आंटी जी, मैं बीवी हूं या फ्री की बाई?
Love Matters India

आंटी जी, मैं बीवी हूं या फ्री की बाई?

द्वारा Auntyji फरवरी 20, 04:11 बजे
आंटी जी, मैं बहुत परेशान हूं। ऐसा लग रहा है कि मैं अपनी शादी में सब कुछ अकेले संभाल रही हूं। घर, खाना, ससुराल, काम – हर चीज़ मेरी जिम्मेदारी बन गई है। मेरे पति को समझ ही नहीं आता कि मुझे भी मदद की ज़रूरत है। मैंने 'Mrs.' मूवी देखी, और लगा कि ऋचा की कहानी मेरी ही कहानी है। क्या वाकई रिश्ते ऐसे ही होते हैं? मैं क्या करूं? - सौम्या, समस्तीपुर

अपना टाइम लाना पड़ेगा!

सौम्या बेटा, तू अकेली नहीं है! कई लड़कियों को लगता होगा कि उनकी ज़िंदगी भी ऋचा जैसी ही है, और उनके पति या पार्टनर कहीं न कहीं दिवाकर से मिलते-जुलते हैं। लेकिन असली मुद्दा ये है कि ऐसी कहानियां सिर्फ फिल्मों तक ही सीमित क्यों रह जाती हैं? हर कुछ महीनों में कोई फिल्म, कोई घटना हमें याद दिलाती है कि औरतों की ज़िंदगी में कुछ बदलने की ज़रूरत है, लेकिन फिर सब अपनी पुरानी आदतों में लौट जाते हैं।

Mrs. जैसी फिल्में असली ज़िंदगी का आइना होती हैं, लेकिन अगर हम सिर्फ फिल्म देखकर इमोशनल हो जाएं और असल में कुछ न बदले, तो इसका कोई फायदा नहीं। रिश्तों में बराबरी (equality) अपने आप नहीं आती, इसे लाना पड़ता है! जब तक लड़कियां खुद अपने हक के लिए नहीं खड़ी होंगी, तब तक बदलाव सिर्फ स्क्रीन पर ही दिखेगा, हकीकत में नहीं।

कुछ आदतें तो बदलनी ही होंगी!

समस्या ये नहीं है कि सिर्फ दिवाकर जैसे पति होते हैं, समस्या ये है कि उनकी परवरिश ऐसे की गई होती है कि उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का अहसास ही नहीं होता।

  • घर आते ही ठंडा पानी चाहिए।
  • खाने की प्लेट उठाने का ख्याल भी नहीं आता।
  • बिस्तर तक कपड़े मिलने चाहिए।
  • हफ्ते में एक बार खाना बना दें तो एहसान कर दिया!

अब बात ये है कि अगर एक बार में ही पति या पार्टनर बदल जाएं, तो फिर इतनी फिल्में क्यों बनतीं? लेकिन छोटी-छोटी चीजों से शुरुआत की जा सकती है, जैसे कि –

  • खाने के बाद प्लेट खुद उठाने को कहो।
  • अपने शौक से समझौता मत करो। अगर तुझे डांस पसंद है, तो बस कर!
  • सामने वाले को अपने कपड़े खुद प्रेस करने और खुद से रखने के लिए कहो।
  • हफ्ते में एक दिन तू आराम कर और उसे खाना बनाने को बोल।
  • दोनों साथ किचन में टाइम बिताओ – प्यार भी बढ़ेगा और जिम्मेदारी भी!
  • सेक्स लाइफ पर खुलकर बात करो – क्योंकि तू कोई मशीन नहीं, तेरी भी इच्छाएं हैं!

बदलाव सिर्फ एक दिन का नहीं!

बेटा, सबसे बड़ी गलती ये होती है कि हम खुद को "अच्छी बीवी" या "अच्छी पार्टनर" बनने के चक्कर में अपनी पहचान ही खो देते हैं। अगर हम शुरू से ही अपनी जगह बनाएंगे, तो सामने वाला भी बदलना सीखेगा। जैसा कि मेरी बेटी ने किया था…

वो कहानी फिर कभी, लेकिन इतना याद रखना –
"अपना टाइम आएगा" सिर्फ कहने से नहीं, उसे खुद लाना पड़ता है!"

अब फैसला तेरा है, सौम्या! फिल्म देखकर रोना है या फिर अपनी कहानी बदलनी है?

 

 

कोई सवालहमारे फेसबुक पेज पर लव मैटर्स (एलएमके साथ उसे साझा करें या हमारे इनबॉक्स में पूछें। हम Instagram, YouTube  और Twitter पर भी हैं!

 

 

क्या आप इस जानकारी को उपयोगी पाते हैं?

Comments
नई टिप्पणी जोड़ें

Comment

  • अनुमति रखने वाले HTML टैगस: <a href hreflang>