टीवी रिमोट बनाम सेंसरबोर्ड
बचपन से ही दो चीज़ें हम सब के जीवन में बड़ी कॉमन रही होंगी एक तो बॉलीवुड़ और दूसरा सेक्स के टॉपिक को लेकर परिवार में गहरी चुप्पी। बॉलीवुड भारत की सबसे लोकप्रिय संस्कृति हैं जहाँ से हम सब ने सेक्स पर अपनी समझ को कहीं ना कहीं विकसित किया ही होगा (लेकिन यह बिलकुल ज़रूरी नहीं कि यह समझ बिलकुल सही दिशा में हो), क्यूंकि जिस टॉपिक पर हमारे घरों में कभी खुल कर बात ही नहीं होती थी वहां समझ पर सवालिया निशान तो लग ही जाएगाI इस लोकप्रिय संस्कृति से मैंने बचपन से युवा अवस्था तक सेक्स के बारे में ख़ुद से एक सोच बना ली। जिस पर आज मुझे कभी-कभी बहुत हँसी आती है तो कभी गुस्सा और अफ़सोस भी होता है।
बचपन में दीदी, भैया, मम्मी, पिताजी हम सब साथ बैठ कर जो भी गिनें-चुने टीवी चैनल्स आते थे उन पर फिल्में देखतें थे, जिसका आनंद ही कुछ और होता था। अब यह आनंद यूँ ही बना रहे इसकी ज़िम्मेदारी होती थी पापा कीI अरे भाई, टीवी का रिमोट तो उनके हाथ में ही होता था ना जिससे कि टीवी पर जैसे ही सेक्स से सम्बंधित कुछ भी आने का संजोग बने, उससे पहले ही चैनल बदल दिया जाएI एक दिन पिताजी किसी काम में व्यस्त हो गए और टीवी स्क्रीन पर “सत्यम शिवम् सुन्दरम्” फ़िल्म का एक सेक्स सीन शुरू हो गया। फ़िर क्या था पापा एक दम असहज होकर ज़ोर से चिल्ला पड़े “पढाई लिखाई भी कर लिया करो, पूरे दिन बस टीवी के आगे आँखे गड़ा के बैठे रहते हो” और झट से टीवी पर आज की ताज़ा ख़बरे शुरू हो गईं। अचानक हुई इस अफ़रा-तफ़री के माहौल में हम लोगों को अपना होमवर्क करने में व्यस्त हो जाना ही मुनासिब लगाI उस बात से मेरे दिमाग में एक चीज़ घर कर गयी कि सेक्स बहुत गन्दी और शर्मिंदगी की बात है, जिसका ज़िक्र भी नहीं होना चाहिये!
मासिकधर्म है गलत
यही नहीं पीरियड्स के बारे में टीवी से मेरी सोच यह बनी कि पीरियड्स बहुत ही घिनौनी बात हैI इसका बहुत बड़ा कारण था टीवी पर बड़ी ही अजीब तरह से दिखाये जाने वाले पीरियड सम्बंधित विज्ञापन जिनका संवाद ही कुछ ऐसे शुरू होता था “मुझे आपसे कुछ कहना है, कैसे कहूँ?"I जिसका मतलब ही मुझे कई वर्षों तक समझ ही नहीं आयाI जब तक की मेरें ख़ुद के पीरियड्स नहीं हुये। हालाँकि कुछ वर्षों बाद आधुनिक पीरियड विज्ञापनों ने इस मिथक को तोड़ा ज़रूर, लेकिन साथ ही साथ एक नया मिथक भी शुरू कर दियाI वो यह कि लडकियाँ विज्ञापन में दिखाया जाने वाले पैड को इस्तेमाल करते ही सुपर वुमन बन जाती हैं और अचानक सफ़ेद पेंट्स पहनकर इधर-उधर कूदना-भागना शुरू कर देती हैं। जो कि अपने आप में बहुत हास्यजनक और झूठ लगता है।
गर्भवती होना हुआ आसान
आम तौर पर टीवी पर किसी महिला को गर्भवती होने के लिये सेक्स करना दिखाया जाना इतना आम नहीं थाI एक दूसरे को छाते और फूल के पीछें किस करने के बाद अगले सीन में ही हीरोइन यह बोल रही होती थी "मैं तुम्हारें बच्चे की माँ बनने वाली हूँ”। मुझे अपनी किशोर अवस्था में ही कई सालों तक यही लगता रहा की केवल किस कर लेने भर से ही कोई प्रेग्नेंट हो सकता है। जिस पर आज बहुत हँसी आती हैI
ना मतलब ना
“लड़की की ना में भी हाँ होती है” एक लड़की होने के बावजूद मैं भी इसी पर विश्वास करती थी क्यूंकि यही तो टीवी पर दिखाया जाता था। पहले लड़की लडके को मना करती है, फ़िर लड़का उसके आगे-पीछें गाने गाता है और गाने के अंत में लड़की लड़के के साथ हो जाती है। अगर गाने वाला फार्मूला नहीं चलता तो लड़का ज़ोर से लड़की को किस करता है और लड़की शर्मा कर लड़के के इस मर्दाना अंदाज़ पर मर-मिट जाती है। जब बड़ी हुई और थोड़ी समझ आयी तो पता चला कि ना का मतलब सिर्फ़ ना होता है।
छोटे कपड़े और सिगरेट
यही नहीं, फिल्मों से मैंने यह भी सीखा कि मुझे बड़ा होकर बिलकुल “अच्छी” लड़की बनना हैI अब फिल्मो में तो बहुत ही अच्छी तरीके से दर्शाया जाता था कि "अच्छी लड़की' कौन होते हैI बुरी लड़की के बाल छोटे-छोटे और स्टाइल में कटे होते हैं, वो छोटे कपडें पहनती है, सिगरेट के कश मारती है, ख़ुद बढ़-चढ़ कर लड़को को प्रस्ताव देती हैI अच्छी लड़की इसके बिलकुल विपरीत होती है, जो मुझे बनना था क्यूंकि यही मुझे फिल्मों ने सिखाया था।
एक बात जो मुझे कहते में अफ़सोस होता है की इस लोकप्रिय संस्कृति ने मुझे बहुत ही ग़लत बात सिखाई कि बलात्कार के बाद लड़की को जीने का कोई अधिकार नहीं है। अच्छी लडकियाँ ख़ुद के साथ बलात्कार होने के बाद या तो अपनी जान दे देती हैं या “रानी मुखर्जी” अभिनीत फ़िल्म “राजा की आयेगी बारात” की तरह अपने बलात्कारी के साथ शादी कर उसे बुरे से अच्छा आदमी बनाती है। यानि स्थिति जो भी हो बलात्कार के बाद एक लड़की का जीवन, उसके और उसके परिवार की इज्ज़त सब खत्म हो जाती है।
जिसका मुझे बेहद अफ़सोस है कि काश मेरे घर में माता-पिता अपने तरीक़े से ही सही लेकिन सेक्स से जुड़ी इन सभी मिथ्याओं के बारे में मुझसे बात करते और सेक्स के बारे में मेरी सही सोच बनने में मदद करते।
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