Chhapak review
© Love Matters India

'उसने मेरी सूरत बदली है ...मेरा मन नहीं!'

द्वारा Roli Mahajan जनवरी 14, 11:27 पूर्वान्ह
जब कोई फिल्म दिसंबर 2012 (दिल्ली बस रेप के विरोध में) के प्रदर्शन के नारों और स्लोगन से शुरू होती है - “न्याय दो, फांसी दो।” - तभी हमें पता चल जाता है कि यह दूसरी मसाला फिल्मों से बहुत अलग है और इसे देखना इतना आसान नहीं होगा।

छपाक एक मुश्किल विषय पर बनी फिल्म है। मगर हम लव मैटर्स वाले लोग हिम्मतवाले हैं। हैं कि नहीं…! हम हर तरह की फिल्में देखते हैं और ख़ासकर वो जिनमें समाज की बुराइयों की झलक होती है या फिर वैसी फिल्में जो गंभीर मुद्दों पर बनी होती हैं। 

छपाक कोई सेक्सी या मसाला फिल्म नहीं है जो समाज के हर तबके के लोगों का ध्यान खींचेगी। यह फिल्म एक टीनएजर गर्ल मालती (दीपिका पादुकोण) की कहानी है जिसकी लाइफ दिल्ली की सड़कों पर दिन दहाड़े तेजाब फेंकने से बदल जाती है। यह उस लड़की के संघर्षों और न्याय के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ने की कहानी है।

यह फिल्म एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर बनी है लेकिन यह उन सभी महिलाओं की याद दिलाती है जिन्होंने जब किसी सनकी प्रेमी के प्यार को स्वीकार नहीं किया तो उन्हें हिंसा, दुर्व्यवहार और जलन का शिकार होना पड़ा है। यह फिल्म सभी महिलाओं को मैसेज देती है: अब डरो नहीं, लाडो!

छपाक मेघना गुलजार के निर्देशन में बनी फिल्म है इसलिए हमें पहले से ही उम्मीद थी कि यह थोड़ी बहुत आर्ट फिल्मों जैसी होगी। और सच में फिल्म हमारी उम्मीदों के अनुरुप ही रही। कहानी में बहुत सारे फ़्लैशबैक दिखते हैं यानी आगे पीछे लेकिन हमे तो इंटरेस्टिंग लगी।

छपाक में शक्ल नहीं सीरत पर नज़र डाली गयी है। और यह बात फिल्म के सीन में दिखती है जब मालती कहती हैं कि “उन्होंने मेरी सूरत बदली है ...मेरा मन नहीं !” इसके लिए इस फिल्म के लिए लव मैटर्स का एक इंस्टेंट लाइक। हम प्यार करने वाले लोग हैं और हम अंदरूनी खूबसूरती को हमेशा बढ़ावा देते हैं।

हमारे देश में चाहे नौकरी हो या अच्छा पार्टनर, दोनों ही मिलना बहुत मुश्किल है। दुखती रग, है ना? और हमारे जैसे देश में, जहां सभी फ़ैसले, यहां तक ​​कि नौकरी के लिए भी लंबा, नाटा, गोरा, काला, मोटा, पतला आदि देखकर लिए जाते हैं। कभी सोचा है कि एक लड़की पर क्या बीतती होगी जिसका चेहरा एसिड से जला दिया गया हो?

फिल्म के एक सीन में जब मैनेजर मालती से पूछता है कि उसने बताया क्यों नहीं कि उसका चेहरा एसिड से जलाया गया है तो मालती कहती है कि “ क्योंकि एसिड अटैक के लिए कोई कैटेगरी नहीं है।” इस सीन के लिए मालती को हमारा सुपर लाइक ….कैटेगरी और लेबल तो हमें भी पसंद नहीं।

फिल्म हमें मालती के संघर्षों से रुबरू कराती है। उसे अपनी सर्जरी के लिए पैसे जुटाने से लेकर और कई तरह की पर्सनल दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एसिड की बिक्री पर बैन के लिए कोर्ट के कई चक्कर काटने पड़े और 'तारीख पर तारीख' वाले हमारे सिस्टम को भी झेलना पड़ा। लेकिन पूरी 

फिल्म में मालती के एसिड से जले चेहरे पर बहादुरी नज़र आती है।

शुक्र है कि कुछ अच्छे लोग हैं इस दुनिया में। जैसे कि शिराज आंटी और वो वकील दोस्त जिन्होंने मालती को उस वक्त हिम्मत दी जब उसे लगा की अब वह और नहीं लड़ पाएगी। जिन महिलाओं ने आगे आकर दूसरी महिलाओं को सपोर्ट किया उनको और पूरे महिला समाज को लव मैटर्स की तरफ़ से शुक्रिया (चीयर्स)...।

और फिर हमारे हीरो अमोल (विक्रांत मैसी) की एंट्री होती है जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए एक एनजीओ चलाते हैं। इसके अलावा वो एसिड अटैक को रोकने के लिए कैंपेन भी चलाते हैं। वह मालती के चेहरे पर मुस्कराहट लाते हैं। छोटी-छोटी चीज़ें हमारी मालती को ख़ुश करती हैं और उनका किरदार आपको कई बार इमोशनल कर देगा। आप रोने ही वाले होंगे तभी आपके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ जाएगी...कुछ ऐसा मैजिक है इस फिल्म में ।

छपाक हमें सब कुछ बर्बाद होने के बावज़ूद अपनी ज़िंदगी को संभालने की हिम्मत देती है और सिखाती है कि लड़ाई चाहे कितनी भी कठिन हो हमें लड़ना चाहिए!

मालती को उसकी ताकत के लिए हम उसे लव मैटर्स की ओर से सलामी देते हैं। और वो सभी लोग जो आपके लिए इस ज़ालिम समाज के ख़िलाफ़ खड़े हुए लव मैटर्स उनके आगे नतमस्तक है।

यह फिल्म हम सभी को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है। सबसे पहले उन लोगों को जो किसी से एकतरफा प्यार करते हैं। यदि कोई आपसे प्यार नहीं करना चाहता तो उसे छोड़कर आगे बढ़ें। प्यार तो मैं ले के ही रहूंगा/ रहूंगी  वाली फीलिंग आपकी लाइफ को ख़राब ही करती है। सच्चे मायनों में प्यार का मज़ा तभी आता है जब प्यार की फीलिंग दोनों साइड से हो।

दूसरी चीज कि हम हमेशा लुक पर ही ध्यान देकर दूसरों को इतना दुखी क्यों कर देते हैं। क्या हमारी ज़ुबान किसी एसिड से कम है जब हम किसी को - बहुत लंबा, बहुत छोटा, बहुत मोटा, बहुत पतला, बहुत काला  या बहुत गोरा (बहुत गोरा तो कुछ होता नहीं है, शायद!) कहते हैं। सभी की बेसिक जरुरतें एक जैसी हैं (रोटी, कपड़ा और मकान) तो हम एक दूसरे की मदद क्यों नहीं कर सकते और उनके प्रति थोड़ा नरम क्यों नहीं बन सकते फिर चाहे वो किसी भी कलर, हाइट या वेट के हों? 

कुछ हट कर करने के लिए इस फिल्म की जितनी तारीफ़ की जाए कम है, इसलिए हम भी कंजूसी नहीं दिखाएंगे: छपाक के लिए LM के 4 दिल। इस फिल्म में लोगों के लिए ज़रूरी संदेश है कि एसिड अटैक सर्वाइवर्स की आवाज को सुनना ज़रूरी हैं है। हमें उम्मीद है कि आप भी ये आवाज़ सुनने और देखने के लिए ज़रूर जाएंगें।

नोट: लव मैटर्स मूवी रिव्यू में फिल्मों का विश्लेषण किया जाता है कि उनमे लव, सेक्स और रिलेशनशिप को कैसे दिखाया गया है। वह फिल्म जिसमें दिखाया हो LM-style romance उसे मिलेंगे LM Hearts! और जिस फिल्म ने खोयी सहमति, निर्णय या अधिकारों की दृष्टि, उसे मिलेगा LM Monster !

क्या आप इस जानकारी को उपयोगी पाते हैं?

Comments
नई टिप्पणी जोड़ें

Comment

  • अनुमति रखने वाले HTML टैगस: <a href hreflang>