क्या वैक्सीन प्रभावी है क्योंकि वैक्सीन लगवाने के बाद भी लोगों को कोविड हो रहा है?
अन्य वैक्सीन की तरह कोविड वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद भी व्यक्ति वायरस के चपेट में आ सकता है। कोई भी वैक्सीन कोरोना वायरस से 100% इम्यूनिटी की गारंटी नहीं देती है।
हालांकि, वैक्सीन बीमारी की गंभीरता और उसके प्रभाव को रोक सकती है। जो लोग वैक्सीन लगवाते हैं उनके अस्पताल में भर्ती होने या कोरोना वायरस से मरने की संभावना बहुत कम होती है। यह वायरस के कारण होने वाली बीमारी की गंभीरता को हल्का कर देता है।
दूसरे शब्दों में, वैक्सीन हमें बीमार होने से बचाएगी और मास्क एवं अन्य प्रोटोकॉल दूसरों को संक्रमण से बचाएंगे। इसलिए अभी भी वैक्सीन लगवाना और कोविड -19 प्रोटोकॉल को पालन करना जरूरी है। जैसे बाहर जाते समय मास्क पहनना, दिन में कई बार हाथ धोना और सार्वजनिक रूप से सामाजिक दूरी बनाए रखना। क्योंकि आप अभी भी वायरस के वाहक हो सकते हैं और जिन लोगों ने अभी तक वैक्सीन नहीं लगवाया है या जो किसी बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें संक्रमित कर सकते हैं।
क्या कोविड टेस्ट विश्वसनीय हैं?
वर्तमान में इसकी जाँच के लिए दो प्रकार के टेस्ट उपलब्ध हैं।
मॉलीक्यूलर रीयल-टाइम पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) टेस्ट वायरस के आनुवंशिक मैटेरियल का पता लगाता है। इस टेस्ट में, सैम्पल लेने के लिए नाक मेंअंदर तक 6 इंच का स्वैब (रुई की तीली सरीखी वस्तु) डाला जाता है।
एंटीजन टेस्ट वायरस की सतह पर विशेष प्रोटीन का पता लगाता है।
आरटी-पीसीआर कोविड की जाँच में इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे आम टेस्ट है और यदि इसे सही तरीके से किया जाए तो यह बहुत प्रभावी है। सटीक रिजल्ट पाने के लिए, संदिग्ध संपर्क या संक्रमण के आठ दिन बाद आरटी-पीसीआर टेस्ट किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टेस्ट में पता चलने लायक पर्याप्त वायरल मैटेरियल मौजूद हो। आरटी-पीसीआर टेस्ट में गलत-पॉजिटिव रिजल्ट भी आ सकते हैं क्योंकि ठीक होने के बाद भी संक्रमण लंबे समय तक शरीर में मौजूद रह सकता है, हालाँकि ऐसा बहुत ही कम मामलों में देखने को मिलता है।
कौन सी वैक्सीन सबसे अधिक प्रभावी है?
भारत में टीकाकरण कार्यक्रम दो टीकों - कोविशील्ड और कोवैक्सिन से शुरू हुआ, जिसमें से दोनों समान रूप से सुरक्षित और प्रभावी हैं। भारत की कोविशील्ड और यूके की एस्ट्राजेनेका वैक्सीन दोनों एक समान है। आम लोगों के लिए लॉन्च किए जाने से पहले दोनों टीकों का वैज्ञानिकों द्वारा कई दौर का परीक्षण किया गया है। लॉन्च के बाद भी, टीके निरंतर और गहन सुरक्षा निगरानी से गुजरते हैं। चूंकि दोनों टीके समान रूप से प्रभावी हैं, इसलिए किसी एक को दूसरे से बेहतर कहना संभव नहीं है।
भारत में वर्तमान में उपलब्ध ये दोनों टीके स्थानीय रूप से निर्मित होते हैं जिससे इनकी स्थानीय आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। भारत में अब तक 80 करोड़ से अधिक लोग कोरोना वायरस का टीका लगवा चुके है, जिसके बहुत कम साइड इफेक्ट देखने को मिले हैं। दुनिया भर में लाखों लोग वैक्सीन लगवा रहे है।
कुछ अन्य टीके भी अब टीकाकरण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में उपलब्ध हैं या होने वाले हैं, जैसे कि रूस में निर्मित ‘स्पूतनिक’ और भारत में निर्मित ZyCov-D. जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि सभी टीकों को सरकार द्वारा मान्यता मिलती है और कठिन परीक्षण से गुजरना पड़ता है और ये समान रूप से सुरक्षित होते हैं। अपने क्षेत्र में उपलब्धता के अनुसार जितनी जल्दी हो सके आपको वैक्सीन लगवा लेना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए कौन सा टीका बेहतर है?
भारत में इस्तेमाल के लिए स्वीकृत टीकों यानी कोविशील्ड, कोवैक्सिन और ‘स्पूतनिक-V’ में से किसी भी टीके को यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी - ईएमए द्वारा मान्यता नहीं दी गई है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई), पुणे, जिनके पास एस्ट्राजेनेका से भारत में कोविशील्ड बनाने का लाइसेंस है, उन्होंने कोविशील्ड को ईएमए द्वारा मान्यता दिलाने के लिए आवेदन ही नहीं किया है।
जून में, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ, अदार पूनावाला ने कहा कि वह मान्यता ना मिलने को लेकर चिंतित हैं और यूरोपीय संघ में मान्यता प्राप्त करने के लिए भारतीय फैक्ट्री की तरफ से यूरोपीय संघ की दवा नियामक एजेंसी को ज़रूरी कागजात प्रस्तुत किए गए हैं।
हालांकि, कई देश और एयरलाइंस अब वैक्सीन की दोनों खुराक ले चुके यात्रियों के लिए यात्रा नियमों में ढील दे रहे हैं। यूरोप अब वैक्सीन की पूरी खुराक ले चुके कुछ देशों के पर्यटकों के लिए खुला है। अब यूरोप के नौ देश यात्रा के लिए कोविशील्ड स्वीकार कर रहे हैं। अधिक विवरण यहां पढ़ें।
साथ ही, यूरोपीय संघ या कई अन्य देशों में यात्रा के लिए वैक्सीनेशन की पहले से मौजूद कोई शर्त नहीं है, क्योंकि आपको अभी भी उस देश में आवश्यक क्वारंटाइन/आइसोलेशन दिशानिर्देशों से गुजरना होगा। आप निगेटिव NAAT टेस्ट जैसे कि RT-PCR टेस्ट, या रैपिड एंटीजन टेस्ट के साथ कई देशों की यात्रा कर सकते हैं।
अगस्त तक, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत पर अपने यात्रा प्रतिबंध को नहीं हटाया है, लेकिन जिनके पास स्टूडेंट वीजा (F-1) है, वे देश की यात्रा कर सकते हैं। कुछ अन्य श्रेणियां जो राष्ट्रीय हित के अंतर्गत अपवाद की श्रेणी में आती हैं, उन्हें भी यात्रा करने की अनुमति है। विवरण यहां पढ़ें।
रूस, सर्बिया, कोस्टा रिका, मिस्र, घाना, दक्षिण अफ्रीका, अफगानिस्तान, किर्गिस्तान, अल्बानिया ऐसे देश हैं जो भारतीय यात्रियों के लिए खुले हैं। भारत से यात्रा करने वालों को इन देशों में क्वारंटाइन करने की आवश्यकता नहीं है। इन देशों में प्रवेश करने के लिए सिर्फ़ निगेटिव RT-PCR रिपोर्ट ही काफी है।
इन यात्रा नियमों में भी बदलाव या ढील दिए जाने की संभावना है क्योंकि भविष्य में महामारी की स्थिति में सुधार होगा।
कोविड -19 टीकों के साइड इफेक्ट क्या हैं?
बुखार या शरीर में दर्द टीके का एक बहुत ही सामान्य साइड इफेक्ट है जो कुछ दिनों में दूर हो जाता है। यह बच्चों को बचपन में खसरा या काली खांसी का टीका लगाने पर होने वाले साइड इफेक्ट के जैसा ही है। ज्यादातर बुखार या शरीर में दर्द हल्का होता है और क्रोसिन से ठीक हो जाता है। बुखार आना, शरीर में दर्द या अस्वस्थ महसूस होना इस बात का लक्षण है कि आपका शरीर वैक्सीन के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहा है और रोग से लड़ने की क्षमता (एंटीबॉडी) विकसित कर रहा है। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि टीका लेने वाले हर व्यक्ति को साइड इफेक्ट हो या इसकी गंभीरता भी अलग-अलग हो सकती है।
जब हमें अभी भी सभी प्रोटोकॉल का पालन करना है तो वैक्सीन क्यों लें?
कोविड -19 वैक्सीन लेने के बाद भी, सभी प्रोटोकॉल का पालन करते रहना चाहिए जैसे कि बाहर जाते समय मास्क पहनना, दिन में कई बार हाथ धोना और सार्वजनिक रूप से सामाजिक दूरी बनाए रखना। क्योंकि आप अभी भी वायरस के वाहक (कैरियर) हो सकते हैं और उन लोगों को संक्रमित कर सकते हैं जिन्होंने अभी तक वैक्सीन नहीं लिया है या जो बीमारी की चपेट में हैं।
किसी भी टीके की तरह, कोरोना वैक्सीन की पूरी खुराक लेने के बाद भी व्यक्ति वायरस की चपेट में आ सकता है। कोई भी टीका कोरोनावायरस से 100% इम्यूनिटी की गारंटी नहीं देता है।
हालांकि, टीका रोग की गंभीरता और उसके प्रभाव को रोक सकता है। जो लोग टीका लगवाते हैं उनके अस्पताल में भर्ती होने या इससे मरने की संभावना बहुत कम होती है। यह वायरस के कारण होने वाली बीमारी की गंभीरता को कमजोर कर देता है। अतः दूसरे शब्दों में, टीका आपको बीमार होने से रोकेगा और मास्क एवं अन्य प्रोटोकॉल दूसरों को संक्रमण से बचाने में मदद करेंगे। इसलिए टीका लगवाना और कोविड -19 प्रोटोकॉल बनाए रखना अभी भी जरूरी है।
वैक्सीन जो आयी है ,क्या वो सुरक्षित है?
हां, पब्लिक के लिए लॉन्च करने से पहले सभी वैक्सीन की वैज्ञानिकों ने कई राउंड टेस्टिंग की है। लॉन्च के बाद भी, वैक्सीन लगातार और गहन सुरक्षा निगरानी से गुजरती है। हमारे प्रधानमंत्री और देश के अन्य वरिष्ठ नेताओं सहित भारत में अब तक 30 करोड़ से अधिक लोग कोरोना वायरस की वैक्सीन लगवा चुके हैं, जिनमें से बहुत ही कम में साइड इफेक्ट देखने को मिला है। दुनिया भर में भी करोड़ों लोगों ने वैक्सीन लगवाई है। कई देशों में कोरोना इंफेक्शन रेट वास्तव में कम हो गई है और प्रतिबंध हटा दिए गए हैं क्योंकि उनकी आबादी के एक बड़े प्रतिशत को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। वैक्सीन ही यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि कोरोना वायरस महामारी को कंट्रोल किया जा सकता है।
दूसरे देशों में एक डोज़ वाली वैक्सीन मिल रही है, तो सरकार यहाँ क्यों नहीं लायी है सिंगल डोज़ वाली वैक्सीन?
भारत में टीकाकरण कार्यक्रम दो टीकों, कोविशील्ड और कोवैक्सिन से शुरू हुआ है, जो डबल डोज वाले टीकाकरण हैं। इन दोनों वैक्सीन का उत्पादन अपने देश के भीतर ही हो रहा है इसलिए इसे अपने देश में खरीदना, सप्लाई करना और लगाना तीनो काम आसानी से हो रहा है।
मॉडर्न, स्पुतनिक लाइट और जॉनसन एंड जॉनसन जैसे सिंगल डोज के टीके भारत में नहीं बनते हैं और इसलिए उनकी उपलब्धता आयात पर निर्भर है। भारत में भी सिंगल डोज वैक्सीन लाने के लिए सरकार इन कंपनियों के साथ पहले से ही बातचीत कर रही है। लेकिन चूंकि वैक्सीन की वैश्विक मांग बहुत अधिक है, इसलिए इन वैक्सीन के भारत आने में कुछ समय लग सकता है। वर्तमान में, भारत में 2022 तक सिंगल डोज वैक्सीन उपलब्ध होने की संभावना है।
जिसको हॉस्पिटल ले जाते है और वैक्सीन लगाते है तो उनकी मौत क्यों हो रही है?
ऐसी बात नहीं है। सबसे पहले बात करते हैं कोविड 19 इंफेक्शन की। कोविड-19 इंफेक्शन का अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। अधिकांश (80 प्रतिशत से अधिक आबादी) के लिए यह एक बहुत ही हल्का इंफेक्शन है और केवल 10-20 प्रतिशत लोगों को ही हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत होती है। इसमें से करीब 3-5 लोगों को इंटेंसिव केयर की जरूरत है। आमतौर पर अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे हाई ब्लड प्रेशर या अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिए कोविड 19 के लक्षण और बीमारी गंभीर होती है। ऐसे मामलों में, कोरोना वायरस इंफेक्शन बहुत गंभीर हो जाता है और हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत होती है।
दूसरे शब्दों में, केवल गंभीर मामलों में ही हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत होती है। इसके अलावा, आमतौर पर, इंफेक्शन के पहले कुछ दिनों में ( केवल घरेलू इलाज की कोशिश करते हुए) डॉक्टर से परामर्श किए बिना, मरीज बहुत बाद के स्टेज में हॉस्पिटल पहुंचते हैं। इससे उनके हॉस्पिटल पहुंचने पर स्थिति और गंभीर हो जाती है।
इसलिए हॉस्पिटल में भर्ती होने के कारण मौत नहीं होती है बल्कि पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में देरी के कारण ऐसा होता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि जिस किसी में भी कोरोना वायरस के लक्षण दिखें उसका जल्द से जल्द टेस्ट किया जाए ताकि समय रहते सही इलाज शुरू हो सके।
अब बात करते हैं वैक्सीन की। किसी भी अन्य वैक्सीन (जैसे पोलियो, टेटनस आदि) की तरह ही कोविड 19 वैक्सीन के भी कुछ साइड इफेक्ट होते हैं जैसे बुखार, शरीर में दर्द, जो कुछ दिनों के बाद अपने आप दूर हो जाते हैं। बचपन में वैक्सीन लगवाने पर बच्चों को भी ये साइड इफेक्ट होते हैं। लाखों मामलों में से केवल एक को गंभीर साइड इफेक्ट होता है जिसके कारण गंभीर बीमारी या मृत्यु होती है। भारत में, 60 मिलियन से अधिक डोज के बाद पांच से कम गंभीर बीमारी के मामले (वैक्सीन के कारण) दर्ज किए गए हैं। इसलिए वैक्सीन सुरक्षित है और इससे 99 प्रतिशत से अधिक लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती है और उनकी मृत्यु नहीं होती है।
कोविड-19 का वैक्सीन हमारी सुरक्षा के लिए है और यह कोविड-19 के लक्षणों को कम करती है। हालांकि वैक्सीन से इम्यूनिटी के मजबूत होने में कुछ समय लगता है और उसके बाद ही हम इंफेक्शन से लड़ने में सक्षम हो पाते हैं।
क्या वैक्सीन लेने से तबियत ख़राब हो जाती हैं और फिर मृत्यु हो जाती है?
जब किसी व्यक्ति को टीका लगाया जाता है, जैसे: डीपीटी या पोलियो, तो एक दिन तक कुछ बुखार, शरीर में दर्द, सुस्ती हो सकती है। कोविड -19 वैक्सीन के मामले में भी यही सच है। हममें से कुछ लोगों को एक या दो दिन तक बुखार, शरीर में दर्द हो सकता है। कुछ लोगों को इसका साइड इफेक्ट बिल्कुल भी नहीं दिखता है। हर व्यक्ति का शरीर अलग तरह से रिएक्ट करता है।
बुखार या बीमार होना इस बात का संकेत है कि हमारा शरीर वैक्सीन के प्रति पॉजिटिव रिएक्शन दे रहा है और भविष्य में संक्रमित होने पर हम इस बीमारी से लड़ने के लिए मजबूत हो रहे हैं। वैक्सीन हमें बीमारी से बचाने के लिए हैं, हमें बीमार करने के लिए नहीं। लाखों मामलों में से केवल एक को ही गंभीर साइड इफेक्ट होता है जिससे गंभीर बीमारी या मृत्यु हो सकती है। भारत में, 60 मिलियन से अधिक डोज के बाद पांच से कम गंभीर बीमारी के मामले (वैक्सीन के कारण) दर्ज किए गए हैं। इसलिए वैक्सीन सुरक्षित है और 99 प्रतिशत से अधिक लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती है और उनका जीवन भी बच जाता है।
जब कोरोना से आदमी मर जाता है तो उससे किसी को क्यों नहीं मिलने दिया जाता?
कोरोना वायरस इंफेक्शन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सांस में मौजूद ड्रॉपलेट के जरिए फैलता है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बात करने, छींकने, खांसने या उन सतहों को छूने के दौरान फैल सकता है जहां ये ड्रॉपलेट चिपकी होती हैं। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति की लार, कफ या खून में भी मौजूद होता है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी, वायरस उसके शरीर में मौजूद होता है और निकट संपर्क होने पर दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। यही कारण है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु कोरोना वायरस इंफेक्शन के कारण हुई है तो शव के पास जाने पर प्रतिबंध है।
वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार यहां तक कि अंतिम संस्कार करने वालों को भी विशेष सुरक्षात्मक कपड़े पहनकर अपनी सुरक्षा करनी होती है। रिश्तेदारों को पर्याप्त सुरक्षा के साथ मृत व्यक्ति देखने के लिए अनुमति दी जाती है लेकिन छूने / गले लगाने / चूमने की अनुमति नहीं है। आमतौर पर जब ऐसे सुरक्षात्मक कपड़े उपलब्ध नहीं होते हैं, तो हॉस्पिटल विजिटर्स को शव को देखने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। साथ ही, इंफेक्शन के आगे फैलने से रोकने के लिए तुरंत दाह संस्कार को प्राथमिकता दी जाती है।
गांव में अफवाह है की एक वैक्सीन सही है और दूसरी वैक्सीन गड़बड़ है?
यह सच नहीं है। दोनों वैक्सीन कोविड-19 इंफेक्शन को रोकने के साथ-साथ किसी व्यक्ति को गंभीर बीमारी और मौत से बचाने में मदद करती हैं।
वैक्सीन लेने से उसका असर कितना दिन रहता है?
इस संबंध में रिसर्च चल रहा है। वर्तमान कोविड-19 वैक्सीन से कम से कम एक वर्ष तक सुरक्षा रहती है, लेकिन यह हमारे बचपन में लगे खसरा आदि टीकों की तरह आजीवन सुरक्षा प्रदान नहीं करती है।
जब पहली बार लॉकडाउन हुआ था, हमारे देश के डॉक्टर्स और नर्सेस हमारी मदद कर रहे थे, लेकिन इस बार सब लापरवाही क्यों कर रहे हैं?
ऐसी बात नहीं है। अप्रैल-मई के दौरान जब वायरस की दूसरी लहर ने हम पर हमला किया, तब हमारे पास ऑक्सीजन सिलेंडर, इंजेक्शन, हॉस्पिटल के बेड और दवाओं जैसे संसाधनों की कमी थी क्योंकि कोविड -19 से गंभीर रूप से पीड़ित लोगों की संख्या अधिक थी और हमारा हेल्थ सिस्टम इसे नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं था। इसलिए डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मियों पर दबाव बहुत अधिक था।
उस दबाव में भी उन्होंने मरीजों की मदद के लिए लगातार काम किया। डॉक्टरों के कई दिनों तक घर नहीं जाने और बहुत लंबी शिफ्ट में काम करने की खबरें थीं क्योंकि हेल्थ सिस्टम पर ज़रूरत से ज्यादा दबाव था। जैसे-जैसे मामलों की संख्या घटती गई, हेल्थ सिस्टम भी बेहतर तरीके से निपटने लगा। हम में से अधिकांश लोग बीमारी से केवल कुछ हफ़्ते तक जूझते हैं, जबकि डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मी डेढ़ साल से इससे निपट रहे हैं। वे भी इंसान हैं, हमारे जैसे उनका भी परिवार है, यह नहीं भूलना चाहिए।
कोरोना से मरने वालों का सही आंकड़ा क्या है?
सटीक संख्या बताना मुश्किल है क्योंकि संख्याएं हर दिन बदल रही हैं। 29 जून 2021 तक भारत में महामारी से होने वाली मौतों की आधिकारिक संख्या 397637 थी, हालांकि कम रिपोर्टिंग के कारण वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है।
दूसरे देशों में ज़्यादा प्रभावी वैक्सीन दी जा रही है तो हमारे देश में क्यों नहीं?
भारत में बनायी गई कोविड-19 वैक्सीन उतनी ही प्रभावी है जितना कि अन्य देशों द्वारा विकसित की गई वैक्सीन। इसकी सुरक्षा और प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए वैक्सीन का कई चरणों में ट्रायल किया जाता है। साथ ही, देश में वर्तमान में उपलब्ध वैक्सीन का निर्माण स्थानीय स्तर पर सुनिश्चित किया जाता है कि हमारे पास स्थानीय आपूर्ति हो। हालांकि सरकार विदेशी कंपनियों से वैक्सीन की वरायटी बढ़ाने के लिए बात कर रही है, लेकिन भारत में उपलब्ध केवल विदेशी टीकों पर निर्भरता इंतजार और प्रक्रिया को बहुत लंबा कर सकती है। इसके अलावा, भारत में बनी कोविशील्ड वैक्सीन और यूके में बनी एस्ट्राजेनेका वैक्सीन दोनों बिल्कुल एक समान हैं।
अगर बीमारी नहीं है तो वैक्सीन की ज़रूरत क्या है?
वैक्सीन दवा से अलग है। दवा बीमारी का इलाज करती है, लेकिन वैक्सीन का उद्देश्य बीमारी को रोकना है। यह बीमारी से बचने के लिए लगायी जाती है। इसलिए वैक्सीन तब भी ली जाती है जब हमें कोई बीमारी न हो। अगर हम कोरोना वायरस की वैक्सीन लेते हैं, तो यह सुनिश्चित करेगा कि हम भविष्य में संक्रमण की चपेट में न आएं या अगर हम आते भी हैं, तो प्रभाव बहुत गंभीर नहीं होगा। यदि किसी क्षेत्र / मोहल्ले में सभी को वैक्सीन लग जाती है, तो कोई नया इंफेक्शन नहीं होगा और तब महामारी कंट्रोल में आ सकती है।
वैक्सीन लेने के बाद बुखार क्यों होता है या तबियत क्यों ख़राब होती है?
बुखार आना या तबियत खराब होना इस बात का लक्षण है कि आपका शरीर वैक्सीन के प्रति पॉजिटिव रिएक्शन दे रहा है और रोग से लड़ने की क्षमता (एंटीबॉडी बनाने) विकसित कर रहा है। बुखार या शरीर में दर्द वैक्सीन का एक बहुत ही सामान्य साइड इफेक्ट है और कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। यह उन साइड इफेक्ट के समान है जो बच्चों को बचपन में खसरा या काली खांसी के वैक्सीन लगाने पर देखने को मिलते हैं।
कुछ देशों में कोरोना को बिलकुल कण्ट्रोल कर लिया गया है, तो इंडिया में कण्ट्रोल नहीं होने का क्या कारण है?
136.64 करोड़ की आबादी के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। इस विशाल जनसंख्या घनत्व के साथ, जहां कई क्षेत्रों में लोग एक-दूसरे के बहुत करीब रहते हैं, तो कोरोनावायरस जैसी संक्रामक बीमारियों का फैलना आसान है। इसलिए इस महामारी पर काबू पाने में समय लग रहा है। हालांकि, टीकाकरण कोरोनावायरस से लड़ने का एक पॉजिटिव तरीका है। जितने अधिक लोगों का टीकाकरण होगा, कोरोनावायरस का प्रसार उतना ही कम होगा।
पीरियड में रहे, तो कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगा वैक्सीन लेने से?
महिलाओं के लिए उनके पीरियड्स के दौरान वैक्सीन लगवाना बिल्कुल सुरक्षित है। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं पाया गया है।
क्या कोरोना की तीसरी लहर आने वाली है? और उसका क्या कारण है?
कोई भी यह पुष्टि नहीं कर सकता है कि कोरोना की तीसरी लहर आएगी या नहीं और अगर आएगी तो कब आएगी। तीसरी लहर आएगी या नहीं यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि हम कितनी सख्ती से कोविड-19 नियमों का पालन करते हैं, जैसे कि हमेशा सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना, सार्वजनिक समारोहों में शामिल न होना, सार्वजनिक रूप से दूरी बनाए रखना और नियमित अपने हाथों को धोना और सैनिटाइज करना। इससे नए इंफेक्शन की संख्या को नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी। जितनी जल्दी हो सके वैक्सीन लगवाना भी जरूरी है ताकि अधिक से अधिक लोगों का बीमारी से बचाव हो और लोग बीमार न पड़ें या कम से कम हॉस्पिटल में भर्ती होने की आवश्यकता न पड़े। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हम कोविड -19 से जुड़े नियमों का कितनी अच्छी तरह पालन करते हैं।
कोरोना से इंसान की मृत्यु हॉस्पिटल में ही क्यों होती है, घर में या फिर कहीं बाहर क्यों नहीं होती?
कोविड-19 इंफेक्शन का अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। अधिकांश (80 प्रतिशत आबादी) के लिए यह एक बहुत ही हल्का इंफेक्शन है और लगभग 10-20 लोगों को ही हॉस्पिटल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। इसमें से करीब 3-5 लोगों को गहन देखभाल की जरूरत है। अक्सर अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे हाई ब्लड या अस्थमा वाले लोगों के लिए कोविड 19 के लक्षण और बीमारी गंभीर होती है। ऐसे मामलों में, कोरोना वायरस संक्रमण बहुत गंभीर हो जाता है और हॉस्पिटल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है।
दूसरे शब्दों में, केवल गंभीर मामलों में ही हॉस्पिटल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, आमतौर पर इन्फेक्शन के पहले कुछ दिनों में ( केवल घरेलू इलाज की कोशिश करते हुए) डॉक्टर से परामर्श किए बिना, मरीज बहुत बाद के चरण में अस्पताल पहुंचते हैं। इससे उनके हॉस्पिटल पहुंचने पर स्थिति और गंभीर हो जाती है।
आपके लिए यह समझना ज़रूरी है कि हॉस्पिटल में भर्ती होने के कारण मौतें नहीं हो रही है बल्कि पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं या इलाज में देरी के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए जिस किसी में भी कोरोना वायरस के लक्षण दिखें उसका जल्द से जल्द टेस्ट किया जाए ताकि समय रहते सही इलाज शुरू हो सके।
वैक्सीन लगवाने के लिए सारे लोग तैयार कैसे होंगे?
भारत का टीकाकरण कार्यक्रम बहुत सही है और सभी प्रमुख बीमारियों के लिए बच्चों को टीका लगवाने का एक बहुत ही ठोस ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। 2011 में, भारत ने पांच वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों का पोलियो टीकाकरण करके देश से पोलियो रोग को समाप्त कर दिया। इसलिए, हमारे पास प्रशिक्षित लोगों की टीमें हैं जो लोगों को टीकाकरण के लिए राजी कर सके। सरकारें, एनजीओ, मशहूर लोग, धर्मगुरु सभी लोगों को टीका लगवाने के लिए तैयार कर रहे हैं।
इसलिए धीरे-धीरे हम देश में बड़ी संख्या में लोगों का टीकाकरण करा सकेंगे। इसके अलावा, हम सभी को टीकाकरण के बारे में मिथकों और अफवाहों को कम करने, अपने आसपास के लोगों के साथ वैज्ञानिक और विश्वसनीय जानकारी शेयर करने और उदाहरण के लिए लोगों को प्रेरित करने और उनका नेतृत्व करने में भूमिका निभानी होगी।
कोरोना बीमारी के लिए क्या कोई दवाई इस्तेमाल कर सकते हैं, खासकर शुरुवात में?
वर्तमान में कोरोना वायरस इंफेक्शन का कोई इलाज नहीं है। रोग के लक्षणों को कम करने के लिए ही दवाएं उपलब्ध हैं। ज्यादातर मामलों में, ज्यादातर लोग क्रोसिन को छोड़कर किसी विशेष दवा की जरूरत के बिना घर पर ठीक हो जाते हैं। लेकिन डॉक्टर से सलाह लेना सबसे जरूरी है। डॉक्टर आपके लक्षणों को परखकर यह तय करेंगे कि आपको किस दवा की आवश्यकता कितनी मात्रा में और कितने समय तक के लिए है। यह दोहराना बहुत जरूरी है कि डॉक्टर की सलाह के बिना दवाएं नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इससे कई जटिलताएं हो सकती हैं जिन्हें बाद में कंट्रोल करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए फिर चाहे वो कोरोना वायरस हो या कोई और इंफेक्शन, प्लीज बिना डॉक्टर की सलाह के दवा न लें।
कोरोना की तीसरी लहर में क्या क्या इंतज़ाम किया गया है?
हालांकि तीसरी लहर के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है। सरकार हॉस्पिटल जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण और बीमारी से लड़ने के लिए आवश्यक दवाओं, ऑक्सीजन सिलेंडर और इंजेक्शन आदि के पर्याप्त स्टॉक जुटाने पर फोकस करके स्थिति के लिए कमर कस रही है।
सरकार सामान्य रूप से व्यक्तियों और विशेष रूप से बच्चों के संक्रमित होने की संभावना का अनुमान लगाने के लिए काम कर रही है। सभी को टीका लगवाने के लिए भी वह हर संभव कोशिश कर रही है। जितने अधिक लोगों को टीका लगाया जाएगा, भविष्य में वायरस के किसी भी खतरे का प्रभाव उतना ही कम होगा।
कोविड -19 की टेस्टिंग क्षमता भी लगभग 40,000 प्रति दिन से बढ़ाकर 18 जून तक एक लाख कर दी गई है। सरकार अब मोबाइल लैब स्थापित करने और घर पर सेल्फ टेस्टिंग की अनुमति देने के अलावा नई आरटी-पीसीआर लैब स्थापित करने की व्यवस्था कर रही है। इससे टेस्टिंग क्षमता बढ़ेगी और सरकार को कम समय में अधिक पॉजिटिव मामलों का टेस्ट करने और ट्रैक करने में मदद मिलेगी। सरकार ने देश भर के कई अस्पतालों में स्थायी ऑक्सीजन प्लांट भी स्थापित किए हैं और निजी ऑक्सीजन उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न नीतियां भी पेश की हैं। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई का एक बड़ा हिस्सा जनता पर भी निर्भर करता है जिन्हें जल्द से जल्द टीका लगाने की कोशिश करने और टीकाकरण के बाद भी कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन करने की आवश्यकता है।
वैक्सीन ना लेने वालों को सरकारी सुविधा नहीं मिलेगी? क्या ये सच है या अफवाह?
नहीं, यह अफवाह है। वैक्सीन वर्तमान में हमारे देश में सभी के लिए अनिवार्य नहीं है। हालांकि, आपको वैक्सीन लगवाना चाहिए क्योंकि यह कोरोनावायरस महामारी को कंट्रोल करने और हमारी अर्थव्यवस्था, शिक्षा और सामान्य जीवन को पटरी पर लाने में मदद करेगा।
वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन हो गया है पर फिर कही पढ़ें की वैज्ञानिकों ने बोला हैं की वैक्सीन नहीं लेना हैं। यह सब सुनने के बाद कंफ्यूज हो गये हैं की ले या नहीं ?
नहीं, ये अफवाहें हैं। कृपया व्हाट्सएप फॉरवर्ड या फेक न्यूज पर विश्वास न करें। सरकारी वेबसाइट जैसे https://www.cowin.gov.in या जाने-माने अखबार पढ़ें। सभी जानकारी हिंदी और अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध है। आपको वैक्सीन लगवाना चाहिए क्योंकि यह कोरोनावायरस महामारी को कंट्रोल करने और हमारी अर्थव्यवस्था, शिक्षा और सामान्य जीवन को पटरी पर लाने में मदद करेगा। यदि आपके पास वैक्सीन का अपॉइंटमेंट हैं, तो उसे मिस मत करिये। जाईये और वैक्सीन लगवाइये।
अप्रैल में वैक्सीन ली थी, पर तब वो 45 साल के लोगों के लिए थी। हमने तब ले लिए तो उससे कोई नुक्सान तो नहीं हैं?
कृपया परेशान न हो। वैक्सीन उम्र के हिसाब से अलग नहीं होती है। यह वही वैक्सीन है, जो पहले 45 साल या इससे अधिक उम्र के लोगों को पहले कोविड-19 से बचाने के लिए जारी की गई थी क्यूंकि कोरोना का खतरा 45 वर्ष के उम्र के लोगों के लिए ज़्यादा होता हैं। उस वक़्त सभी डॉक्टर और सुरक्षा कर्मचारियों को भी वैक्सीन दी गयी थी, जिनमे से बहुत से 45 की उम्र से कम थे, पर लोगों के साथ मिलने जुलने के कारण उनका खतरा ज़्यादा था।
जिनको कोरोना हो चुका हो, अगर उन्होंने गलती से वैक्सीन ले ली, तो क्या कुछ नुक्सान होगा?
अगर आपको कोविड -19 हुआ था और अब आप ठीक हो गए हैं, तो आपके शरीर में प्राकृतिक रूप से ही इम्यूनिटी ज़रूर बन चुकी होगी, लेकिन यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि वह इम्यूनिटी कितनी मजबूत है या कितने लंबे समय तक मजबूत रहने वाली है। वैक्सीन रोग के खिलाफ और मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (इम्यून रिस्पांस) विकसित करने में मदद करती है। यानि वो सुनिश्चित करेगा कि आप भविष्य में संक्रमण की चपेट में फिर से न आएं या अगर आते भी हैं, तो प्रभाव बहुत गंभीर नहीं होगा। इसलिए कोरोना होने के बाद भी वैक्सीन लगवाना जरूरी है। आप ठीक होने के 4- के बाद वैक्सीन लगवा सकते हैं।
18 साल से नीचे वैक्सीन लेनी चाहिए या नहीं?
अभी वैज्ञानिक बच्चों/18 साल से कम उम्र के लोगों पर टीके की सुरक्षा और प्रभाव का आकलन करने के लिए क्लिनिकल ट्रायल कर रहे हैं। शोधकर्ता अभी भी 18 साल से कम उम्र के लिए वैक्सीन की सही खुराक खोजने पर काम कर रहे हैं। इसलिए अभी 18 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं हैं।
कोई सवाल? नीचे टिप्पणी करें या हमारे चर्चा मंच पर विशेषज्ञों से पूछें। हमारा फेसबुक पेज चेक करना ना भूलें। हम Instagram, YouTube और Twitter पे भी हैं!