तुम्हे किसी के साथ नहीं बांटूंगा
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तुम्हे किसी के साथ नहीं बांटूंगा

द्वारा Anoop Kumar Singh अप्रैल 13, 10:11 पूर्वान्ह
‘मैं तुम्हे इतना प्यार करता हूं कि मैं तुम्हे किसी और के साथ बाट नहीं सकता’I अमन अक्सर निशा को यही कहता थाI उसकी यह बात सुनकर वो फूली नहीं समाती थीI लेकिन जल्द ही उसे यह महसूस हो गया था कि केवल चीज़ों को ही साझा किया जा सकता हैI अमन के साथ के रिश्ते ने आखिर उसे एक चीज़ ही तो बना दिया थाI वो 'चीज़' जिस पर सिर्फ़ अमन का अधिकार थाI

मैं लखनऊ के एक मध्यम वर्गी परिवार में पली-बड़ी हूँ। मेरी शिक्षा पूरी करने के बाद मुझे दिल्ली के एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल गई। सब कुछ नया जैसा था - बड़ा शहर, हमेशा लोगों और गाड़ियों से भरी सड़के, कॉल सेंटर की नाइटलाइफ़ जहां लड़के-लड़कियाँ आपस में खुलकर बात करते, यहाँ तक कि सिगरेट भी साथ पीते। यहीं मैं अमन से मिली थीI हम दोनों एक ही ग्रुप के दोस्तों के साथ घूमा करते और अकसर साथ खाना खाया करते थे।

मन ही मन मैंने अमन को पसंद करना शुरू कर दिया थाI वो लंबा, गोरा और सुंदर था। मुझे पता चला कि वह भी मेरी तरह एक छोटे से शहर से दो साल पहले दिली आया थाI हम साथ समय बिताते, साथ घूमते और साथ फिल्में देखते थे। जल्द ही हम अपने दोस्तों से दूर हो गए और एक दूसरे के करीबI

कभी हां कभी ना

एक रात अमर मुझे फ़िल्म दिखाने के लिये बाहर ले गया। बिलकुल ठेठ फ़िल्मी स्टाइल में, उसने मेरे वाइन ग्लास में एक अंगूठी रखी हुई थीI मुझे तब पता चला जब वो मेरे मुंह में आ गईI उसके बाद उसके मुंह से वो जादुई तीन शब्द निकले जिन्हें सुनने के लिए मैं पिछले छः महीने से बेकरार थीI मेरे हाँ कहते ही कब अगले कुछ दिनों में हमारी मंगनी हो गई मुझे पता ही नहीं चला!

हम दोनों जानते थे कि हमें अपने माता-पिता को समझाना इतना आसान नहीं होगा। हालांकि हम दोनों की उम्र शादी लायक हो चुकी थी लेकिन हमारे परिवारों को हमारी शादी की कोई जल्दी नहीं थीI वो एक अलग जाति से था और उसके माता-पिता का तो मेरे ज़िक्र भर से ही मुंह फूल जाता थाI मेरा परिवार भी शादी के लिए तैयार नहीं था लेकिन मेरे आग्रह के बाद वे अमन से मिलने के लिए राज़ी हो गए। उन्हें वो बहुत अच्छा लगा लेकिन बस एक इंसान की नज़र सेI इससे ज़्यादा कुछ और नहीं।

'शादी करने की इतनी जल्दी क्या है? मेरी मां का सवाल थाI उनका यह भी मानना था कि अभी हम एक-दूसरे को ढंग से जानते भी नहीं है इसलिए हमें साथ में और अधिक समय बिताना चाहिए। लेकिन मैंने अपना मन बना लिया था, अमन ही मेरे लिए सही साथी था।

इस बीच, अमन के माता-पिता मुझसे मिलने तक के लिए भी सहमत नहीं हुए थे। उनका फैसला साफ़ थाI अमन ने अपने परिवार के खिलाफ़ जाने का फैसला किया और मेरा साथ दिया। उसके इस क़दम ने मेरे दिल में उसके प्यार को और गहरा बना दिया। हमने एक साथ रहने का फैसला किया और मैं उसके साथ रहने चली गई।

सपने हुए सच?

शुरू- शुरू में अमन के साथ एक ही घर में रहना एक सपने जैसा था – सुबह उसकी बगल में जागना, एक साथ खाना, उसके लिये खाना बनाना, उसका टिफिन पैक करना, उसके लिए चाय बनाना जैसे मेरे जीवन का हिस्सा ही बन गया था। लेकिन कुछ हफ़्तों बाद, चीजें बदलना शुरू हो गई।

एक सुबह जब मैं ऑफिस के लिए तैयार हो रही थी, तो अमन बाथरूम से बाहर आया और बोला कि यह ड्रेस बहुत छोटी नहीं है? तुम्हे नहीं लगता तुम्हें इसे हमारे हनीमून के लिए रखना चाहिये, ऑफिस पहन कर जाने के लिए नहीं?

मैंने पहले भी इस ड्रेस को पहना था लेकिन तब अमन ने इसके बारे में कभी टिप्पणी नहीं की थी। मुझे उसके व्यवहार में कुछ अजीब तो लगा, लेकिन मैंने इसे सिर्फ़ एक दिन की बात समझ कर भुला दिया। लेकिन उसके बाद तो उसकी टोका-टाकी रोज़ की ही बात हो गईI अब उसे मेरे कुर्ते के रंग और यहाँ तक कि मेरे बाल बनाने के तरीके से भी दिक्कत होने लगी थी!

प्यार या नियंत्रण?

जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, अमन ने मेरे हर काम में दखलअंदाज़ी शुरू कर दीI अचानक उसे लगने लगा कि एक लड़की के लिए रात में काम करना सही नहीं है तो उसने मुझे नौकरी बदलने के लिए दबाव डालना शुरू कर दियाI उसे मेरा, मेरे दोस्तों के साथ रहना यहाँ तक कि मेरे माता-पिता से बात करने से भी परेशानी होने लगी थी! उसकी हरकतों से परेशान होकर मैं चुप रहना शुरू हो गई थीI

जब मैं रसोईघर या बाथरूम में होती, तो अमन मेरा फोन चेक किया करता था। कभी-कभी वह फेसबुक और व्हाट्सएप पर मेरे दोस्तों को मैसेज भेजता। जब भी मैं फोन पर बात करती तो वो पूछता कि मैं किस्से बात कर रह रही थी और क्यों। समय के साथ हमारे रिश्ते में प्यार बढ़ना चाहिए था लेकिन बढ़ रहा था सिर्फ़ शकI

'मैं तुम्हे इतना प्यार करता हूं कि मैं तुम्हे किसी और के साथ नहीं बाट सकता' अमन अक्सर मुझे यही कहता। एक समय था कि उसके मुंह से निकले यह शब्द सुनकर मेरे पैर ज़मीन पर नहीं टिकते थेI लेकिन आज यह शब्द सुनकर मुझे घुटन महसूस होती थीI

हम खाने या नाश्ते में क्या खाएंगे यह भी वो ही तय करता था। एक दिन मैंने अपनी पसंद से कढ़ी चावल बना लिए तो वो इतना नाराज़ हो गया कि बिना कुछ भी खाये खाली पेट सो गया।

धीरे धीरे वो मेरे पैसो पर भी नज़र रखने लग गयाI एक दिन उसने मेरे एटीएम कार्ड से मेरे पूरे एक महीने की तनख्वाह निकाल ली और घर के लिए सामान ले आयाI मुझे बिना कुछ भी बतायेI

प्यार का चक्कर हुआ रफूचक्कर

अब मुझे उसके साथ रहने में कोई मज़ा नहीं आ रहा थाI मैं घंटों ऑफिस के बाद भी ऑफिस में ही रहने लगी थीI हमें साथ रहते हुए छः महीने बीत चुके थे और अमन अब मुझसे शादी करने के लिए बेचैन हो रहा था। उसने फैसला किया कि हम कोर्ट मैरिज करेंगे और कुछ समय बाद हमारे माता-पिता को बता देंगे। उसने कोर्ट मैरिज की तारीख भी तय की - 13 नवंबर

अक्टूबर लगभग खत्म होने को था और जैसे-जैसे शादी की तारिख पास आ रही थी मेरी घबराहट बढ़े जा रही थीI मुझे डर भी लग रहा था और मैं दुखी रहने लगी थीI मैंने सोचा कि अमन को अपनी मनोदशा के बारे में बता दूँI लेकिन मुझे डर था कि मेरी बातें सुनकर वो शायद मुझसे और नाराज़ हो जाएI

अमन ने कभी भी मेरी ऊपर हाथ नहीं उठाया थाI शायद यही वजह थी कि मुझे लग रहा था कि कहीं मैं छोटी सी बात का बतंगड़ तो नहीं बना रही हूँI मुझे यह भी लग रहा था कि यह तो हर रिश्ते की सच्चाई होता होगाI

बात हमारी शादी के एक दिन पहले की हैI अमन बहुत उत्साहित था और उसने मुझसे कहा, 'कल के बाद से तुम मेरी हो जाओगी, कानूनी रूप से भी। तुम पर मेरा और सिर्फ़ मेरा अधिकार होगा! उसने यह कहा और फ़िर किसी काम से बाहर चला गयाI पता नहीं मुझे क्या हुआ। लेकिन उसके कहे वो शब्द मेरे कानो में नगाड़ो की तरह बज रहे थेI मुझे अचानक एहसास हुआ कि इतने महीनो से मैं खुश क्यों नहीं थीI अमन ने मुझे एक इनाम में मिले एक तोहफ़े की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया थाI बिना इस बात की परवाह किये बिना कि मैं क्या चाहती हूँ, क्या सोचती हूँI मैं अब उसके जीवन में एक 'चीज़' बनकर नहीं रहना चाहती थीI मैं खुद के लिए जीना चाहती थीI मैंने अपने कपड़े समेटे, अपना पर्स लिया और घर से बाहर निकल गई।

मैंने हवाई अड्डे के लिए टैक्सी बुक की और लखनऊ के लिए फ्लाइट लेकर अपने घर चली गईI अपने फ़ोन को मैं पहले से ही कूड़ेदान की भेंट चढ़ा चुकी थीI मैं अमन की ज़िंदगी से हमेशा के लिए दूर होकर अपने माता पिता के पास वापस चली गई जो खुली बाहों और गीली आँखों से मेरी राह देख रहे थेI शादी की डोली से भागे हुए आज पूरा एक महीना बीत चुका है लेकिन मैं आज जितनी खुश हूँ, शायद पहले कभी नहीं थी!

*नाम बदल दिए गए हैं 

*तस्वीर के लिए मॉडल का इस्तेमाल हुआ है

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लेखक के बारे में: अनूप कुमार सिंह एक फ्रीलांस अनुवादक और हिंदी कॉपीराइटर हैं और वे गुरुग्राम में रहते हैं। उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। वह हेल्थ, लाइफस्टाइल और मार्केटिंग डोमेन की कंपनियों के लिए हिंदी में एसईओ कंटेंट बनाने में एक्सपर्ट हैं। वह सबस्टैक और ट्विटर पर भी हैं।

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