लड़कियाँ घर में काम करती हैं और लड़के बाहर
मेरी परवरिश वैसे ही हुई थी जैसे अधिकतर भारतीय बच्चों की होती हैI हमें भी यही सिखाया गया था कि लड़के बाहर जाकर रोज़ी-रोटी कमाते हैं और लड़कियां घर में काम -काज करती हैंI लड़के पढ़ने लिखने स्कूल और कॉलेज जाते हैं तो लड़कियों को खाना पकाने और सफाई के बारे में पढ़ाया जाता हैI
मैं भी बाकी लड़कियों की तरह 'घर घर' और गुड़िया के साथ खेलती हुई बड़ी हुई थीI मुझे लड़कियों की तरह रहने की अच्छी सीख दी गयी थी, जैसे कि हमें हमेशा पैर पर पैर रखकर बैठना चाहिए! तो जब तक मैं 12 साल की हुई तब तक मेरे दिमाग में यह स्पष्ट हो चुका था कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहींI
लेकिन जैसे ही मैंने किशोरावस्था में प्रवेश किया, तो मेरे मन में कुछ सवाल कुलबुलाने शुरू हो गए थे - जब लड़के भी उसी घर में रहते हैं तो वे क्यों घर के कामों में मदद नहीं करते या कर सकते? लड़कियों को बाहर के काम के लिए क्यों तैयार नहीं किया जाता जबकि वे भी स्कूल में उतना ही अच्छा या बेहतर करती हैं?
मुझे यह सवाल कचोटते रहते थेI लेकिन मैंने कभी भी इन विचारों को अपने माता-पिता या अपने दोस्तों के साथ साझा नहीं किया - क्यूंकि उनके विचार मेरे विचारों से मेल नहीं खाते थेI शादी के बाद मुझे विजय के रूप से एक ऐसा साथी मिला जो मेरी तरह सोचता थाI
अब समय आ गया था कि मैं बचपन में मिली 'ट्रेनिंग' को अनदेखा-अनसुना कर दूँ I पहले दिन से ही विजय मेरी हर सोच में मेरा साथी बन चुका थाI
चूंकि हम दोनों ही काम करते थे तो हमने यह फैसला किया था कि जो भी काम पड़ा होगा वो हम में से कोई भी कर लेगाI इससे ना तो विजय को खाना खाने के लिए इस बात का इंतज़ार करना था कि मैं आऊं तो खाना बनाऊं और ना ही मुझे बाजार से सब्ज़ी वगैरह लाने के लिए विजय पर आश्रित रहना थाI
यह क्या अनर्थ हो रहा है
कुछ महीनों में ही यह साफ़ हो गया था कि विजय रसोई के कामों में बहुत पारंगत थाI वो ख़ुशी-ख़ुशी सुबह हम दोनों के लिए लंच और शाम की चाय तैयार कर लेता थाI मैं घर की सफ़ाई और रखरखाव में अच्छी थीI इससे हमें बिना किसी तनाव के लिए ऑफिस के लिए समय से तैयार होने में मदद मिल जाती थीI मुझे काम और घर के संतुलन में किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा था क्योंकि मुझे कभी भी यह चिंता नहीं होती थी कि घर का काम पड़ा हुआ है और मैं अकेले वो सब कैसे करूंगीI
लेकिन जल्द ही हमारे आस-पड़ोस वालों को हमारे इस 'अजीबोगरीब' तालमेल से परेशानी होने लगीI ज़िंदगी जीने का यह तरीका हमारे आस-पास वालों के लिए बिलकुल नया था - यहाँ ज़्यादातर महिलाएं गृहिणियां थीं और पुरुषों का ध्यान उनकी पत्नियों द्वारा रखा जाता थाI जब वे विजय को रसोई में खाना पकाते या बालकनी में कपड़े सुखाते हुए देखती तो अक्सर उसे ताने दिया करती थी - 'क्या निशा आज बीमार है कि आपको ये सब करना पड़ रहा है?'
उनके हाथ का खाना
एक दिन जब मैं पड़ोस की महिलाओं के साथ बैठी थी, तो किसी ने मुझसे पूछा कि विजय सबसे अच्छा क्या बनाता था? मेरे मुंह से बरबस ही निकल गया कि "विजय के हाथ के बने राजमा चावल दुनिया की सबसे अच्छी डिश है, आप लोगों को भी एक बार ज़रूर चखने चाहिएI" अचानक ही हर कोई चुप हो गया था।
मेरी बात सुनकर पड़ोस वाली चाची बोली, 'हे भगवान निशा, यह क्या अनर्थ कर रही होI हर रोज़ रसोई में विजय से खाना बनवाना ठीक नहीं हैI कभी कभार शौकिया बनाना चाहे तो समझ आता है लेकिन तुम तो हर रोज़ ही उस बेचारे से काम करवाने लगी होI" मैं उनसे कोई बहस नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने जवाब में केवल मुस्करा दिया।
लेकिन मेरे दिमाग में बार-बार रमा चाची के शब्द गूँज रहे थेI वो खुद एक हिंसात्मक रिश्ते में थीं लेकिन हर बार अपने पति का बचाव करती थी। हर किसी को उनके पति के गुस्से के बारे में पता थाI वो कैसे उनके ऊपर चिल्लाता था और बदतमीज़ी करता थाI यहाँ तक कि वो उन पर हाथ भी उठा चुका थाI लेकिन जवाब में रमा चाची दरवाज़ा बंद करने के अलावा कुछ नहीं कर पाती थीI वो भी इसलिए जिससे कि उनके पति की आवाज़ बाहर तक ना जाएI
बच्चे बिगड़ रहे हैं
एक दिन वो हमारे घर चाय के लिए आयीI चाय की चुस्कियां लेते हुए उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि एक दिन उनकी बेटी शोना ने विजय को घर की सफ़ाई करते हुए देखा थाI शरारती हंसी के साथ उनके अगले शब्द थे 'कम से कम हमारे बच्चों को तो मत बिगाड़ोI कल के लिए गलत सीख मिल रही हैI मैं तो तेरे चाचा जी को चाय का एक कप तक नहीं उठाने देतीI"
इतना सुनना मेरे लिए काफ़ी थाI मैं अब तक अपने और अपने पति के ऊपर किया जा रहे कटाक्ष की एक मूक दर्शक बनी हुई थी लेकिन अब इन लोगों को जवाब देने का समय आ गया थाI
मैंने कहा, 'अगर चाचा जी खुद के लिए एक कप चाय भी नहीं बना पाते तो इसमें गर्व की कोई बात नहीं हैI हम सभी जानते हैं कि बंद दरवाजे के पीछे वो आपके साथ क्या करते हैंI शोना निश्चित रूप से खराब हो जाएगी, लेकिन हमारे कारण नहीं'I और मैं फ़ट चुकी थीI
हमारी अलग दुनिया
रमा चाची को समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहेंI अभी वो शब्दों की खोज ही कर रही थी कि मैंने आगे कहा 'शोना एक बहुत ही चतुर लड़की है चाची और उसके आगे एक उज्ज्वल भविष्य है। उसका दिमाग इस रूढ़िवादी सोच से ख़राब मत कीजिये कि एक लड़के को क्या-क्या नहीं करना चाहिए और एक लड़की को कितना सब करना चाहिए'।
हमारी बातें सुनकर विजय भी बाहर आ गया था और उसने भी मेरा साथ देते हुए कहा 'अरे, आखिर यह मेरा भी तो घर है तो इसके काम की ज़िम्मेदारी मेरी भी तो हुईI मुझे खुशी है कि मेरी मां ने मुझे और मेरी बहन को सभी काम सिखाएंI वैसे उम्मीद करता हूँ कि आपको चाय पसंद आयी होगीI यह मेरी मां की ख़ास रेसिपी है!
चाची की आँखों में आंसू आ चुके थे लेकिन उन्होंने चाय पीना जारी रखाI उसके बाद वो खड़ी हुई और 'दुनिया के रीति रिवाज़' बदलने के हमारे इस ख़ास तरीके के लिए हमें आशीर्वाद देकर अपने घर के लिए रवाना हो गयीI अभी भी हमारे पड़ोसी हमारा मज़ाक उड़ाते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने विजय के हाथ की कड़क चाय और राजमा-चावल चख लिए हैंI
नाम बदल दिए गए हैं
तस्वीर के लिए मॉडल का इस्तेमाल किया गया है
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