सब कुछ ठीक हो जाएगा।
पियानो शिक्षक के साथ चुंबन
कॉलेज में मैंने पहली बार लड़की के साथ डेटिंग करना शुरू कर दिया। जब जब हमारे बीच कुछ भी शारीरिक होता था, तब तब उसे अपराध बोध की भावना होती थी, लेकिन यह मेरा पहला प्यार था। मुझे सचमुच लगता था कि बड़े होकर हम दोनों शादी कर लेंगे। हमारे ब्रेकअप होने के एक साल बाद, मेरे पिता ने मुझे अपनी पियानो टीचर को चूमते हुए देख लिया।
मुझे लगा सब कुछ खत्म हो गया। मैंने सोचा कि मुझे कॉलेज से निकाल दिया जाएगा और शायद घर से भी। तब मेरी उम्र 18 साल थी।
मेरी परवरिश मेरे पिता ने की थी क्यूंकि मेरे माता-पिता अलग हो चुके थे। उन्होने बचपन से ही मुझे बहुत प्यार दिया था। जिस दिन मेरे पिता ने मुझे एक महिला के साथ चुंबन करते हुए देखा, मेरा दिल बहुत रोया। मुझे लगा मानो मैं उनके प्यार की कीमत चुकाने में 'असफल रही'। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया ने मुझे चकित कर दिया। उन्होने मुझे गले लगाया और कहा, "अगर ईश्वर ने तुम्हें ऐसा बनाया है, तो यह गलत कैसे हो सकता है?"
बेहतर से बदतर
जैसे जैसे समय गुज़रता गया और मेरे पिता की उम्र ढलने लगी, वो मेरे बारे मे सोचकर चिंतित होने लगे। "ना जाने तुम ये सब कैसे झेलोगी ? तुम अकेली हो। मेरे जाने के बाद तुम्हारा क्या होगा?" इस तरह के सवाल मेरे लिए लगातार उठने लगे और शायद मेरे पास इनका कोई जवाब नहीं था।
और एक दिन उन्होने बोल ही दिया, "तुमने मुझे बहुत निराश किया है।" उनके शब्दों ने मुझे गहरी चोट पहुंचाई थी। हालाँकि मैं उन्हे दोष नहीं दे सकती थी - अब तक मैं चार रिश्तों से गुज़र चुकी थी और क्यूंकि कोई भी रिश्ता लंबे समय नहीं टिक सका था, मैं भावनात्मक स्थिरता पा सकने के निकट भी नहीं आ सकी थी।
प्यार और आशा का अंत
उनको इस बात से कोई खास फ़र्क़ नहीं पड़ता था कि मैं एक समाचार पत्र के लिए लेख लिखती हूँ और एक बड़े शहर में अपने दम पर रह रही हूं। मेरे पिता निराश थे क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं शादी नहीं करूंगी, बच्चे नहीं पैदा कर सकूंगी और सबसे ज़रूरी बात यह कि मुझे कभी असल प्यार नहीं मिल सकेगा। मुझे तो वैसे भी इसका अर्थ समझ नहीं आ सका थाI
मेरे पिता की मृत्यु के बाद मैं बहुत अकेली हो गयी थी। सच ये है कि समलैंगिक और किन्नर होना आसान नहीं है। आप कभी खुद को सच्चाई के साथ ज़ाहिर नहीं कर सकते। हर दिन मुझे अकेले खाली घर मे लौटना खलता है जहां मेरे विफल प्यार और टूटे रिश्तों की यादों के सिवा और कुछ नहीं है।
मुझे अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि कैसे लोग मुझे हर बार पलट के दूसरी बार ज़रूर देखते हैं या कैसे सार्वजनिक शौचालय में मेरी लैंगिकता को लेकर भ्रमित होते हैं। मेरी राह कांटों से भरी है, परन्तु मैं उस पर चल रही हूं। मुझे यकीन है कि मुझे एक दिन सचमुच प्यार मिलेगा। मेरे लिए यह बात मानना मुश्किल है लेकिन सच यही है कि मैं कहीं ना कहीं विफल रही हूँ।
लेखक की गोपनीयता बनाये रखने के लिए तस्वीर एक मॉडल का इस्तेमाल किया गया है।
क्या आप भी ऐसी ही स्थिति में हैं या गुज़र चुके हैं? अपनी कहानी फेसबुक पर हमारे साथ साझा करें। आप नीचे टिप्पणी कर सकते हैं या हमारे चर्चा मंच का हिस्सा बन सकते हैंI