21 वर्षीय केविन इतिहास का विद्यार्थी है और मैंगलोर में रहता हैI
सच कहने का अनुभव बड़ा ही स्वाधीन करने वाला होता हैI इसने मुझे सशक्त और निडर बनाया हैI इसने मुझे मेरी नयी पहचान से अवगत करवाया, वो पहचान जो मैंने खुद चुनी थीI
मैं 18 साल का था जब मैंने यह फैसला किया कि मुझे अपनी लैंगिकता और आत्मसम्मान की रक्षा खुद करनी पड़ेगीI मैंने अपनी किशोरावस्था के ज़्यादातर साल लोगों से और अपने आप से झूठ बोलते हुए बिताये थेI मेरे दोस्त और परिवार के लोग मुझे अलग अलग नामो से बुलाते थे, वो नाम जो अधिकतर अपमानजनक होते थे जैसे शर्मीला, खुसरा, शिखंडी वगैरह वगैरहI मैं बहुत बुरा और असहाय महसूस करता था, मेरे आंसू पोंछने वाला भी कोई नहीं होता थाI कई बार तो रोते रोते ही मेरी आँख लग जाती थीI
बचपन
12 साल की उम्र में मेरे माता-पिता अलग हो गए थे, देखा जाये तो हमारा पालन पोषण हमारी माँ ने ही किया हैI मेरी माँ ने कभी भी मेरे और मेरी बहन के बीच में भेदभाव नहीं किया लेकिन मुझे याद है कि मेरे पिता मुझसे नाराज़ रहते थे क्यूंकि मैं हमेशा खेलकूद में पिछड़ा रहता थाI
चूंकि काम का सारा बोझ माँ के ही सर पर था तो उन्हें कई बार लम्बे समय के लिए बाहर रहना पड़ता थाI मैं सारा समय अपनी बहन के साथ बिताता थाI हम दोनों साथ में खेलते और किताबें पड़ते थेI मेरे पसंदीदा खेल होते थे गुड़िया का घर बनाना और अपने किचन सेट से काल्पनिक मेहमानो के लिए खाना बनानाI
साथ देने वाली बहन
मैं स्कूल के बाकी लड़को से अलग थाI उन सबको अमरीकी कुश्ती पसंद थी और वो उसकी देखा देखी क्लास में तरह तरह के करतब दिखाते रहते थेI मुझे यह सब बेकार लगता था और शायद यही वजह थी कि वो मुझसे कन्नी काटते थेI ना तो वो मेरे साथ खाना खाते और ना ही उनमें से कोई भी मेरे साथ बस में बैठता थाI
मेरे बारे में सब कुछ जानते हुए भी मेरी बहन ने कभी भी मेरे साथ बुरा व्यवहार नही कियाI वो हमेशा से ही बहुत सावधान रही और मुझे एक समझदार और विचारशील व्यक्ति बनाने में उसका सबसे बड़ा हाथ हैI जब मैंने उसे बताया कि मैं समलैंगिक हूँ तो उसके जवाब ने मुझे स्तब्ध कर दिया, "मुझे तुमसे पहले यह पता था", उसने कहा थाI उसने मुझे कसकर गले लगाया और कहा कि इससे हमारे बीच में कुछ भी नही बदलेगाI इस वजह से मुझे बहुत बल मिला और यह शक्ति भी कि मैं अपने आप को प्यार कर सकूँI
डराना-घमकाना
मैं जितना ज़्यादा लोगों से मिलता या बातचीत करता मुझे उतनी ही अप्रिय परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता थाI सड़क पर चलते हुए कई बार अजनबी मेरी चाल को लेकर मेरा मज़ाक उड़ाकर चले जाते थेI मेरा घर से बाहर निकलने का भी मन नही करता था और मैं कई दिनों तक अपने आपको कमरे में बंद कर लेता थाI मैं कॉलेज नही जाता था और शर्म और झिझक के चलते किसी से बात भी नही करता थाI धीरे धीरे इन सब की वजह से मेरी शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ती चली गयीI
एक बार कॉलेज से घर आते हुए दूसरी कक्षा के कुछ लड़को ने मेरा पीछा करना शुरू कर दियाI वो ना सिर्फ़ मेरी नक़ल उतार रहे थे बल्कि मेरे ऊपर ज़ोर ज़ोर से हंस भी रहे थेI उनमे से कुछ ने तो पत्थरों से मेरे ऊपर हमला भी कर दियाI उस दिन मैंने बेहद अपमानित महसूस किया थाI ना तो मैं उनसे लड़ सकता था और ना ही ऐसे लज्जित होकर जी सकता थाI
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स्वीकृति का पाठ
उस घटना से मुझ पर बहुत ही गहरा असर पड़ा थाI मैंने सबको सबक सिखाने का फैसला कियाI इस सारी शर्मिंदगी और अपमान से पार पाने का एक ही तरीका था, कि मैं सबके सामने गर्व के साथ यह मान लूं कि मेरी असली पहचान क्या हैI
उस रात मेरी माँ बाहर वाले कमरे में सो रही थी और मुझे समझ नही आ रहा था कि मेरे साथ जो हुआ था उसका सामना कैसे करूI मुझे लगा कि मुझे अपनी सोच और विश्वास पर अडिग रहना चाहिए और इस घटना पर क्या प्रतिक्रिया होगी उसका फैसला बाकी दुनिया पर छोड़ देना चाहिएI
फेसबुक पोस्ट
मैंने अपनी माँ को सम्बोधित करते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा जिसमें उस पूरी घटना का वर्णन थाI मैंने यह भी बता दिया कि मैं पुरुषों की तरफ़ आकर्षित हूँ और इसलिए लोग मेरा मज़ाक उड़ाते है और यह भी, कि मुझे इस बात की कोई शर्मिंदगी नही हैI
वो जब सुबह उठी तो पोस्ट पड़ने के तुरंत बाद नीचे अपना कमेंट कर दिया जो पूरी दुनिया पढ़ सकती थीI "मेरे बेटे मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ I मुझे गर्व है जो भी तुम हो और इस बात पर भी जिस तरह से तुम बड़े हो रहे हो" मैंने अपने आपको ज़िंदगी में कभी भी इतना प्रेरित नही महसूस किया थाI मैंने बिस्तर से बाहर निकलने के लिए छलांग लगाई और भाग कर अपनी माँ को गले लगा लियाI उस दिन जब हम दोनों साथ में नाश्ता करने बैठे तो आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थेI