No help at home
Shutterstock/Abir Bhattacharya

'मैं मदद के लिए तरस गई थी'

सोनाली विकलांग है। उषा आंटी उसकी सभी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने में उसकी मदद करती हैं। लेकिन लॉकडाउन होने के बाद उषा आंटी अब उसके घर नहीं आ पा रही हैं। फिर सोनाली ने अपनी लाइफ कैसे मैनेज की? उसने लव मैटर्स इंडिया के साथ अपनी कहानी शेयर की।

24 वर्षीय सोनाली एक फ्रीलांस राइटर हैं। उन्हें सेरेब्रल पाल्सी नामक बीमारी है - यह एक तरह की विकलांगता है जिसमें चलने-फिरने या उठने बैठने में दिक्कत होती है और इससे मांसपेशियाँ भी प्रभावित रहती हैं।

सोशल डिस्टेंसिंग का आदेश

मार्च महीना ख़त्म होने में कुछ ही दिन बचे थे जब हमारे प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन की घोषणा की। देर शाम का समय था और उस समय मैं अपने बेड पर थी। मेरे दिमाग में सबसे पहला ख्याल यही आया- उषा आंटी अब घर कैसे आएंगी?

वह मेरी केयरटेकर हैं और अभी कुछ ही देर पहले वो दिन की ड्यूटी पूरी करके निकली थी। वह 12 सालों से मेरे साथ हैं। उषा आंटी एक अधेड़ उम्र की ख़ुशमिजाज स्वभाव वाली महिला हैं। 

उनकी चटपटी बातें और गॉसिप सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता था। वह हमारी परिवार का एक हिस्सा बन गयी हैं। वह हमेशा मेरी बातों को ध्यान से सुनती समझती हैं लेकिन कभी भी जज नहीं करती हैं।

वो दिन में दो बार आती हैं। सुबह मुझे नहलाने और तैयार करने के लिए। फिर शाम को मेरे कपड़े बदलने, बालों में कंघी करने और वॉशरूम जाने में मेरी मदद करने के लिए। यहां तक कि वो पीरियड्स के दौरान भी मेरी मदद करती हैं।

बेबसी

अगली सुबह मैं अपनी खिड़की के पास बैठकर उषा आंटी के आने का इंतज़ार करने लगी। मुझे लग तो नहीं रहा था लेकिन फिर भी एक उम्मीद थी कि शायद वो आएंगी। लेकिन जब वो नहीं आयीं तो मैंने उन्हें फोन किया। उनका फोन बंद था। मेरी मम्मी एक टीचर हैं और उनके पास अपना ही बहुत काम रहता है। फिर भी उन्होंने मेरे लिए कुछ समय निकाला और सुबह के मेरे कुछ कामों में मेरी मदद की।

दोपहर में उषा आंटी का फोन आया। उन्होंने कहा, ‘मैंने आपके घर आने की कोशिश की थी लेकिन पुलिस ने मुझे रोक दिया। जब मैंने पुलिस वालों को आपकी समस्या बताई तो उन लोगों ने कहा कि मुझे कर्फ्यू पास बनवाना पड़ेगा।’

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अब मेरा क्या होगा, यह सोचकर मैं रोने लगी। आज मैं जितनी बेबस और लाचार थी, शायद अपने पूरे जीवन में कभी नहीं हुई। मुझे रोते हुए सुनकर आंटी ने मुझे समझाया और कहा कि मुझे भी आपकी उतनी ही चिंता है लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि कर्फ्यू पास कैसे बनवाते हैं। 

राहत की सांस 

मुझे रोते हुए सुनकर मम्मी और पापा मेरे कमरे में आ गए। दोनों लोगों ने मुझे दिलासा दिया कि वे मेरी देखभाल कर लेंगे। पापा ने हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करके पता किया कि उषा आंटी के लिए कर्फ्यू पास कैसे बनवा सकते हैं। उन्होंने उषा आंटी से उनके डिटेल्स लेने के लिए फोन किया।

अगले दो दिनों तक उनके आने की कोई उम्मीद नहीं थी। मैंने अपनी मम्मी की मदद से किसी तरह अपना कुछ काम किया। मैं अपनी हर चीज़ को लेकर बहुत तनाव महसूस करने लगी थी और दो दिनों तक ठीक से सो नहीं पायी।

हालांकि तीसरे दिन पापा ने बताया कि हमारे एक पड़ोसी पुलिस में काम करते हैं और उनकी मदद से उषा आंटी का कर्फ्यू पास बन गया है। 

आख़िरकार मेरा इंतज़ार ख़त्म हुआ। अगली सुबह उषा आंटी हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए घर आईं। मैं उन्हें कसकर गले लगाना चाहती थी लेकिन उनके सैनिटाइज होने तक हम दोनों को रुकना पड़ा। हमने उन्हें एक जोड़ी नई चप्पलें दी, जिसे वह हमारे घर पर पहन सकती थी। मेरी मम्मी ने उन्हें किसी से भी सीधे संपर्क से बचने के लिए एक जोड़ी दस्ताने और मास्क पहनने की सलाह दी।

'मैंने उनसे कहा कि, ‘मैंने आपको बहुत याद किया आंटी..। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, 'मैंने भी'। हम दोनों एक साथ हंस पड़े। अचानक से ज़िंदगी में सब कुछ आसान लगने लगा। मुझे मालूम है अब मैं चैन से सो सकती हूं।

इस संक्रमण से बचाव के लिए मैंने उन्हें दिन में सिर्फ़ एक बार आने और शाम 5 बजे तक जाने के लिए कहा। हम काफ़ी सावधानी बरत रहे हैं और उन्हें भी ऐसा करने के लिए कह रहे हैं।
 

तस्वीर में मौजूद व्यक्ति एक मॉडल है, गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैं।

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लेखिका के बारे में: विनयना खुराना दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.फिल कर रही हैं। उनको सेरेब्रल पाल्सी लेकिन यह उनकी पहचान नहीं है। वह एक लेखिका, कवि और हास्य कलाकार हैं। वह फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और लिंक्डइन पर भी हैं।

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