कोंकणा, 28 वर्ष, कोलकाता में एचआर एक्जीक्यूटिव हैं।
चारों ओर उमंग, उत्साह
यह साल का वह समय होता है जब मेरे शहर कोलकाता में लगभग एक हफ़्ते तक दुर्गा पूजा की धूम रहती है। सब लोग मां दुर्गा के स्वागत की तैयारी में जुटे होते हैं।
यह ऐसा समय होता है जब बंगाली लोग चाहे जिस भी परिस्थिति में रहें, लेकिन पूरे उत्साह से खुशियां मनाते हैं और माता का स्वागत करते हैं। इस समय चारों ओर उमंग, उत्साह और प्यार और ख़ुशी का माहौल होता है।
जयदीप और उसका परिवार हाल ही में हमारी गली में रहने के लिए आया था। उसके पापा महाराष्ट्र से थे और मम्मी बंगाली थीं। वे मुंबई से यहां शिफ्ट हुए थे। जल्दी ही पड़ोस के लड़कों से जयदीप की दोस्ती हो गयी। वे कभी-कभी पास के पार्क में शाम को क्रिकेट खेलते थे।
कॉलेज में स्टार
मेरा एमबीए का अंतिम साल था। मेरा भाई सोहम, तब मेडिसिन की पढ़ाई करता था और जब भी वह खाली होता, उनके साथ खेलता था। मैंने अपने भाई से सुना था कि जयदीप का इंजीनियरिंग का आख़िरी साल है और वह अपने कॉलेज का स्टार है। शायद वह मुझसे एक साल जूनियर था।
कोलकाता में लगभग हर मुख्य सड़क या क्षेत्र का अपना दुर्गा पूजा उत्सव होता है। हमारे पड़ोस की दुर्गा पूजा काफी पुरानी, प्रतिष्ठित और भव्य थी। परंपरागत रूप से हर शाम पूजा परिसर में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे, जिसमें सभी युवा और बुज़ुर्ग भाग लेते थे। इन चार दिनों तक हर समुदाय के लोग एकजुट होकर काफी हर्षोल्लास के साथ यह उत्सव मनाते हैं।
मैं डांस और एक नाटक में हिस्सा ले रही थी। इसके लिए रोज़ रिहर्सल करना पड़ता था और इस दौरान ख़ूब मस्ती होती थी। लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था, नाटक में मेरे विपरीत किरदार निभाने वाले को अचानक चिकन पॉक्स हो गया। वो हमारा मुख्य किरदार था और इतने कम समय में इसे बदल पाना मुमकिन नहीं था इसलिए यह लगभग तय हो चुका था कि नाटक कैंसिल हो जाएगा। तभी किसी ने जयदीप का नाम सुझाया। वह भी काफ़ी उत्साहित लग रहा था।
हम एक साथ बहुत अच्छे लग रहे थे
हमें जल्द ही पता चल गया कि वह काफी अनुभवी अभिनेता था, उसने कई स्कूल और कॉलेज के नाटकों में भाग लिया था। हम एक नवविवाहित जोड़े का किरदार निभाने वाले थे। मज़ेदार बात यह थी कि मुझे किरदार निभाते हुए अज़ीब लग रहा था लेकिन मैं उसके साथ काफ़ी सहज महसूस कर रही थी।
अगले कुछ दिनों तक तैयारी, रिहर्सल और प्लानिंग चलती रही। जयदीप और मैं एक साथ नाटक के सामान की खरीदारी करने भी गए। वह बंगाली बोल रहा था और मुझे अच्छा लग रहा था। वह बंगाली धोती कुर्ता में बेहद प्यारा और आकर्षक लग रहा था। हम दोनों को संगीत बहुत पसंद था और हमारी अन्य पसंद भी मिलती जुलती थीं। जयदीप बहुत मिलनसार और कॉन्फिडेंट था। मैं धीरे-धीरे उसके प्यार में पागल हो रही थी।
नाटक के दिन जब मैं मंच पर एक नई दुल्हन की तरह तैयार होकर पहुंची तो वह मुझे देखकर मुस्कुराया। मैंने उसकी आंखों में एक चमक देखी। जाने यह हकीकत थी या मेरी कल्पना। नाटक हिट रहा! लोगों ने कहा कि हम एक साथ बहुत अच्छे लग रहे थे।
हर दिन सुंदर
दुर्गा पूजा के बाद से हम लगभग पूरा दिन एक साथ बिताते थे ...साथ में भोग (दोपहर का भोजन) करते और रात भर पंडाल में घूमते रहते थे। हम सभी युवा दो कारों में सवार हो जाते थे और दूसरे पूजा पंडालों में जाते थे। दुर्गा पूजा के दौरान कोलकाता पूरी रात जगमगाता और चमकता है ... लोगों की भीड़, हँसी ठिठोली, खाना पीना, लाइट, संगीत ... यह एक जादू की तरह है जो सभी पर छाया रहता है।
इन सबके बीच ही जयदीप और मैंने जो ख़ूबसूरत खूबसूरत पल बिताए वो बहुत जल्दी बीत गया। भीड़ से भरे पंडाल में कभी वह मेरा हाथ पकड़ लेता तो कभी हाथों का घेरा बनाकर मुझे भीड़ से बचाता। मैं उसका इंतज़ार करती ताकि हम एक साथ लंच कर सकें। मैं उस साल ख़ूबसूरत दिखने के लिए अपना ख़ूब ख़याल रखती थी। जयदीप मेरा ओडिसी देखने के लिए वहीं पहली पंक्ति में बैठा था। इस बार मुझे पता था कि मुझे उसकी आंखों में चमक नहीं दिखेगी। वो आंखें जो एक शब्द बोले बिना भी बहुत कुछ कह रही थीं।
दुर्गा पूजा खत्म हो गया लेकिन हमारे बीच कुछ बदल गया था। आस पड़ोस के सभी लोग सोचते थे कि हम एक कपल हैं ... सिर्फ हमें ही नहीं मालूम था। और हम अगले चार सालों तक इस बारे में आश्वस्त नहीं हो पाए जब तक कि मैं मिस कोंकणा भट्टाचार्य से कोंकणा शिंदे नहीं बन गईं।
*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल किया गया है।
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