प्रीतिका और शैलेश (परिवर्तित नाम) कॉलेज में मिले थेI
मेरी पसंद नहीं
शैलेश और मैं कोयम्बटूर के एक महाविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई के दौरान मिले थेI वो कैंपस की जान था और हमेशा लड़कियों से घिरा रहता थाI मैं एक शांत स्वभाव वाली लड़की थी और अपने कुछ गिने चुने दोस्तों के साथ ही रहती थीI हमारा कैंपस कोई बहुत बड़ा नहीं था और वहां हर कोई एक दूसरे को जानता था, कम से कम सबका नाम तो पता ही थाI
हमारी पहली बार ढंग से बातचीत एक पार्टी के दौरान हुई थीI वो बड़ा अच्छा लग रहा था और मैंने पाया कि उसकी चाल-ढाल भी बाकी लड़को से अलग थीI वो बाकियों की तुलना में ज़्यादा बन-ठन के रहता था, उसने एक टैटू भी गुदवाया हुआ था और वो बाइक पर कॉलेज आता थाI शायद उसके इसी 'बैड-बॉय' वाले व्यक्तित्व की वजह से लोग उसकी तरफ खिंचे चले आते थेI
सच कहूं तो मुझे ऐसे लड़के बिलकुल अच्छे नहीं लगते थेI उस समय तो वो मुझे फूटी आँख नही सुहाता थाI मुझे उसकी सारी हरकतें बनावटी लगती थीI शायद उसके लिए राय बनाने में मैंने थोड़ी जल्दबाज़ी कर दी क्यूंकि जब मैंने उससे बात की तो जाना, कि वो इतना भी बुरा नहीं थाI
मैं भी अलग थी
उसके लिए यह जानना बड़ा सुखद एहसास था कि मैं बाकि लड़कियों की तरह ना तो उस पर मर रही थी और ना ही उसे रिझाने के लिए उसके साथ चिकनी-चुपड़ी बातें कर रही थीI उसके उलट मेरी बातें सुनकर तो उसे खीज ही हो रही थी क्यूंकि मैं तो उसकी पसंदीदा फुटबॉल टीम की बुराई कर रही थीI इस बात से उसे खासी ठेस पहुँच रही थीI
मेरे ख्याल से ज़्यादातर लड़कियों ने उससे स्पोर्ट्स के बारे में बात नहीं की थीI शायद तभी वो खेलकूद के बारे में मेरी जानकारी से बहुत प्रभावित हुआ था और यह बात उसने मुझे उस रात पहली बार कही थी, सात साल पहलेI
उसके बाद तो हम कहीं भी, कभी भी एक दूसरे से टकराते, ढेर सारी बातें करतेI धीरे-धीरे हम एक दूसरे के काफ़ी करीब आ गए थेI हम दोनों अब फ़ोन पर भी बात करने लगे थे और छुट्टी वाले दिन अपने बाकी दोस्तों के साथ एक दूसरे से मिल-जुल भी लेते थेI
साथ हैं या नहीं
हमारी दोस्ती दिन-प्रतिदिन गहरी होती जा रही थी और यह बात शायद लोगों को समझ नहीं आ रही थीI हर कोई तुक्का लगा रहा था, फ़िर चाहे वो हमारा अच्छा दोस्त हो या कोई अपरिचितI यह सबका पसंदीदा खेल बन गया था कि हमसे मनवा कर रहे कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैंI इस बात पर शर्तें लग रही थी कि हममे से कौन एक दूसरे से प्यार करता है और किसका दिल टूटने वाला हैI
ऐसा नहीं था कि इस गपबाजी से हमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा थाI हमने इस बारे में बात ज़रूर की थी लेकिन हमने कभी भी इस बात की वजह से अपनी दोस्ती में फ़र्क़ नहीं आने दिया थाI शैलेश कई लड़कियों के साथ डेट पर जाता था लेकिन वो कमीना नहीं था और वो मुझसे एक दोस्त की तरह ही बात करता थाI
मैं अपने भाइयों और अपने लड़के दोस्तों के इर्द-गिर्द बड़ी हुई थी इसलिए मुझे शैलेश के व्यवहार में कुछ भी असामन्य नहीं लगता थाI मेरे कई लड़के दोस्त तो भूल ही जाते थे कि मैं एक लड़की हूँ लेकिन अगर वो गलती से भी लड़कियों के खिलाफ कुछ बोलते थे तो उनकी शामत आ जाती थीI
दोस्ती का इम्तेहान
कॉलेज के बाद हम दोनों की अलग-अलग शहरों में नौकरियां लग गयी थी लेकिन हम हमेशा एक दुसरे के संपर्क में रहे थेI वो हमारी दोस्ती के एक इम्तेहान की तरह थाI हमें लगता था कि दूरियों से हमारे दिलों में फासले ना आ जाएं इसलिए हम हर हफ़्ते बात करते थे और रोज़ एक दूसरे को मैसेज भेजते थेI
दो महीने के बाद शैलेश काम के सिलसिले में मुंबई आया और मेरे साथ ही रुकाI एक दिन काम के बाद हम दोनों ने साथ में पार्टी की, दारु पी और 3 बजे तक एक दूसरे से बातें करीI मैंने उसे बताया कि हमारे दोस्त हमारे बारे में क्या सोचते हैं, बोलते-बोलते मैं कुछ नर्वस महसूस कर रही थीI अगले कुछ पल इतने अनमोल गुज़रे कि वो हमेशा मुझे याद रहेंगेI
ज़िन्दगी भर की दोस्ती?
उसने ध्यान से मेरी बातें सुनीI उसके चेहरे के भाव एक दम से बदल रहे थेI हम दोनों बेहद नशे में थे, उसने मुझे अपनी और खींचा और मुझे किस कर दियाI
आय हाय! शायद वो मेरी ज़िन्दगी का सबसे घटिया चुम्बन था!
हम उसी समय समय अलग हो गए, हमसे एक दुसरे की तरफ़ देखा और हँसते-हँसते लोटपोट हो गएI
वो बोला "ऐसा लगा कि अपनी बहन को किस कर रहा हूँ", मैं तो हँसते-हँसते सोफे से ही गिर गयी थीI
हमारी इस बेवकूफ़ाना हरकत को तीन साल हो गए हैंI हमारे कुछ दोस्तों को आज भी लगता है कि हमें साथ होना चाहिए और हम उन्हें फ़िर याद दिलाते हैं कि हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैंI मुझे लगता है कि यह बात शायद लोगों को कभी हजम नहीं होगीI