राहुल गांव का सीधा-सादा लड़का था। पढ़ाई में अच्छा और घरवालों की उम्मीदों का बोझ उसके कंधों पर साफ दिखता था। जब उसने दिल्ली की यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, तो जैसे उसकी दुनिया ही बदल गई। बाहर के तौर-तरीके, खुले विचार और रिश्तों की नई परिभाषाएं सबकुछ उसके लिए नया था।
वहीं कॉलेज कैंपस में उसकी मुलाकात हुई श्रेया से, जो बहुत तेज़, आत्मनिर्भर और अपने फैसले लेने में एकदम क्लीयर लड़की थी। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गहराने लगी। राहुल को श्रेया की बेबाकी में एक आकर्षण दिखा, तो श्रेया को राहुल की सादगी में एक सच्चाई महसूस हुई।
एक दिन दोनों फ्रेशर पार्टी से लौटते वक्त अकेले थे। धीरे-धीरे माहौल में मदहोशी छाने लगी और बात स्पर्श तक पहुंच गई फिर पहली बार दोनों ने अपने रिश्ते की रेखा पार की। सुबह जब राहुल ने श्रेया से पूछा, "हम अब क्या हैं?" तो श्रेया मुस्कराई और बोली, "हम दोस्त हैं, जिसे फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स कहते हैं। कोई कमिटमेंट नहीं, कोई बंधन नहीं।"
राहुल थोड़ा उलझ गया क्योंकि उसे श्रेया की बात समझ नहीं आई। उसके गांव में तो दोस्ती और प्यार के बीच कोई लकीर नहीं होती थी। अगर कोई लड़की के साथ इतना करीब हो जाए, तो शादी की बात अपने आप जुड़ जाती है लेकिन यहां ये फ्रेंड्स विथ बेनिफिट्स उसके लिए एक नया अनुभव था।
हालांकि राहुल बार-बार श्रेया से उस रात के बारे में बात करने की कोशिश करता और वो हर बार बात को नज़रअंदाज़ कर देती लेकिन एक दिन श्रेया ने साफ-साफ कह दिया, "मैं अभी किसी रिलेशनशिप के लिए तैयार नहीं हूं लेकिन मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगता है और तुम्हारी बांहों में सुकून भी मिलता है। इसका मतलब ये नहीं कि हम शादी कर लें क्योकि जो कुछ हुआ, उसमें हम दोनों की कंसेंट थी और अभी तो हम पढ़ रहे हैं, तो प्यार में मैं नहीं पड़ सकती।"
एक दिन राहुल ने उससे कहा, "श्रेया, मुझे लगता है मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं।"
श्रेया चुप हो गई क्योंकि समझाने के बावजूद राहुल अब भी वहीं खड़ा था। उसने राहुल का हाथ पकड़ा और कहा, "तुम बहुत अच्छे हो लेकिन मेरा जवाब अभी भी वही है, जो मैंने पहले कहा था। मैं नहीं चाहती कि तुम्हें मेरे कारण बुरा लगे।"
राहुल कुछ दिनों तक उलझा रहा मगर धीरे-धीरे उसने खुद को समझा लिया। उसने महसूस किया कि श्रेया को बदलना उसके हाथ में नहीं है लेकिन अपनी सोच को बदलना उसके वश में है। अब वो श्रेया से मिलने पर पहले जैसी बेचैनी महसूस नहीं करता था।
एक दिन श्रेया ने हैरानी से पूछा, "तुम पहले जैसे सवाल क्यों नहीं करते?" राहुल मुस्कराया और बोला, "क्योंकि अब मुझे समझ आ गया है कि तुम्हें जैसा होना है, वो तुम्हारी मर्जी है। मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगता है, यही काफी है।"
श्रेया ने पहली बार राहुल की आंखों में वही सुकून देखा, जो अब तक सिर्फ वो उसे दिया करती थी। दोनों ने साथ चलते हुए महसूस किया कि रिश्तों को नाम देने से ज़्यादा ज़रूरी है एक-दूसरे की इज़्ज़त और समझ।
कोई सवाल? हमारे फेसबुक पेज पर लव मैटर्स (LM) के साथ उसे साझा करें या हमारे इनबॉक्स में पूछें। हम Instagram, YouTube और Twitter पर भी हैं!