bindi, mangalsutra
Shutterstock/Matt Hahnewald

जब अफ़साना ने मंगलसूत्र पहना!

द्वारा Niharika अप्रैल 20, 02:00 बजे
‘दीदी, आप नहीं जानती कि इन दिनों हम पर क्या बीत रही है। कुछ लोगों की ग़लती का खामियाज़ा हम सभी को भुगतना पड़ रहा है'।अफसाना बिंदी और मंगलसूत्र पहनकर मुझसे अपनी मजदूरी लेने आई थी, तब उसने अपनी आपबीती सुनायी। कोरोना वायरस ने सिर्फ़ उनकी आजीविका ही नहीं बल्कि मानसकि शांति को भी छीन लिया है, निहारिका ने लव मैटर्स इंडिया के साथ एक बातचीत शेयर की।

35 वर्षीय निहारिका गुड़गांव में ऑनलाइन मीडिया में एडिटर हैं।

रोज़ की ही तरह वो भी एक सामान्य सी सुबह थी, मैं अपने कामों में व्यस्त थी। मैं एक कप कॉफ़ी और लैपटॉप के साथ अपने कमरे में आराम से बैठी थी। अचानक मेरे अपार्टमेंट कॉम्पलेक्स के मेन गेट से से फ़ोन आया। मेरी कामवाली अफ़साना मुझसे मिलने आयी थी। चूंकि लॉकडाउन के कारण किसी को भी घर के अंदर आने की इज़ाज़त नहीं थी इसलिए मुझे ही बाहर जाकर उससे मिलना पड़ा। मैंने अपना फेस मास्क पहना और बाहर आ गयी।

बिना मास्क पहने घर से बाहर कदम रखे या अपार्टमेंट से बाहर निकले जाने कितने दिन हो गए थे। हम फिर से नॉर्मल लाइफ कब जिएंगे? क्या लाइफ दोबारा कभी नॉर्मल हो भी पाएगी? मेरे दिमाग में यही सब ख्याल चल रहा था, मैंने देखा कि हमारे कॉम्पलेक्स के किराने की दुकान पर सामान लेने के लिए लोग कतार में खड़े हैं और फिर भी एक दूसरे से दूरी बनाए रखे हैं। कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। सभी के चेहरे पर मास्क थे, मेरी तरह। ये सब मैं देख रही थी कि किसी ने आवाज लगायी।

‘दीदी, मैं यहां हूँ, 'जैसे ही मैं गेट के पास आयी, अफ़साना ने तेज आवाज़ में कहा। उसके बाद उसने दुपट्टे से अपना थोड़ा सा चेहरा ढक लिया। मैं सच में उसे देखकर बहुत ख़ुश हुई। हमें मिले और बातें किए हुए लगभग एक महीना हो गया था। वह मेरे घर पर रोज़ दिन में दो बार आती थी और बहुत गप्पे भी मारती थी! अब वह अपने पांच बच्चों और पति के बारे में बात कर रही थी जो पास ही के एक इलाके में माली का काम करता है।

जब मैं उसके पास आयी तो मुझे वह कुछ अलग दिख रही थी। उसके माथे पर लाल रंग की बिंदी थी और गले में काले रंग का लंबा सा मंगलसूत्र लटक रहा था। उसने यह सब कभी नहीं किया था, फिर आज क्यों? मैंने सबसे पहले उससे पूछा कि वह कैसी है, उसके बच्चे कैसे हैं और फिर कहा, मैंने तो तुम्हें पहचाना ही नहीं। तुम तो आज एकदम अलग ही लग रही हो। ये सब क्यों पहना? '

उसने कहा, ‘दीदी, आप तो जानती ही हैं कि हर जगह खबर उड़ी है कि कुछ लोग जानबूझकर यह महामारी फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। अब हमारे पड़ोस में ही लोग हम पर नज़र रखे हुए हैं। ख़ासतौर पर तब जब हम जरूरी सामान खरीदने के लिए बाहर जाते हैं। इसलिए जब मैं बाहर जाती हूं तो ये सब (अपनी बिंदी और मंगलसूत्र की तरफ इशारा करते हुए) पहन लेती हूं।

‘इससे क्या होता है?’ मैंने उसकी बातों पर विश्वास न करते हुए पूछा।

उसने कहा, "जब मैं घर से बाहर निकलती हूं, तो इसे पहनने से टेंशन नहीं होता है।"

मैंने कहा, ‘क्या सिर्फ़ चेहरे को ढकने से समस्या हल नहीं होती है? हम सब भी तो यही कर रहे हैं ना।

‘दीदी, आप नहीं जानती है कि हम सब पर क्या गुजर रही है। बस कुछ लोगों की गलती का खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है, 'उसने निराशा जाहिर करते हुए कहा। उसने आगे बताया कि कुछ एनजीओ ज़रूरी सामान जैसे आटा, चावल और दाल देकर उनकी मदद कर रहे थे। लेकिन मेरे पड़ोसियों ने उन्हें भड़का दिया कि हम लोगों को यह सब नहीं देना चाहिए। उनके अच्छे इरादे नहीं हैं। वे चाहते हैं कि हम सभी बीमार पड़ जाएं। '

मैंने टॉपिक बदल दिया और उससे पूछा कि उसने घर पर किन चीज़ों की व्यवस्था कर रखी है। उन्होंने घर पर सूखा राशन रख लिया था और अभी तक ठीक से गुज़ारा चल रहा था। अब उनके पास कैश खत्म हो गया था इसलिए वह यहां मुझसे मिलने आयी थी।

हालांकि उसने बताया कि सुबह नहाने और टॉयलेट के लिए उन्हें बहुत परेशानी होती है। चूंकि हर कोई घर पर है इसलिए उसे और उसकी बेटी को काफ़ी मुश्किल हो रही है। यहां तक कि सुबह 4 बजे उठने पर भी बाथरुम के आसपास बहुत भीड़ रहती है क्योंकि 30 घरों के लिए सिर्फ़ एक बाथरुम है।

हम दोनों कुछ और मिनटों तक बातें करते रहे लेकिन बाहर गर्मी इतनी ज़्यादा थी कि लंबे समय तक खड़े होकर बात करना मुश्किल था। मैंने उसे पैसे दिए और उससे कहा कि फोन रिचार्ज कराने में मदद की जरूरत होगी तो बताना। उसका जवाब सुनकर मैं हैरान रह गई।

'उसने कहा, ‘जब मेरे पास काम नहीं है, तो फोन रिचार्ज कराने की क्या ज़रूरत? मैं उस पैसे को सब्जी खरीदने के लिए बचाऊंगी।’

फिर अचानक मुझे वो सभी सलाह याद आ गयी जो हमने इस समय एक दूसरे से कनेक्ट रहने के बारे में पढ़ा था।

जैसे कि घर पर रहना, परिवार के साथ टाइम बिताना, जूम पर मीटिंग, घर से काम करना, किसी चीज की चिंता न करना सिर्फ़ सेहत के बारे में सोचना - अचानक यह सब मुझे ऐशो-आराम की तरह लगने लगा।

यह सब सोचते हुए मैं घर के अंदर चली आयी। अंदर आते ही मैंने अपना चप्पल और मास्क उतारा और अपने हाथों को अच्छी तरह साफ़ किया। इसके बाद मैं लैपटॉप पर काम करने के लिए अपने कमरे में आ गई- इस सौभाग्य के लिए मैं शुक्रगुजार हूं।

पहचान की रक्षा के लिए, तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है और नाम बदल दिए गए हैं।

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