26 वर्षीय प्रतीक सिन्हा मुम्बई में रहने वाला कंप्यूटर प्रोग्रामर है।
कई बार दोस्ती कभी दोस्ती से आगे के पड़ाव तक पहुँचने में नाकामयाब हो जाती है। और यह काफी तकलीफदेह होता है। थोडा अजीब है क्योंकि जब मैं बड़ा हो रहा था तो मैं दोस्ती को काफी महत्त्व देता था और फ्रेंडशिप डे पर कलाई पर फ्रेंडशिप बैंड बांधने से लेकर हाथ से बनाये हुए ग्रीटिंग कार्डों के आदान प्रदान में शामिल रहता था। दोस्ती मेरे जीवन में उन रिश्तों में सी थी जिसके प्रति मेरे मन में गहरी निष्ठा थी।
कॉलेज का प्यार
कई सालों बाद कॉलेज के दौरान मुझे अपनी सबसे अच्छी दोस्त से प्यार होने लगा तो मुझे सब कुछ बिलकुल आदर्श लग रहा था। हमारी आपस में खूब जमती थी। यहाँ तक कि हम दोनों साथ में केरल घूमने भी गए जहां खूबसूरत समुद्र के किनारों, बैक वाटर्स में बोटिंग और स्वादिष्ट सीफूड का हमने खूब लुत्फ़ उठाया।
हमारे माता-पिता ने भी हमारी इस दोस्ती को स्वीकृति दे रखी थी। हम दोनों एक दुसरे की शक्ति थे, और हमें अलग करना नामुमकिन जैसा था। और फिर एक दिन उसका एक बॉयफ्रेंड बना। उस दिन मुझे समझ आया कि मेरा उससे जुड़ाव जितना मैं सोचता था उससे कहीं ज़्यादा गहरा निकल।
मैं उनमे से नहीं था जो किसी की खुशियों से ईर्ष्या रखे, इसलिए मैंने उन्हें अकेला छोड़ दिया। वो दोनों साथ में काफी वक़्त गुजरने लगे जिसके फलस्वरूप मेरा और उसका साथ में गुज़ारे जाने वाला समय अपने आप कम होने लगा। एक साल बाद जब मुझे मेरी पहली तनख्वाह मिली तो मैंने उसे फोन किया और कहा कि मैं उससे कुछ बात करना चाहता था। मैं निश्चय किया की अपने दिल की बात उसे बता देने का यही सही समय था।
सच का सामना
मैंने उसे बता दिया कि मैं उससे प्यार करता हूँ। उसने कहा,'हाँ मैं भी प्यार करती हूँ तुमसे'। फिर मुझे उसे बताना पड़ा कि मैं अलग तरह के प्यार की बात कर रहा था, दोस्ती से कहीं गहरा प्यार। वो कुछ पल के लिए चुप हो गयी और उसके बाद उसने मुझे ऐसी नज़रों से देखा मानो मैंने उसका विश्वास तोड़ दिया था।"तुम पागल हो चुके हो," ये कहकर वहां से चली गयी।
उसके बाद हमने कई दिनों तक बात नहीं की। मैं समझ गया था कि उसने ये बात अपने बॉयफ्रेंड नहीं बताई होगी, वरना वो ज़रूर मुझे ढूंढता हुआ आता! जब हमने फिर से बात की तो मुझे समझ आया कि हम दोनों इतने अच्छे दोस्त क्यों थे।
"सिर्फ तुम वो इंसान हो जिससे मैं अपने दिल की कोई भी बात बेझिझक और बिना डर के कह सकती हूँ। तुम हमेशा मेरी ज़रूरतों को अपनी ज़रूरतों से ऊपर रखते हो, हमेशा। हमने एक दुसरे के शब्दों के साथ साथ एक दुसरे की चुप्पी को भी समझ है।"
दोस्त बनाम लवर
वो शायद ये डायलॉग्स बोलने का रिहर्सल करके आई थी, उसके हाव भाव देखकर लग रहा था। मैं जनता था कि इस सारी बातों के बीच कहीं एक 'लेकिन' छुपा हुआ था।
"एक दोस्त की तरह मैं तुमसे सबसे ज़्यादा प्यार करती हूँ। मैं तुमसे अपनी आत्मा भी बाँट सकती हूँ। लेकिन मेरा बॉयफ्रेंड, वो मुझे सम्पूर्ण होने का एहसास कराता है। जब तक मैं तुम्हारे बारे में ऐसा महसूस नहीं करती, हम साथ नहीं हो सकते।" मैं उसकी उलझन को समझ रहा था।
इस दिन को बीते 3 साल गुज़र चुके हैं। उसने अपने बॉयफ्रेंड से शादी कर ली। मेरी अभी भी शादी नहीं हुई है। हम आज भी दोस्त हैं, शायद पहले से भी अटूट।लेकिन मन ही मन मैं आज भी उस दिन का इंतज़ार करता हूँ जब मैं उसे सम्पूर्ण होने का एहसास करा पाऊँ।