Violence Against Women
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वो सिर्फ़ इसलिए सो नहीं पाती थी कि कहीं वो उसका बलात्कार ना कर दें

द्वारा Chinmayee नवंबर 21, 12:59 बजे
आरिफा*, एक बहुत ही सुन्दर लड़की थी जो मुंबई की झुग्गियों में रहा करती थीI उसकी शादी 20 साल में ही हो गयी थी लेकिन उसके पति ने कभी उसे छुआ तक नहींI दूसरी ओर उसका ससुर और परिवार के अन्य पुरुषों ने उसका बलात्कार करने के कई प्रयास किए। सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय सुभाष, ने आरिफ़ा को इन्साफ दिलाने के लिए आठ साल की कानूनी लड़ाई लड़ी हैI वही चिन्मय आज आरिफ़ा की कहानी हमारे पाठकों के लिए लेकर आयी हैंI

शुरुआत

मैं आरिफ़ा से करीब बीस साल पहले मिली थी जब मैं एक गैर सरकारी संगठन के साथ काम कर रही थीI आरिफ़ा अपने पति से तलाक़ लेना चाहती थी और मुझे उसकी मदद करने को कहा गया थाI लेकिन यह मामला सिर्फ़ एक आम 'वैवाहिक विवाद' जैसा सरल नहीं थाI आरिफ़ा के ससुराल के कई पुरुषों ने अनेकों बार उसका बलात्कार करने की कोशिश की थी लेकिन तिस पर भी उसका खुद का परिवार उसे उसके पति के घर वापस भेज देना चाहता था! मैं उसकी अच्छे से मदद कर सकूँ इसलिए मैंने उसे कहा कि वो मुझे अपने बारे में सब कुछ बताए।

सपने जैसी शादी

आरिफ़ा एक बड़े घर में अपनी चार बहनों और दो भाइयों के साथ रहती थीI उसके पिता एक छोटी सी दुकान में काम करते थे जहाँ गाड़ियों के लिए सीट कवर बनते थेI वैसे तो उसकी मां मुख्य रूप से एक गृहिणी ही थी लेकिन घर चलाने के लिए कभी-कभी छोटे मोटे काम भी कर लिया करती थीI चूंकि आरिफ़ा लम्बी और सुन्दर थी तो उसके माता-पिता को विश्वास था की उसका रिश्ता एक बेहद अच्छे घर में होगाI उनका मानना था कि अगर आरिफ़ा की शादी बड़े घर में हो गयी तो उसकी भाई-बहनों का भविष्य संवरर जाएगाI विशेषकर उसकी बहनों काI

जल्द ही उसके परिवार को एक लड़का मिला जो उन्हें लगा कि आरिफ़ा के लिए उपयुक्त हैI आलम भी पड़ोस की झुग्गी बस्ती में रहता था लेकिन वो अपेक्षाकृत एक अच्छे परिवार से थाI आरिफ़ा की माँ ने 30,000 रुपये का ऋण लिया और एक भव्य समारोह में आरिफ़ा का निकाह संपन्न कियाI उस दिन आरिफ़ा बहुत सुन्दर लग रही थीI वो बेहद खुश भी थीI शायद उसे अपने सामने एक उज्जवल भविष्य नज़र आ रहा थाI

सुहागरात: जो कभी हुई ही नहीं

किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर थाI सुहागरात वाले दिन आलम ने आरिफ़ा के साथ कोई शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनायाI सिर्फ़ वही रात ही नहीं, उसने किसी भी रात आरिफ़ा को छूने तक की कोशिश नहीं कीI वो सिर्फ़ आकर सो जाया करता थाI इस बात को लेकर थोड़ी परेशान रहने लगी थी लेकिन उसे क्या पता था कि यह तो सिर्फ़ शुरुआत हैI

एक दोपहर, जब आरिफ़ा घर पर अकेली थी, उसके ससुर उसके कमरे में आये और उन्होंने उसके साथ ज़बरदस्ती सेक्स करने की कोशिश कीI आरिफ़ा बहुत घबरा गयी थी और जब उसने शोर मचाया तो उसके ससुर इस डर से वहां से भाग उठे कि आस-पड़ोस वालो को ना पता चल जाएI जब डरी-घबरी आरिफ़ा ने आलम को इस बात के बारे में बताया तो उसे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ाI

डर के साये में ज़िंदगी

आरिफ़ा उस घटना को एक बुरे सपने की तरह भूल आगे बढ़ना चाहती थी लेकिन उसकी यातना अभी खत्म नहीं हुई थीI अब उसके ससुर के साथ-साथ उसके पति के भाइयों ने भी उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए थेI लेकिन आरिफ़ा हर बार चिल्ला कर उनके मंसूबो पर पानी फ़ेर देती थीI वो किसी भी कीमत पर उनको अपने आसपास भी नहीं फटकने देती थीI

मुझे नहीं पता है कि जब परिवार का हर पुरुष सदस्य आरिफ़ा के साथ यौन सम्बन्ध बनाना चाहता था तो आलम क्यों उससे दूर रहता थाI कारण जो भी हो, उसने ना तो कभी आरिफ़ा की कोई मदद की और ना ही उसके साथ अपना रिश्ता सुधारने की कोई कोशिशI

समझौता

जल्द ही, परिवार के पुरुषों को एहसास हो गया कि उनकी दाल आरिफ़ा के आगे नहीं गलने वालीI इसलिए उन्होंने एक चाल चलीI उन्होंने आरिफ़ा के माता-पिता को बुलाया और उसके बारे में कई शिकायतें की जैसे - उसे खाना बनाना नहीं आता, वो परिवार के सदस्यों से घुलने-मिलने का कोई प्रयास नहीं करती, वो आलसी, बद्तमीज़ और घमंडी है, वगैरह वगैरहI

जब आरिफ़ा के माता-पिता ने उससे बात की, तो उसने उन्हें सब कुछ बता दियाI लेकिन वो यह बात सुन कर हैरान रह गयी कि उसके माता-पिता ने उसे अपने नए घर में 'समझौता' करने और वहीँ ससुराल में रहने को कहाI

तो आरिफ़ा अपने पति और ससुराल वालों के साथ रहती रहीI लेकिन हर समय एक अजीब सा डर लगा रहता थाI चैन से सोना तो दूर उसे पलक झपकाने में भी घबराहट होती थीI हमेशा यही डर सताता रहता था कि कहीं कोई आकर उससे ज़बरदस्ती ना करने लगेI वो उस घर में एक मिनट के लिए भी सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही थी और हमेशा तनाव में रहती थीI

एक दिन जब उसकी हिम्मत जवाब दे गयी तो उसने यह सब खत्म करने का फैसला कर लिया और अपने पैतृक घर वापस आ गयीI दोनों घरों के बड़े-बुज़ुर्ग अभी भी चाहते थे कि आरिफ़ा 'समझौता' कर ले और उन्होंने उसे वापस भेजने की बहुत कोशिश की, लेकिन इस बार वे उसे अपना मन बदलने के लिए मजबूर नहीं कर सके।

लम्बी, कभी ना ख़त्म होने वाली लड़ाई

एक पारंपरिक मुस्लिम समुदाय से होने के नाते, आरिफ़ा के लिए यह एक कठिन लड़ाई होने वाली थीI लेकिन धीरे-धीरे, उसके माता-पिता ने उसका समर्थन करना शुरू कर दिया थाI उन्होंने उसके ससुराल वालों को 'हक मेहर' (निकाह के समय दुल्हन के लिए पति या उसके परिवार द्वारा दिए गए धन या संपत्ति के रूप में एक अनिवार्य भुगतान, जो कि कानूनी रूप से है दुल्हन की संपत्ति है) वापस करने के लिए भी दबाव डालना शुरू कर दिया थाI

जैसा कि अपेक्षित था, उसके ससुराल वालों ने उन्हें पैसा देने से इनकार कर दियाI आखिरकार आरिफ़ा की मां ने तलाक की कार्यवाही सुचारु रूप से करने के लिए एक कानूनी सहायता केंद्र से संपर्क किया। उनकी मदद से, आरिफ़ा अपने ससुराल वालों के ख़िलाफ़ उनके द्वारा की गयी क्रूरता और बलात्कार के प्रयासों के लिए एक पुलिस शिकायत दर्ज करने में भी कामयाब रही।

हालांकि ये सभी आरोप गैर-जमानती थे,लेकिन केवल 15 दिनों के बाद आलम का परिवार जेल से बाहर थाI उनके पुलिस में कुछ अच्छे संपर्क' थे जिन्होंने उन्हें बाहर आने में मदद की थी - आरिफ़ा के माता पिता को अब समझ आ रहा था कि 'बड़े घर' में शादी करने का उनकी बेटी को क्या खामियाजा भुगतना पड़ रहा है!

तलाक के बाद संघर्ष

जेल से बाहर आने के बाद, आलम ने केस वापस लेने के लिए आरिफ़ा और उसके परिवार वालों को डराना-धमकाना शुरू कर दियाI उस पर दबाव डालने के लिए उन्होंने यह भी कहा की वे आरिफ़ा की इज़्ज़त समाज के सामने उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगेI लेकिन आरिफ़ा ने दृढ़ निश्चय कर लिया था और वो वो अपने निर्णय पर अटल थीI उसके पास स्थानीय समुदाय का समर्थन और मार्गदर्शन भी था, जिसने उसे इस लम्बी लड़ाई लड़ने की हिम्मत दी थीI

यह सब आरिफ़ा के लिए आसान नहीं था लेकिन कम से कम अब वो वह रात में शांतिपूर्वक सो तो सकती थीI बिना इस डर के उसके परिवार का कोई पुरुष सोते हुए उसका बलात्कार करने की कोशिश करेगाI आखिरकार आठ साल बाद उसे तलाक मिला।

मैंने तलाक के बाद आरिफ़ा से बात की तो पता चला कि उसे फ़िर से घर बसाने में दिक्कत हो रही हैI उसके ससुराल वालों ने समुदाय में उसके ख़िलाफ़ कई गलत अफवाहें फैला दी थी जिनकी वजह से लोगों को लगने लगा कि आरिफ़ा में कोई कमी थी और उसी वजह से आलम ने उसे 'अस्वीकार कर दिया'I हालांकि, आरिफ़ा ने उम्मीद नहीं छोड़ी है और अपनी जिंदगी को फ़िर से समेटने की कोशिश कर रही है। वह अब एक छोटी सी फर्म में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम करती है और बिना किसी भय या शर्मिंदगी के अपनी शर्तों पर अपना जीवन जी रही हैI

*नाम बदल दिया गया है और तस्वीर के लिए एक मॉडल का इस्तेमाल किया गया हैI

अकसर रिश्तों में महिलाओं को नियंत्रित किया जाता है या ऐसा करने कि कोशिश कि जाती हैI उनके साथ भावनात्मक, शारीरिक और आर्थिक रूप से और हिंसक और अपमानजनक व्यवहार भी किया जाता हैI इस तरह के व्यवहार जाने अनजाने में हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों द्वारा प्रोत्साहित किए जाते हैं। लव मैटर्स इंडिया भारतीय महिलाओं को अपमानजनक व्यवहार के ख़िलाफ़ अपनी आवाज उठाने में मदद कर रहा है। 25 नवम्बर को महिलाओं के विरूद्ध हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जा रहा है और इसी सन्दर्भ में आरिफ़ा की कहानी को चिन्मय ने लव मैटर्स इंडिया के साथ साझा किया थाI

क्या आपने या आपकी किसी महिला मित्र ने अपने घर या समुदाय में हिंसा का सामना किया है? इस बारे में लव मैटर्स को लिखें और अपने अनुभवों को हमसे साझा करें। आप हमारे फेसबुक पेज पर हमसे जुड़ सकते हैंI अगर आपके पास कोई विशिष्ट प्रश्न है, तो कृपया हमारे चर्चा मंच पर जाएंI

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