मैं कॉलेज के दिनों में अपने दोस्तों के साथ अच्छा समय बिताती थी। क्लास खत्म होते ही हम कैंटीन में मिलते, हंसी-मज़ाक करते और कभी-कभी छोटे-छोटे प्लान बनाकर घूमने भी चले जाते। मुझे गाना, डांस करना और दोस्तों के साथ बेफिक्र बातें करना बहुत पसंद था। उन दिनों मेरी पहचान ही मेरी हंसी और दोस्ती थी।
फिर एक दिन मेरी मुलाक़ात आरव से हुई। शुरुआत में हम बस दोस्त थे लेकिन धीरे-धीरे हमारा रिश्ता गहरा हो गया। मुझे लगा जैसे अब ज़िंदगी को एक नया मतलब मिल गया हो। मैं उसके साथ रहते-रहते इतनी खो गई कि मेरी पूरी दुनिया वही बन गया। उसके साथ घंटों बातें करना, उसके साथ शॉपिंग पर जाना, कॉफी पीना या यूं कहूं तो मेरी दुनिया आरव में सिमटकर रह गई थी।
धीरे-धीरे मैंने अपने दोस्तों से दूरी बनानी शुरू कर दी। जब भी कोई मुझे बुलाता, मेरा जवाब होता, “यार, अभी टाइम नहीं है। मैं आरव के साथ हूं।”
पहले जो मैं हर वक्त दोस्तों के बीच रहती थी, अब लगभग ग़ायब सी हो गई। मुझे लगा जैसे प्यार ही सबकुछ है और बाकी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं। मैं आरव की पसंद के हिसाब से कपड़े पहनने लगी, वही फिल्में देखने लगी जो उसे पसंद थीं और अपनी आदतें भी बदलने लगी लेकिन एक दिन मुझे बहुत बड़ा सदमा लगा।
उस दिन आरव का बर्थडे था। मैंने हफ्तों मेहनत करके एक सरप्राइज़ पार्टी प्लान की थी। मुझे लगा था कि वो बहुत खुश होगा लेकिन जब मैंने उसे बुलाया, तो उसने ठंडी आवाज़ में कहा, “ये सब बच्चों जैसी हरकतें हैं। मुझे तुम्हारा ये ओवर-एक्साइटेड होना अच्छा नहीं लगता। तुम थोड़ी मैच्योर क्यों नहीं हो सकती?”
उस पल जैसे मेरी पूरी दुनिया टूट गई। मुझे ऐसा लगा कि उसने किसी नये खिले फूल को कुचल दिया हो। मैं तो खुद को भूलकर सिर्फ उसकी ख़ुशी में जी रही थी और उसके लिए वो भी काफ़ी नहीं था।
रात को आईने में खुद को देखा तो आंखों से आंसू निकल पड़े। मन ही मन मैं खुद से पूछती रही, “कहां खो गई मैं? क्यों मैंने सिर्फ किसी और को खुश करने के लिए खुद को भूला दिया? क्या मेरी असली पहचान सिर्फ यही रह गई है कि मैं आरव की गर्लफ्रेंड हूं?”
उस रात मैंने फैसला किया कि अब खुद को दोबारा ढूंढूंगी।
मैंने धीरे-धीरे अपने पुराने दोस्तों से बात करना शुरू किया। हो सकता है कि इस वक्त आपको सैंया जी से ब्रेकअप कर लिया कि वो लाइन्स याद आ गई हो, कॉलेज के सहेलियों से पैचअप कर लिया, तो हां मैंने यही किया। पहले तो डर लग रहा था कि शायद वो नाराज़ होंगे लेकिन उन्होंने मुझे गले लगाकर कहा, “हम तो हमेशा यहीं थे। बस तुम ही दूर चली गई थी।”
वो लम्हा मेरे लिए बहुत बड़ा था। मैंने फिर से डांस क्लास जॉइन की, गाने लगी और सबसे ज़रूरी मैंने अपने साथ वक्त बिताना शुरू किया। अब मैं सिर्फ किसी की परछाईं नहीं थी। मैं फिर से “मैं” बन गई थी।
आरव अब भी ज़िंदगी में था लेकिन अब उसकी पकड़ मुझ पर वैसी नहीं रही। मैंने सीख लिया था कि किसी भी रिश्ते में खुद को खो देना प्यार नहीं होता। असली प्यार वही है, जब मैं अपने आप से भी उतना ही प्यार करूं जितना किसी और से।
कुछ महीनों बाद जब मैं दोस्तों के बीच बैठी हंस रही थी, तो लगा जैसे ज़िंदगी वापस मेरी हो गई है। अब मैं समझ चुकी थी कि रिश्ते ज़िंदगी का हिस्सा हैं, पूरी ज़िंदगी नहीं।
आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मुस्कुरा देती हूं क्योंकि उस दर्द ने मुझे सबसे खूबसूरत सीख दी कि जब वी मेट का डायलॉग याद कर लेना - मैं खुद की फेवरेट हूं।
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