भारतीयों में यह सोच हाल ही में आयी है लेकिन यह फैल बहुत तेज़ी से रही हैI जैसे ही किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसके अंकल, आंटी, चाचा, चाची उसके लिए गुलाबी या नीले उपहारों का (हालांकि यह इस पर निरहार करता है कि बच्चा लड़का है या लड़की)अम्बार लगा देते हैंI हमने इस विदेशी अवधारणा को इतनी फ़ुर्ती से अपनाया है कि मेट्रो में महिलाओं को समर्पित बैनर या केवल महिला सवारी वाले ऑटोरिशाओं का रंग भी गुलाबी होने लगा हैI गुलाबी बेहद तेज़ी के साथ एक 'स्त्री' रंग बनता जा रहा हैI यहाँ तक कि इसे पहनने के लिए लड़को का उपहास भी बनने लगा हैI
शुक्र है, अभिषेक बच्चन, रणवीर सिंह और सैफ अली खान सरीखे कुछ हसीन बॉलीवुड कलाकार नियमित रूप से गुलाबी शर्ट पहनते हैं जो उन पर खूब फब्ती हैI गुलाबी रंग हमारी परंपराओं का भी एक हिस्सा है - शायद ही कोई शादी ऐसी होती हो जिसमें लड़के गुलाबी साफ़ा ना पहनते होंI उम्मीद तो यही है कि रंग को लेकर यह सनक जितनी जल्दी भारत पहुँची है उससे भी जल्दी यहाँ से रवाना हों जाए!
अब हम इसके लिए किसी को दोष नहीं दे सकतेI मातृत्व, भारत में महिलाओं के जीवन का एक अभिन्न अंग हैI अधिकांश महिलाएं भी यही मानती हैं कि बच्चों की परवरिश की 'सौगात' भगवान् ने उन्हें ही दी है और पुरुष इसमें केवल उनकी मदद भर कर सकते हैंI रात में जागने से लेकर दूध पिलाने तक, और उनकी चड्डियाँ बदलने से लेकर उनकी छोटी से छोटी किलकारी पर बेतहाशा भागने तक, हर काम माँ की ही ज़िम्मेदारी समझा जाता है, जबकि एक पिता का काम है अपने बच्चे का भविष्य संवारने के लिए बाहर जाकर काम करना और पैसे कमानाI
हालांकि, एक प्रसिद्ध डायपर कंपनी ने एक विज्ञापन के द्वारा इस छवि को बदलने का एक बेहद सुंदर प्रयास किया हैI इसमें कई पुरुषों को बच्चों को दूध पिलाते और उनकी चड्डियाँ बदलते हुए दिखाया गया है और विज्ञापन एक बहुत ही सुन्दर सन्देश के साथ समाप्त होता है - 'एक बच्चे की बखूबी परवरिश के लिए दो लोगों की ज़रुरत होती है, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि लिंग कौनसा हैी'
यह वैसा ही है कि केवल एक महिला ही बच्चे की परवरिश कर सकती हैI सोचा यही जाता है कि या तो एक महिला एक बच्चे को संभाल सकती है या फ़िर ऑफिस के काम को, एक साथ दोनों नहीं। गर्भावस्था से एक महिला के कैरियर पर फ़र्क़ पड़ता है - यह सिर्फ़ एक धारणा नहीं है, यह दुनिया भर में महिलाओं के लिए एक वास्तविकता है और भारत में, जहाँ अधिकतर कार्यस्थल पुरुष प्रधान हैं, वहां तो हालात और भी बदतर हैंI
इस लाइन के साथ एक नए विज्ञापन की शुरुआत होती है, जिसमे भारत की ओलंपियन पहलवान गीता फोगाट भी हैंI विज्ञापन में आगे बताया जाता है कि महिलाओं को क्या करना चाहिए और क्या नहीं - जैसे महिलाएं घर के काम के लिए होती हैं, महिलाएं कुश्ती या और कोई खेल नहीं खेलती हैं, महिलाएं शारीरिक रूप से मजबूत नहीं होती हैं और अगर कोई महिला बाहर निकलती है, तो इससे उसके परिवार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगीI तभी गीता फोगाट का चेहरा नज़र आता हैI वही गीता फोगाट जिन्होंने उपरोक्त व्यक्त विचारधारा को तोड़कर ना केवल अपने परिवार के लिए बल्कि पूरे देश के लिए विश्वभर में महिमा और गौरव हासिल की हैI
और हाँ, रूढ़िवादी सोच का शिकार केवल महिलाएं ही नहीं हैI यह पुरुषों को भी झेलना पड़ता है, जैसे कि 'आप मर्द हो तो आप रो नहीं सकते'I जैसे ही बच्चा थोड़ा बड़ा होता है उसके माता-पिता, शिक्षक, भाई-बहन, डॉक्टर, प्रशिक्षक वगैरह यही सीख देते हैं - 'लड़कों को रोना नहीं आता!'
तो लड़के क्या करते हैं? कुछ यह परीक्षा पास कर जाते हैं - क्यूंकि वे रोते नहीं हैंI लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो पूरी ज़िंदगी इस दबाव को झेलते हैंI कुछ इसे दूसरों को, खासकर महिलाओं को, रुलाकर निकालते हैंI माधुरी दीक्षित अभिनीत एक लघु फ़िल्म 'स्टार्ट विद द बॉयज़' में इस विषय को बखूबी दिखाया गया हैI हां, पुरुष रोते हैं और कई सफ़ल लोगों ने खुलेआम,सार्वजनिक रूप से ऐसा किया है- अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा शायद ऐसे सबसे प्रसिद्ध पुरुष हैं!
मैं यह शर्त लगा सकती हूँ कि हम सभी ने महिलाओं की खराब ड्राइविंग का कभी ना कभी मज़ाक उड़ाया हैI चलिए भारतीय सड़क पर एक दृश्य की कल्पना करते हैंI एक विशाल यातायात जाम -दो कारों की एक-दूसरे में टक्कर - एक को महिला चला रही है तो एक के स्टीयरिंग व्हील के पीछे एक पुरुष बैठा हैI आपको क्या लगता है कि सब किसे दोष दे रहे होंगे - निस्संदेह बेचारी महिला की ही शामत आयी होगी!
यूट्यूब पर एक नज़र डालें तो महिलाओं की खराब ड्राइविंग के अनगिनत वीडियो आपको मिल जाएंगेI लेकिन क्या दुनिया में सभी सड़क दुर्घटनाएं महिलाओं की वजह से होती हैं? अगर पूरी तरह से आंकड़ों की बात करें और इस बात को भी याद रखें कि आम तौर पर सड़को पर दुपहियों, तिपहियों और गाड़ियों में पुरुष चालक ही होते हैं तो यह साफ़ हो जाएगा कि दुर्घटनाएं किसकी वजह से हो रही हैंI
सिर्फ़ इसलिए कि किसी ने यूट्यूब पर उन सभी वीडियो को नहीं डाला है इसका मतलब यह नहीं है कि पुरुष महिलाओं की तुलना में बेहतर हैं। आज महिलाएं विमान, रेलगाड़ियां, और पनडुब्बियों की कमांडिंग अफसर बन चुकी हैं तो अगर यह कहे कि उन्हें चार पहियों वाली गाड़ी नहीं चलानी आती तो उसमे ज़रूर कुछ ना कुछ गलत होगा!
पुरुष प्रस्ताव रखते हैं, महिलाएं स्वीकार करती हैंI पुरुष 'डेट' पर पैसे देते हैं और महिलाओं को सिर्फ़ मुस्कुराना होता हैI पुरुष चुंबन करते हैं तो महिलाएं वापस चूमती हैंI हम सभी वो बॉलीवुड और हॉलीवुड फ़िल्मे देखते हुए बड़े हुए हैं जिसमें महिलाएं केवल अपने सपनो के राजकुमार के आने का इंतज़ार करती थी जो उन्हें एक सुनहरे भविष्य के लिए स्वपन लोक में जाएगाI (दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे का वो मशहूर डायलाग तो याद ही होगा ,'मुझे ले चलो राज!)I
तो उन लड़कियों का क्या होगा जो शायद अपने रिश्ते में पहल करना चाहती हैं, क्लास के उस प्यारे साथी को प्रोपोज़ करना चाहती हैं और अपने बॉयफ्रेंड/पति को 'डेट' पर ले जाना चाहती हैं? ऐसी ही कुछ रूढ़िताओं को एक लघु फ़िल्म 'गो डच गर्ल' में अभिनेत्री गुल पनाग चुनौती देती हुई नज़र आती हैंI