कुमार* दिल्ली विश्वविद्यालय में डॉक्ट्रेट का विद्यार्थी है
गलती कहाँ हुई और किससे
एक साल डेटिंग के बाद हम दोनों ने साथ रहने का फैसला किया। नए रिश्ते की दीवानगी ने हमारी आंखों पर पर्दा डाल दिया था। मैं अपने नियंत्रण करने की आदत और उसके हिंसक बर्ताव से अनभिज्ञ थाI लेकिन एक साल खत्म होने से पहले हम दोनों का छुपा हुआ रूप सामने आने लगा।
आज जब मैं मुड़ के हमारे बीच हुई बहस के कारणों की वजह के बारे में सोचता हूं, तो मुझे नहीं लगता कि इस सब के लिए केवल शरद जिम्मेदार था। जो हुआ उसके लिए जिम्मेदारी मेरी भी है। मैं काफी समय से अकेला रह रहा था और मुझे उसी तरह रहने की आदत थी। जैसे मुझे किचन एकदम चमचमाती हुई पसंद थी, बर्तन और फर्श हमेशा साफ़ चाहिए थे और घर में गंदे कपड़े नहीं होने चाहिए थे, लेकिन शरद का नज़रिया इस सब के बारे में कुछ और था खासकर क्योंकि वह मुझसे पांच साल छोटा था।
मैं अक्सर उसे इस बात का ताना देता था कि वह घर के कामकाज में मेरा हाथ नहीं बताता था। और वह बस हर बार यह कहकर टाल देता था कि उसे ऐसे ही रहने की आदत है और उसकी यह बात सुनकर मुझे और गुस्सा आता था।
सच का सामना
एक दिन, हम कॉलेज से वापस आए और उसने अपने दिल की सारी बात मुझसे कह डाली। उसने कहा कि मेरे व्यवहार से उसे दबा हुआ महसूस होता है और हमारे रिश्ते में उसकी बात की कोई कीमत नही बची थी। उसने ये भी कहा कि बार बार उस पर सवाल खड़े होना भी उसके लिए परेशानी की वजह बन रहा था।
मुझे शायद उसकी बात पर ध्यान देना चाहिए था और अपना नजरिया बदल लेना चाहिये था लेकिन उस समय मुझे सिर्फ़ कुंठा हो रही थी। मेरे अंदर ना खुद को बदलने की क्षमता थी और ना ही उसे बदलने का धैर्य। शायद इसलिए मैं वो सब करता रहा जो अब तक करता आ रहा था। इतना ही नही, झुंझला के कारण मैंने सामान वगैरह भी फेंकना शुरू कर दिया थाI वो इन सबसे डरने लगा था। लेकिन इस रिश्ते की बढ़ती कड़वाहट सिर्फ़ मुझ पर बुरा असर नहीं दिखा रही थी।
आपसी हिंसा
‘शुरुवाती हनीमून’ काल खत्म होने के बाद बहस के दौरान मुझे अपशब्द कहना उसके लिए सामान्य हो चला था। शरद गुस्से में अक्सर मुझे ‘सनकी, मतलबी, और पागल’ बुलाने लगा लेकिन गुस्सा शांत होने के बाद वो माफ़ी मांगने लगता था। मुझे बुरा लगता था लेकिन समय के साथ मैं फिर से सामान्य हो जाता था।
यही सब लगभग ढाई साल तक चलता रहा। सबसे बुरा तब हुआ जब एक बहस के दौरान वह शारीरिक हिंसा पर उतर आया। उस दिन की याद अभी भी मेरे दिमाग में बिल्कुल ताजा है। उसने मेरी गर्दन पकड़ी, मेरा चेहरा दीवार की तरफ धकेल दिया और मुझ पर चिल्लाता रहा। इस रिश्ते को लेकर मेरा नज़रिया इस पल के बाद हमेशा के लिए बदल गया और हिंसा का सही मतलब मुझे अब समझ आने लगा।
मदद
कड़वाहट का यही सिलसिला चलता रहा। मैं यह बात समझ गया था कि अब हमें जल्द से जल्द बाहरी मदद की जरूरत थी। शरद को एक हल्का दिल का दौरा भी पड़ा और उसे डॉक्टर ने तुरंत कुछ दवाओं का सेवन करने की सलाह दी। लेकिन मैं जानता था कि यह ज़ख्म सिर्फ शारीरिक नहीं थे और उसे किसी मनोवैज्ञानिक सलाह की भी जरूरत थी।
हमने एलजीबीटीक्यूएआईडी (LGBTQAID) समुदाय में एक चिकित्सक की तलाश की और जब हम साथ में वहां गए तो हिंसा और व्यवहारिक समस्या के समाधान की दिशा में हमें नए द्वार खुलते प्रतीत हुए।
एक दिन मैं टीवी पर बिग लिटिल लाइस नामक प्रोग्राम देख रहा था जिसमें कि शादीशुदा जोड़ों की समस्याओं के बारे में कुछ दिखाया जा रहा था। मैंने उसे भी देखने को भी कहा लेकिन वह कुछ एपिसोड के बाद और आगे नहीं देख सका क्योंकि वे परिस्थितियां उसे हमारे जीवन से मिलती जुलती लग रही थीं। इस समय हमें समझ आया कि हम दोनों एक परस्पर हिंसात्मक रिश्ते के शिकार थे। मैं शारीरिक हिंसा का शिकार था लेकिन मैंने अपने व्यवहार से उसे ऐसा करने के लिये उकसाया भी ज़रूर होगा। तो क्या वो भी एक पीड़ित था?
एक उतार चढ़ाव से भरा रिश्ता
इतने सालों बाद पहली बार मुझे अपने रिश्ते में इंटिमेट पार्टनर हिंसा के लक्षण दिखाई देने लगे। हमारा रिश्ता उतार चढ़ाव से भरा रहा और कहीं न कहीं हमने एक दूसरे को कभी ना भरने वाले ज़ख्म दे दिये। हम अब ज़्यादा बाहर नही जाते, नींद भी सही तरीके से नही आती और हम शराब और धूम्रपान के आदि हो चुके हैं। मुझे पता नही कि आगे क्या होने वाला है लेकिन मुझे ये पता है कि जीवन को सामान्य करने के लिए हमें लगातार एक दूसरे का साथ देना होगा।
*नाम बदल दिए गए हैं
तस्वीर में एक मॉडल का इस्तेमाल किया गया है
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