28 वर्षीय कीर्ति दिल्ली में वर्किंग प्रोफेशनल हैं।
पिछले साल अगस्त में मैंने मम्मी-पापा के ट्रिप की योजना बनाई। मैं पहली बार उन्हें ट्रिप पर लेकर जा रही थी, इसलिए मैं चाहती थी कि सब कुछ एकदम सही तरीके से हो। बहुत सोचने समझने के बाद हमने मथुरा और वृंदावन जाने का फैसला किया।
मैंने ओला आउटस्टेशन टैक्सी सर्विस बुक की। अगली सुबह मेरे मम्मी-पापा और मैं जल्दी से तैयार हो गए। हम सभी काफी उत्साहित थे और अपने ट्रिप के बारे में सोच रहे थे।
बुरे सपने की शुरुआत
कुछ घंटों के बाद हम मथुरा पहुँच गए और ड्राइवर ने हमसे पिन माँगा। यह एक नंबर होता है जो यात्रा समाप्त होने पर ड्राइवर को दिया जाता है। हालांकि हम इसी कैब से उसी दिन वापस दिल्ली भी आने वाले थे। लेकिन ड्राइवर ने हम पर तुरंत पिन देने का दबाव बनाया, जबकि उसे अभी हमें वापस दिल्ली ले जाना बाकी था।
मैंने ड्राइवर की शिकायत करने के लिए कस्टमर केयर को फोन करने की कोशिश की। लेकिन कॉल नहीं लगी। शुरू में मैंने ड्राइवर को पिन नहीं दिया, लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि देर शाम हो चुकी है और मेरे मम्मी-पापा की अगली सुबह बंगाल लौटने की फ्लाइट है। मैंने उसकी बात मान ली और झंझट से बचने के लिए मैंने ड्राइवर को पिन बता दिया।
जैसे ही उसने यह पिन नंबर अपने मोबाइल में डाला, मुझे मैसेज आया - ‘आपकी यात्रा पूरी हुई’। मैं हैरान रह गई।
तभी मैंने एक चीज़ और नोटिस की - मैंने जिस ड्राइवर को बुक किया था, ये वो नहीं बल्कि कोई और था।
वह ओला रजिस्टर्ड ड्राइवर के लिए कैब चला रहा था। यह सच में डरने वाली बात थी और अब हम दिल्ली वापस लौट रहे थे।
शुक्र है कि हम अपने घर पर पहुंच गए और फिर मैंने ड्राईवर को ऑनलाइन पेमेंट कर दिया। हालांकि, ड्राइवर ने दावा किया कि उसे कोई पैसा नहीं मिला है।
मैंने उसे पेमेंट का स्क्रीनशॉट दिखाया लेकिन उसे अभी भी भरोसा नहीं था।
उसने हमें कुछ मिनट इंतज़ार करने के लिए कहा ताकि वो कुछ लोगों को बुला सके जो स्क्रीनशॉट चेक करेंगे। आधी रात के आसपास का समय था। मैंने उससे कहा कि देखो मैंने अपनी तरफ से पेमेंट कर दिया है और तुम्हें स्क्रीनशॉट भी दिखा दिया है अब मैं आगे कुछ नहीं करूंगी। यह कहकर मैं ऊपर अपने कमरे में चली गई।
आधी रात को बवाल
ड्राइवर ने मुझे बार-बार फोन करना शुरू कर दिया और कहा कि उसे यह पेमेंट कैश में चाहिए और मैंने उसे कोई पेमेंट नहीं किया है, बल्कि धोखा दिया है।
मैंने उसे बार-बार फोन करने के लिए मना किया और कहा कि अब अगर तुमने ऐसा किया तो मैं पुलिस को फोन करूंगी। मेरे पापा मेरी तरफ सवालिया निगाहों से देख रहे थे। वह किसी गड़बड़ी को लेकर चिंतित थे।
अचानक हमारे दरवाजे की घंटी बजी। घंटी की आवाज सुनकर मेरी रूममेट्स भी जग गई। रात के करीब 12:30 बजे थे। मैंने झाँक कर देखा तो मेरे दरवाजे के बाहर 3-4 आदमी खड़े थे। वे घंटी बजा रहे थे और लगातार दरवाजे को पीट रहे थे। यह सचमुच में डरावना था। मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
मेरे पापा मेरी तरफ देख रहे थे। उन्होंने कहा, ‘इसे ही तुम सुरक्षित कह रही थी? तुमने हमें बताया था कि तुम्हारा इलाका काफी सुरक्षित है? नीचे गार्ड्स रहते हैं जो तुमने पूछे बिना किसी को अंदर आने नहीं देते हैं।’
मैं घबरा गई। मैंने गार्ड को फोन किया लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। फिर मैंने फ्लैट के मालिक का नंबर डायल किया, उसने भी फोन नहीं उठाया। दरअसल, उनका का फोन स्विच ऑफ था।
उस पल मुझे यह लगा कि अगर मैं चीजों को नहीं संभाल पायी तो मेरे पापा मुझे दिल्ली में काम नहीं करने देंगे और अपने साथ घर वापस ले जाएंगे। वह मुझे इस असुरक्षित शहर में अकेले नहीं रहने देंगे और मुझे अपने पूरे करियर के साथ समझौता करना होगा, जिसके लिए मैंने इतनी मेहनत की थी!
फैसले की घड़ी
काफी सोच समझकर मैंने फैसला किया कि मुझे अभी कुछ करना ही होगा। इससे पहले की मेरे पापा दरवाजा खोलकर उन्हें भगाते, मैंने पुलिस को फोन कर दिया।
अक्सर फिल्मों में देखते है कि पुलिस काफी देर से पहुंचती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ - पुलिस 15-20 मिनट के अंदर ही मेरे दरवाजे पर पहुंच गई और उन लोगों से सख्ती से निपटी। उन्होंने मेरी शिकायत दर्ज़ की और मामले पर सख्ती से काम किया।
हालांकि वे लोग बार-बार कह रहे थे कि उन्हें पेमेंट नहीं मिला है, इसलिए पुलिस ने मुझसे ट्रांजैक्शन आईडी दिखाने के लिए कहा। दुर्भाग्य से, उस रात बैंक का सर्वर डाउन हो गया था। मुझे ट्रांजेक्शन आईडी नहीं मिली। मैंने अपने कुछ दोस्तों से कहा कि वे लॉगिन करके ट्रांजैक्शन आईडी निकाल दें। वे भी लॉगिन नहीं कर सके।
इस बीच, बिल्डिंग का सिक्योरिटी गार्ड आ गया। पुलिस वाले ने उसे डाँटा और कहा, 'यहाँ तीन लड़कियाँ रहती हैं और तुम्हारी लापरवाही के कारण ये आदमी आधी रात को आकर उन्हें परेशान कर रहे हैं।'
मैं लगातार ओला कस्टमर सर्विस को कॉल कर रही थी। लगभग तीन घंटे के बाद मैं आखिरकार उनसे जुड़ सकी। उन्होंने मेरा पेमेंट कन्फर्म किया। तब जाकर वे माने कि मैंने पेमेंट कर दिया है।
मैं उस समय बहुत गुस्से में थी। पुलिस ने उन्हें चेतावनी दी कि वे हमारे इलाके में अपना चेहरा कभी न दिखाएं। सुबह 4 बजे तक जद्दोजहद करने के बाद मैंने राहत की सांस ली। मैंने अपने मम्मी-पापा को दिखा दिया कि मैं भी हालात का सामना कर सकती हूं और अपना ख्याल रख सकती हूं।
कीर्ति ने जेंडर-आधारित हिंसा के खिलाफ 16 दिनों की सक्रियता को चिह्नित करने के लिए #It’sTimeToAct अभियान के लिए लव मैटर्स इंडिया के साथ अपनी कहानी साझा की। #It’sTimeToAct का उद्देश्य ऐसी महिलाओं की कहानियों को सामने लाना है जिन्होंने इस तरह की हिंसा या उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
पहचान की रक्षा के लिए, तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है और नाम बदल दिए गए हैं।
क्या आपके पास भी कोई कहानी है? हम से शेयर कीजिये। कोई सवाल? नीचे टिप्पणी करें या हमारे चर्चा मंच पर विशेषज्ञों से पूछें। हमारा फेसबुक पेज चेक करना ना भूलें। हम Instagram, YouTube और Twitter पे भी हैं!