जब उसे यह एहसास हुआ कि उसकी इस आदत से उसकी ज़िंदगी और रिश्तों पर बुरा असर पड़ रहा है तो उसने इससे निजात पाने का निश्चय किया।
तरूण हैदराबाद में रहने वाला 25 साल का व्यंग्य चित्रकार हैI
खुद से प्यार
15 साल की उम्र से मैंने हस्तमैथुन करना शुरू कर दिया था। किसी चीज़ में ज़रा भी कामुकता नज़र आती और मैं एकांत ढूढंने लग जाता। किसी महिला के स्तनों के बीच के भाग की एक झलक, तंग कपड़ो में कोई लड़की, किसी पुरानी अश्लील तस्वीर का एकदम दिमाग में आना, इतना सब ही काफी था मुझे उत्तेजित करने में। शायद यही कारण था कि मैं एक दिन में 6-6 बार हस्तमैथुन करता था।
समय गुज़रा लेकिन मेरी आदत ज्यों की त्यों थी। कॉलेज ख़त्म होने के बाद मैं लैला से मिला और मिलते ही मुझे विश्वास हो गया था कि यही मेरी जीवनसाथी बनेगी। लैला से मिलने के बाद मेरा सेक्स जीवन और भी शानदार हो गया था, यह बात अलग थी कि मैं अभी भी 2-3 बार हस्तमैथुन करता था।
हमारे सम्भोग करने के एक-दो घंटे बाद ही मेरा शिश्न फ़िर ज़ोर मारने लगता था। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि मैं कहाँ हूँ। ऑफिस में, दोस्तों के घर, रेस्तरां, डिस्को, ऐसी कोई जगह नहीं बची थी जहाँ मैंने खुद को 'मुक्त' ना किया हो। कई बार मुझे अजीब भी लगता था लेकिन मैं इस बारे मेँ ज़्यादा सोचता नहीं था। मुझे लगता था कि "खुद से प्यार" करने में क्या गलत हो सकता है।
रंगे हाथो पकड़ा गया
एक दिन रात को लैला की आँख खुली और उसने मुझे सोफे पर हस्तमैथुन करते हुए देख लिया। बिना कुछ बोले वो वापस बैडरूम में चली गयी। जब मैं अंदर गया तो उसका सवाल था "क्या हमारे बीच के सेक्स से तुम खुश नहीं हो" मैंने कहा "ऐसा नहीं है लैला, हमारे बीच में होने वाला सेक्स शानदार है और मैं उससे बहुत खुश हूँ लेकिन कई बार मैं अपने आपको रोक नहीं पाता।"
और उसके बाद मैं उसे सब बताता चला गया। उसका जवाब था कि "उत्तेजित सब होते है लेकिन अगर हम हर बार अपनी उत्तेजना शांत करने की कोशिश करेंगे तो यह एक मुश्किल काम होगा"। मैं सोचने पर मज़बूर हो गया था "क्या यह सिर्फ एक बुरी आदत है? क्योंकि ऐसा नहीं था कि मैं अपने जीवन में हो रहे सेक्स से असंतुष्ट था या मुझे किसी प्रकार की कोई परेशानी थी। हो सकता है यह मेरे लिए एक
अतिरिक्त रोमांच था।" सही कहूँ तो मुझे आज तक इसका सही कारण नहीं पता। मुझे लगता था कि शिश्न के लम्बवत्त होने के बाद हस्तमैथून करना तो लाज़मी है।
समझदार साथी
लैला मुझे बेइज़्ज़त कर सकती थी लेकिन उसने मुझे इस बात का एहसास दिलाया कि सार्वजनिक स्थानो पर हस्तमैथुन करना काफ़ी शर्मसार और दुखदायी हो सकता है खासकर तब जब मैं रंगे हाथो पकड़ा जाऊं। मुझे पता था कि उसे बुरा लगा है और सही भी है, अगर उसकी जगह मैं होता तो मुझे भी ऐसा ही लगता।
लैला ने आगे कहा "तरुण अगर तुम्हे यह सब अच्छा लगता है तो किसी दबाव में आकर अपने आपको बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है"। यह साफ़ था कि लैला से समझदार और सहयोगी पत्नी मुझे नहीं मिल सकती थी। मेरा कड़वा सच मेरे सामने था और अब मुझे उसे बदलना था।
छोटी शुरुआत
मैंने सोचा कि जब भी मेरे मन में हस्तमैथुन का ख्याल आये, मुझे अपना ध्यान बांटने की कोशिश करनी चाहिए। तो मैंने ऐसा ही किया। जैसे ही मुझे लगता कि "ऐसा" कुछ हो सकता है तो मैं अपने आप को किसी क्रिया में व्यस्त कर लेता। कभी व्यायाम के लिये चला जाता, कभी संगीत में मन लगाता तो कभी वीडियो गेम्स खेलने लग जाता। कई बार इन सबसे फायदा होता, जब बिलकुल मन नहीं मानता तो मैं हस्तमैथुन करता।
शुरू में मुश्किल था लेकिन धीरे धीरे मैंने छोटे तरूण को अपने वश में कर ही लिया। अब मैं घर पर ही कभी कभार हस्तमैथुन करता हूँ। इससे ना सिर्फ मेरे काम में फायदा हुआ है बल्की लैला के साथ मेरा रिश्ता एक अलग ही मुकाम पर पहुँच गया है। मुझे नहीं लगता कि मैं अपनी ज़िंदगी में कभी भी इतना खुश था।