20 वर्षीय नीतीश दिल्ली में अंग्रेजी साहित्य के छात्र हैं और एक होमो रोमांटिक सिसजेंडर पुरुष के रुप में पहचाने जाते हैं। वह ड्रैग क्वीन उर्फ शबनम बेवफा के नाम से भी जानी जाती हैं।
बचपन
जब मैं छोटा था तो मां के कपड़ों के प्रति मुझे बहुत आकर्षण था। मुझे रोलप्ले करना, अपनी मां की साड़ी पहनना और उनकी तरह अभिनय करना अच्छा लगता था। मेरी मां भी मेरी नकल किया करती थी। हम दोनों साथ में ख़ूब खेलते।
उस समय मैं सिर्फ़ पांच साल का था। यह शायद पहली बार था जब मुझे स्त्रीत्व का एहसास हुआ और मैं अपने इस रूप को बहुत पसंद करने लगा था।
माँ जैसा
लेकिन मेरी ख़ुशी कुछ ही दिनों के लिए थी। जब मेरी मां का देहांत हुआ तब भी मैं बच्चा ही था। मां के चले जाने के बाद मेरे जीवन में खालीपन आ गया, जिसे भरने के लिए मैंने खुद के लिए सपनों की एक दुनिया बना लीI
जब मैं बड़ा हुआ तो मैंने ड्रैग क्वीन बनने का फैसला किया। ( ड्रैग क्वीन ऐसे परफॉर्मेस आर्टिस्ट होते हैं, जो आमतौर पर होते पुरुष ही हैं लेकिन वे महिलाओं के कपड़े पहनकर अभिनय के ज़रिये महिला सशक्तिकरण और स्त्री पक्ष को सामने लाने की कोशिश करते हैं)।
मैं खुद को शबनम कहता हूं और हर किसी के लिए मनोरंजन का साधन बन जाता हूं। लोग हफ्ते के अंत में मेरा अभिनय देखते हैं और इसे एक कठिन कला मानते हुए मेरी सराहना करते हैं।
जब मैं शबनम ’बनता हूं तो मैं बिल्कुल अपनी मां की तरह दिखता हूं। मुझे लगता है कि वह थीं, हैं और हमेशा मेरे साथ रहेगी चाहे मैं उन्हें कितना भी याद करूं।
सब समझ नहीं पाते
इस दुनिया के लिए और यहां तक कि मेरे आस-पास के लोगों के लिए भी एक ऐसे पुरुष को स्वीकार करना मुश्किल है जो एक महिला के रूप में तैयार होना चाहता है। लेकिन मेरी मां को पता था कि मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं है।
मैं जो कुछ भी हूं, अपनी मां के कारण हूं और इस बात का मुझे गर्व हैI शायद इसीलिए मैं दुनिया के सामने खुलकर आ पाता हूं। जब मैं पांच साल का था तब मेरी मां ने मुझे जो ताकत दी, शायद उसी की वजह से आज मैं यह संघर्ष कर पा रहा हूं।
मेरी बड़ी बहन और पिता मुझे अपने अपने तरीके से समझाने में लगे हैं। मुझे लगता है कि वे मुझे जितना जानने की कोशिश करेंगे, उतना ही मेरी लैंगिकता के साथ मुझे अपनाने में उन्हें मदद मिलेगी। मेरा बड़ा भाई हालांकि अभी भी एक होमोफोबिक है।
नीतीश ने हमारे अभियान #AgarTumSaathHo के लिए लव मैटर्स इंडिया के साथ अपनी कहानी साझा की इस महीने हम एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को दोस्तों, सहकर्मियों, माता-पिता, शिक्षकों या समाज से मिले / या दिए गए समर्थन, स्वीकृति, प्रेम और सम्मान की कहानियां प्रकाशित करेंगे।
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