वैलेंटाइन डे की सौगात लव आजकल -2 इसी नाम की पहले आई फिल्म की कहानी से मिलती जुलती फिल्म है। यहाँ दो प्रेम कहानियाँ साथ चलतीं हैं – एक आज की आधुनिक प्रेम कहानी और दूसरी फ़्लैशबैक में चलने वाली 90 के दशक की कहानी। 2 घंटे 20 मिनट की कहानी को अगर चंद शब्दों में कहना हो तो कुछ यूं है -बीस साल की जोई चौहान (सारा अली खान) सिरियस लॉंग टर्म रिश्ते में नहीं आना चाहती। वह अपने करियर को लेकर बहुत गंभीर है और सिर्फ़ बिना कमिटमेंट वाले रिश्ते में रहना चाहती है लेकिन फिर दृश्य में हमारा हीरो वीर (कार्तिक आर्यन ) आता है। हालाँकि कहानी का ट्विस्ट रघु (रणदीप हुडा) है जो अपनी प्रेम कहानी सुनाता है जिसके कारण जोई अपने जिंदगी के प्लान पर दुबारा सोचती है।
इम्तियाज़ अली की खासियत है कि वह हमारे समय की कहानी कहते हैं -हमारे समय के रिश्तों और उसमें आई दिक्कतों की। अनिच्छुक माता पिता और जालिम जमाने के बदले अब करियर और प्यार का संघर्ष शुरू हो गया है। इसलिए प्रेम कहानी दरअसल दो प्रेम कहानियों के लिए बहुत सुंदर समां बाँधा गया था लेकिन अचानक सब ठंडा पड़ गया।
आजकल के रिश्ते का एक प्रमुख तत्व है - सेक्स। यह समझ आता है। हमें देह का देह से प्रेम पसंद भी है लेकिन सिर्फ़ इसी एक चीज़ से रिश्ता नहीं चलता है। प्यार पर बनी फिल्म में हमें इतना प्रेम चाहिए कि सिर से पैर तक मन भींग उठे और रोमांस देखकर चॉकलेट की तरह दिल भी पिघल उठे, खासकर वैलेंटाइन डे पर।
अफसोस कि फिल्म में ऐसा रोमांस है ही नहीं। गीक टाइप के कैरेक्टर भी क्यूट लगते हैं लेकिन अपने आर्यन को देखकर ऐसी उफ्फ़ या औ$$$ वाली फीलिंग ही नहीं आती। बल्कि को वर्किंग स्पेस के मालिक रघु और जोई के बीच ज़्यादा केमेस्ट्री नजर आती है। ऐसे भी पल आते हैं जब हम लीड कैरेक्टर्स के बजाए इन दोनों के प्यार में पड़ जाते हैं।
सबसे बड़ी निराशा जोई के कैरेक्टर से होती है। डाइरेक्टर साहेब लड़की का दिल समझ ही नहीं पाए। वह मुख्य पात्र थी। हमें उससे लगाव होना चाहिए था। लेकिन इसके बदले हमें सिर्फ़ मस्ती चाहने और लड़कों को फ्री ड्रिंक के लिए इस्तेमाल करने वाली लड़की मिलती है और पसंद नहीं आती है। उसका करियर का राग चिढ़ाने वाला और अविश्वसनीय लगता है। हम यह सोचने को बाध्य हो जातें हैं कि क्या डायरेक्टर किसी करियर ऑरिएन्टेड हीरो को भी ऐसा ही दिखाते ? क्या वह हमारी हीरोइन के लिए थोड़े ज़्यादा कठोर नहीं हो गए हैं!
फिल्म के सभी पात्र, डायरेक्टर और फिल्म रिश्ते और कमिटमेंट के बारे में कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी फिल्म जो जजमेंट देती है वह यक्क वाली फीलिंग देती है। किसी एक व्यक्ति से कमिंटमेंट नहीं होना भी उतना ही सही है जितना कि एक पार्टनर से ज्यादा होना। हम एक पार्टनर के साथ हैं या एक से ज़्यादा, हम तब तक गलत या सही नहीं हैं जब तक आप और आपको प्यार करने वाले के बीच इस बारे में समझदारी और सहमति है। मूल मंत्र है कि प्यार करें और दूसरे को बिना किसी लेकिन और या के करने दें। जो एक के लिए सही है, जरूरी नहीं वह दूसरे के लिए भी सही हो। फिल्म की ये बात एल एम को समझ नहीं आई।
जैसे इतना ही काफ़ी नहीं था, अंतिम 50 मिनट में हीरो क्रीप की तरह पीछे लग जाता। ‘मैं यह कर सकता हूँ क्योंकि हमारे बीच इससे कहीं ज़्यादा कुछ तो है’ वाला रवैया नहीं चलता है। बॉस, आप उसे अपने घर से क्लब तक ले जाते हो। हम तड़प देखते हैं आपकी और जैसे ही मामला गर्म होता है, आप ठंडे पड़ जाते हो !.. कैसे! लड़की की इच्छा का क्या, हीरो?
तो इसलिए हम इम्तियाज़ अली को इस फिल्म में प्यार की सभी संभावनाओं को तलाशने से चूक जाने के लिए 3 एल एम मॉन्सटर्स देते हैं। आज के युवाओं को सेक्स चाहिए और वे इसके बारे में बातें करते हैं। इसका ये मतलब नहीं कि उन्हें रोमांस नहीं चाहिए। इम्तियाज़ अंकल, छोड़ो कल की बातें! आज का प्यार सब चाहता है!
लेकिन उस काम के लिए जिसे करने में वह बेस्ट हैं - आज के प्यार की कहानी कहने के लिए इम्तियाज़ सर और उनकी नई फिल्म को 2 एल एम दिल भी दिए जाते हैं।
नोट: लव मैटर्स मूवी रिव्यू में फिल्मों का विश्लेषण किया जाता है कि उनमे लव, सेक्स और रिलेशनशिप को कैसे दिखाया गया है। वह फिल्म जिसमें दिखाया हो LM-style romance उसे मिलेंगे LM Hearts! और जिस फिल्म ने खोयी सहमति, निर्णय या अधिकारों की दृष्टि, उसे मिलेगा LM Monster !