में अपने लिए समय ही नहीं मिलता था
कॉलेज के दिनों में मुझे प्यार हुआ था। यह हमारा आखिरी सेमेस्टर था और मैं और मेरा बॉयफ्रेंड, सुजल, कॉलेज के उन बचे कुचे दिनों में ज़्यादा से ज़्यादा समय एक साथ बिताना चाहते थेI हम दोनों एक दुसरे के साथ अपना भविष्य ज़रूर देख रहे थे लेकिन अभी हम दोनों कॉलेज के बाहर की दुनिया से बेखकर थे। हम मिलते तो थे लेकिन बहुत ज़्यादा नहीं ...हम उतनी बात भी नहीं कर पाते थे जितनी हम चाहते थे।
हर वक्त आस पास दोस्तों से घिरे रहने के कारण बात करना अटपटा लगता था। यहां तक कि मेरे हॉस्टल का गेट भी 10 बजे ही बंद हो जाते तो मुझे 10 बजे के पहले ही हॉस्टल लौटना होता था। जब सेमेस्टर करीब आने लगा तो सुजल मेरे साथ कुछ समय अकेले में बिताने के लिए बेकरार हो उठा।
मेरी बंदिशें और उसकी ख़्वाहिशें
वो कभी लद्दाख नहीं गया था और वो चाहता था कि मेरे साथ वहां जाएI इसलिए जब उसने मुझे यह बताया तो मैं सुनकर ख़ुशी से झूम उठी लेकिन तभी याद आया कि इसके लिए मम्मी पापा को कैसे मनाऊंगी।
मेरे माता-पिता तो मुझे एक रात भी किसी और के घर नहीं रुकने देते थेI उन्होंने मुझे दिल्ली सिर्फ़ इसलिए आने दिया क्योंकि मेरा दाखिला एक प्रतिष्ठित कोर्स में हुआ थाI वे सपने में भी नहीं सोच सकते कि उनकी बेटी का बॉयफ्रेंड हो सकता है और वो उसके साथ कहीं अकेले घूमने जा सकती है।
आंटी की बातों ने ट्रिगर का काम किया
हम साथ में कुछ समय बिताने के लिए हमेशा ज़रियों की तलाश में रहते थे और शहर में बहुत ही कम विकल्प थे। एक शाम हम अपनी पसंदीदा जगह दिल्ली हाट में बैठे थे और सुजल मुझे लद्दाख ट्रिप के लिए मनाने की कोशिश कर रहा था। उसने बताया कि अगर मैं मान जाऊं तो वह सब चीजों की व्यवस्था ख़ुद ही कर लेगा। हालांकि मैं इस बारे में बहुत निश्चिंत नहीं थी कि ऐसा होगा भी कि नहीं।
सुजल और मैं गरम गरम मोमोज खाते हुए इस बारे में सोच रहे थे। वह प्यार दिखाते हुए मुझे अपने हाथों से खिला रहा था। मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए उसे समझाया कि मेरे पिता कितने सख़्त हैं इसलिए लद्दाख जाने की ठोस वज़ह बनाना बहुत मुश्किल है। तभी अचानक पीछे से एक महिला की आवाज सुनाई दी जो जोर से कह रही थी कि 'आजकल की जनरेशन को क्या हो गया है ! जहां जाओ वहीं हाथ पकड़ कर चुम्मा चाटियाँ कर रहे होते हैं।'
ठोस वज़ह
पता नहीं वो औरत हमारे बारे में ही बात कर रही थी या नहीं पर हम अचानक एक दूसरे से अलग हो गए। हम दोनों में से कोई भी बेपरवाह नहीं था और हम नहीं चाहते थे कि लोग हमारे बारे में सिर्फ़ इसलिए बुरा सोचें क्योंकि हम दोनों एक दूसरे को प्यार करते थे। मुझे सुजल को छूना पसन्द था और ख़ासकर तब जब हम किसी मुद्दे पर बात कर रहे हों और मैं फब्तियों से काफी असहज महसूस करती थी।
लेकिन अब मैंने लद्दाख जाने की ठान ली थीI उस औरत ने मेरे अंदर एक आग सी पैदा कर दी थी। अब मैं सुजल के साथ ऐसी जगह पर समय बिताना चाहती थी जहां हमें रोकने टोकने वाला कोई ना हो।
'फुलप्रूफ' प्लान
सुजल की एक दोस्त रेडियो जॉकी थी, उसने मेरे डैड को मनाने की जिम्मेदारी ली। और चार दिनों के भीतर मेरे पिताजी ने मुझे फोन किया और पूछा कि 'तुमने मुझे बताया क्यों नहीं'? मुझे बिल्कुल भी पता नहीं था कि वो किस बारे में बात कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि मेरे प्रोफेसर ने उन्हें फोन करके मेरे लद्दाख प्रोजेक्ट के बारे में बताया और साथ में यह भी कहा कि मैं पापा को इस बारे में कैसे बताऊंगी। पापा बोले कि अगर मैं अपने सहपाठियों के साथ जाती हूं तो उन्हें मुझ पर पूरा भरोसा है भले ही इस ग्रुप में कुछ ऐसे लड़के भी हो जिनसे वे कभी ना मिले हों। तुम्हारे खाते में कुछ पैसे डाल दिए हैं खर्चे के लिए ….इतना कह कर उन्होंने फोन रख दिया।
मैं भौचक्क थी। मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि ख़ुशी मनाऊं या ख़ुद को दोषी मानूं। निश्चित तौर पर सुजल की दोस्त ने मेरे पिताजी को किसी तरह यह विश्वास दिलाया कि वह मेरी प्रोफेसर है और यह तरक़ीब काम कर गयी। इस प्लान में कोई लूपहोल नहीं था। और मेरे पिताजी कभी भी नहीं जान पाए कि मेरी लद्दाख ट्रिप की असली वज़ह क्या थी।
प्रेमी जोड़ों के लिए स्थान उपलब्ध करवाने की ज़रूरत
मैं सिर्फ जाना चाहती थी और मेरे डैड ने हामी भर दी थी। इसलिए मैं गई। हमारी ट्रिप बहुत ही बढ़िया रही। हमने बहुत मज़े किये। आज भी मैं उस ट्रिप से जुड़े कई पहलुओं के बारे में सोचती हूँ। मुझे नहीं पता कि अगर उस दिन दिल्ली हाट में उस आंटी के कहे शब्द मेरे कान में ना पड़ते तो क्या होताI क्या पता कि मैं इतना साहस कर पाती या नहीं? क्या मैंने सही किया?
लेकिन अगर सच्चाई की बात की जाए तो सुजल के साथ मेरा जाना और उसके साथ अकेले में बिताए गए कुछ वक़्त ने मेरे अंदर उसके प्रति विश्वास को और अधिक मजबूत बना दिया। अगर मैं उसके साथ ना गयी होती तो शायद मैं उसके साथ शादी करने के बारे में इतने विश्वास से ना सोच पातीI अगर ईमानदारी से कहा जाए तो मैं इस बारे में नहीं जानती। कुल मिलाकर मेरी सिर्फ इतनी इच्छा है कि हमारे देश में युवा प्रेमियों के लिए अपनी भावनाओं की ख़ुशी साथ में मनाने के लिए कुछ अवसर और स्थान होने चाहिए। ऐसे स्थानों के अभाव में युवा लोगों को अपने प्रेमी या प्रेयसी के साथ समय बिताने के लिए मेरी तरह हमेशा झूठ बोलते रहना पड़ेगा।
गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल किया गया है।
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