24 वर्षीय अंशुमान एक ट्रांसवेस्टिट ( विपरीत लिंग के कपड़े पहनने वाले लोग) हैं और दिल्ली में रहते हैं।
विदाई - लेकिन मेरे तरीके से
कॉलेज लगभग ख़त्म हो गया था और अब फेयरवेल होने वाला था। जैसे ही कॉलेज छोड़ने का समय नज़दीक आया, मैं बहुत भावुक हो गया। ये वो ज़गह थी जहां से मैंने बहुत कुछ सीखा और मेरे दिल में इस कॉलेज के लिए बहुत सम्मान था। मैं अपने कॉलेज को कुछ अनोखे तरीके से अलविदा कहना चाहता था। इसलिए मैंने वो करने का फ़ैसला किया जिससे मुझे बहुत प्यार था- साड़ी पहनने का फ़ैसला।
मैंने एक पुरुष के रुप में जन्म लिया है और मेरी पहचान भी पुरुष के रुप में ही है। लेकिन मैं अलग-अलग तरह के कपड़े पहनना पसंद करता हूं और ख़ुद को संवारने के लिए कुछ अलग करता हूं- जैसे नाक में रिंग पहनना, नेलपॉलिश लगाना आदि। कॉलेज में मेरे दोस्त और शिक्षक यह बात जानते थे और मेरे ग्रुप में जितने भी लोग थे सब मेरी पसंद का सम्मान करते थे। यहाँ तक कि सार्वजनिक ज़गहों पर भी साड़ी पहनकर जाना मेरे लिए काफ़ी रोमांचक होता था।
वो ख़ास दिन वाला उत्साह
फेयरवेल के दिन, मेरे दोस्तों ने साड़ी पहनने में मेरी मदद की। मैंने एक सुंदर,ऑलिव-ग्रीन रंग की साड़ी पहनी थी जो मेरे एक करीबी दोस्त की मां की थी।
मैं बताना चाहूंगा कि साड़ी में मैं बहुत ख़ूबसूरत दिख रहा था और मैं बेहद खुश था। मैं और मेरे दोस्त फेयरवेल में जाने के लिए बहुत उतावले थे और हम सब इसे अपने जीवन का यादगार दिन बनाना चाहते थे। आख़िरकार, यह वही ज़गह थी जहां मैंने बहुत कुछ सीखा था, लेकिन अब यहां से विदा लेने का वक्त आ गया था।
हमने कॉलेज के लिए एक कैब बुक किया। कैब में बैठने के करीब 15 मिनट बाद हमारे और कैब ड्राइवर के बीच अज़ीब तरह की बहस होने लगी। वह मुझे अज़ीब तरीके से देख रहा था और कह रहा था कि मैं जो कर रहा हूँ वो एकदम 'गलत' और 'अप्राकृतिक' है। हम उससे उलझना नहीं चाहते थे, इसलिए हमने इस बारे में आगे बात ही नहीं की। लेकिन उसकी बातों से फेयरवेल का सारा रोमांच ही ख़त्म हो गया और सबका मूड भी खराब हो गया।
शर्मिंदगी का सामना
हमें इस बात का थोड़ा अंदाज़ा पहले से था कि भीड़ भरे कॉलेज के गेट पर हमें थोड़ी परेशानी हो सकती है। कॉलेज के इन तीन सालों में पहली बार मुझसे कॉलेज गेट पर आईडी कार्ड मांगा गया। गार्ड मुझे करीब पांच मिनट तक घूरता रहा।
इसके बाद मैं मुख्य द्वार से कार्यक्रम स्थल तक पैदल आया, जो परिसर के बिल्कुल दूसरे छोर पर था। मैं लोगों की घूरती निग़ाहों और हंसी से ऊब गया था। तभी गलियारे से किसी ने तेज आवाज में मुझे ‘छक्का’ बुलाया, जिसे सुनना वाकई में काफ़ी दुखदायक था।
मैं अपने ऊपर हमले की आशंका से तेज चलने लगा, हालांकि लोगों की नज़रें अब भी मेरे ही ऊपर गड़ी हुई थीं।
सुरक्षित ज़गह पहुंच कर राहत मिली
मैं आख़िरकार कार्यक्रम स्थल पर पहुँच ही गया - मेरा अपना डिपार्टमेंट जहाँ मैं ख़ुद को सबसे ज़्यादा सुरक्षित महसूस करता हूँI मैंने अंत में खुद को सहज़ किया और अपने दोस्तों और प्रोफेसरों के साथ दोपहर का आनंद लिया। उन्होंने साड़ी के लिए मेरी काफी तारीफ़ भी की।
वो फेयरवेल अब भी मेरी यादों में है। उसके बाद मैं कई कार्यक्रमों में शामिल हुआ लेकिन यह उन सबसे अच्छा था। फिर भी, इसके साथ जुड़ी उस दर्दनाक याद को मैं आजतक भूल नहीं पाया हूं। मैं कभी नहीं भूल सकता कि उस दिन ‘छक्का’ शब्द सुनकर मुझे कितना दुख हुआ था। वह शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजता है।
*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल किया गया है।
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