22 साल की उम्र में ही मेरी अरेंज्ड मैरिज मध्यप्रदेश-भोपाल में हो गई थी। केवल 12वीं कक्षा तक पढाई करने के बाद भी मुझे अमर जैसा इतना पढ़ा-लिखा और इतना प्यार करने वाला जीवन साथी मिला। शादी के तीन सालों बाद हमारे पास दो प्यारे-प्यारे बच्चे थे।
सब कुछ जैसे एक सपने की तरह था लेकिन शायद किस्मत को यह मंज़ूर नहीं थाI शादी के साथ साल बाद अमर को एक रात बुखार हुआ और उसके बाद उसकी हालत बिगड़ती ही चली गयीI हमने उन्हें अस्पताल में भर्ती, लेकिन दो दिनों के भीतर ही उनकी मृत्यु हो गई थी। मेरा हँसते खेलते जीवन का एकदम से ही अंत हो गयाI सब कुछ बिखर सा गया थाI मुझे समकज ही नहीं आ रहा था कि क्या समेटूँ, और कहाँ से समेटना शुरू करुंI मैं बहुत अकेला महसूस करने लगी थीI अमर सिर्फ़ मेरा पति ही नहीं था, वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त भी थाI मेरे पास अब सिर्फ़ एक ही रास्ता था - खुद को भूल जाने का और अपने बच्चो के भविष्य के बारे में सोचने काI
हालातों से समझौता
घर वालों की मदद से कुछ वक़्त घर चला, फ़िर मैंने अपने एक चाचा जी की मदद से काम सीखा और उन्हीं की कंप्यूटर की दूकान पर काउंटर संभालना शुरू कर दिया। वहां सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक लोग घन्टे के हिसाब से कंप्यूटर इस्तेमाल करने आते थे जिनमें से कुछ लोग नौकरी के लिये अप्लाई करने, कुछ सरकारी तस्तावेज़ों का काम करने तो कुछ ट्रेन टिकट बुक करने आते थे। मुझे काम शुरू करने के कुछ दिनों बाद यह बात भी समझ आ गयी थी कि कुछ लोग घंटो पोर्न और चैट का इस्तेमाल करने भी आते हैं।
खैर सबको आज़ादी है कि वे अपने लिये सही-ग़लत चीज़ों का चुनाव करें। क्यूंकि चाचा जी की इलाक़े में बहुत इज्ज़त थी तो मुझे किसी तरह की कोई असुरक्षा नहीं थी। दिन और साल यूंही गुज़रते गये। सब कुछ बस गुज़र रहा था सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ने के बाद मैं काम पर आती और काम से सीधा घर और घर पहुँचते ही किचन में।
घर वालों ने शादी की भी बात रखी लेकिन मुझे लहि लगता था कि मैं अमर का घर और उसकी यादों को भूल सकती हूँI कुछ लोग मेरी हिम्मत की दाद देते थे तो कुछ बेचारी भी कहते थेI लेकिन इन सभी अच्छी भूमिकाओं को निभाते हुये मैंने ख़ुद को जैसे कहीं खो दिया था। शायद यही वजह थी कि चिड़चिड़ापन और उदासी मेरे सबसे अच्छे दोस्त बन गए थे और हमेशा मेरे साथ रहते थेI
शारीरिक ज़रूरतों का एहसास
एक सुबह शीशे में अपने आपको देखते हुए बालों की पहली सफ़ेदी देख एक धक्का लगा। फ़िर दुपट्टे से सिर ढक काम पर निकाल गई। आज चाचा जी दुकान नहीं आये थे। शाम को दुकान बंद करने के लिये मैंने सभी कंप्यूटर बंद करना शुरू किये, मेरी नज़र एक कंप्यूटर में हिंदी सेक्स कहानियां के खुले पेज पर गई। मैंने घबरा कर जल्दी से कंप्यूटर बंद कर दिया।
लेकिन पूरे रास्ते में इसके बारे में ही सोचती रही और अगली सुबह मैं दुकान, 15 मिनट पहले ही पहुँच गईI मैंने वो पेज दोबारा खोला और हिम्मत कर पढ़ना शुरू किया। इसके बाद तो जैसे सिलसिला ही चल पड़ाI मैं रोज़ सुबह आधे घंटे पहले ही काम पर जाने लगी और किसी के आने से पहले नई-नई कहानियाँ पढ़ने लगी। कई बार ख्याल आता था कि अगर किसी को पता चल गया तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगेI मैं एक विधवा और अच्छी औरत थी जिसे समाज की नज़र में शारीरिक इच्छा रखने का कोई अधिकार नहीं था।
नयी सुबह
लेकिन मैं रुक नहीं पायी और किसी को शक हो इससे पहले इन्टरनेट वाला एक मोबाइल ले आयीI अब तो कोई दर भी नहीं था और बच्चों के सोने के बाद मैं चैन से मोबाइल पर यह कहानियाँ पढने लगी। लेकिन इससे भी ज्यादा कुछ होने वाला था। एक कहानी में मुझे डिलडो के बारे में पता चलाI मैंने उस बारे में इंटरनेट पर और जानकारी ढूंढी तो अपने लिए उसे आर्डर करने से रोक नहीं पाईI सवाल यह था कि कैसे बिना किसी को पता चले आर्डर करुंI तो बच्चो के कुछ कपडे ऑर्डर करने के बहाने मैंने एक ऑनलाइन वेबसाइट से यह आर्डर कर लिया। जिस दिन यह डिलीवर होने वाला था उस दिन मैंने बुखार का बहना बना कर छुट्टी ले ली और सारा दिन घर पर ही रहीI आखिरकार दरवाजे पर दस्तक हुई मैंने दुपट्टे से मुहं छुपाते हुये पेमेंट की और डब्बा लेकर जल्दी से दरवाज़ा बंद कर लिया।
डब्बा खोलते हुये मेरी सांसे तेज़ चल रही थी। इतनी बोरिंग, चिड़चिड़ी जिंदगी में जैसे उत्सुकता वापिस भर आयी थी। में अब भी वही थी दो बच्चों की अकेली माँ लेकिन मैं एक औरत भी थी जिसे अमर ने बेहिसाब प्यार दिया थाI एक औरत जिसकी खुद की भी कुछ इच्छाए हैं जिन्हे वो अब बिना कुछ गलत किये और शर्मिंदा महसूस किये पूरा कर सकती हैI मैं अब पहले की तरह खुश और चुलबुली हो गयी हूँI मेरा परिवार को यह तो नहीं समझ आता कि मेरे अंदर यह बदलाव कब और कैसे आया है लेकिन मुझे पता है कि वो मुझे ऐसे देखकर बहुत खुश हैंI
तस्वीर में एक मॉडल का इस्तेमाल किया गया हैI लेखक की गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गए हैंI
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