समान लिंगों वाले अभिभावकों के ऊपर हुआ यह विश्व का सबसे बड़ा और सबसे लंबा अध्ययन था। अमेरिकी सर्वेक्षण में जिन महिलाओं ने भाग लिया था उन्होंने इसके लिए लगभग 20 साल पहले नाम दर्ज करवाया थाI लेकिन उनमे से एक शुक्राणु दाता द्वारा गर्भवती हो गई थी।
जब उनके बच्चे बड़े हुए तो विभिन्न परीक्षणों और साक्षात्कारों की मदद से उन्हें परखा गयाI उसके बाद उनकी तुलना उन बच्चो से की गयी जिनके पास एक माँ और पिता दोनों थेI
अधिक नंबर
उनका विकास विषमलैंगिक माता-पिता द्वारा पाले-पोसे गए बच्चों के समान ही हुआ। सिवाय इसके कि दो-मां की संताने 17 साल की हुई तो ना सिर्फ़ उनके पास कम सामाजिक समस्याएं थी बल्कि एक 'पिता' वाले बच्चो की तुलना में वे कम विद्रोही भी थीं। इसके अलावा स्कूल में भी उनके नंबर हमेशा अच्छे आते थेI सच कहें तो वे बच्चे ज्यादातर चीजों में बेहतर थे।
कोई मारपीट नहीं
शोधकर्ताओं का मानना है कि लेस्बियन माताएं बच्चो की परवरिश इतने अच्छे ढंग से इसलिए कर पायीं क्यूंकि वे शुरू से ही इसके प्रति पूरी तरह समर्पित और कटिबद्ध थींI
विषमलैंगिक पिताओं की तुलना में, वे अपने बच्चो पर कम हावी होती थीं और कभी अपने बच्चो पर हाथ नहीं उठाती थींI शायद यही वजह थी कि उनके बच्चे किशोरावस्था पहुँचने तक भी अपना धैर्य बरकरार रखते थे और आधिकारिक सत्ता से उन्हें कोई ख़ास परेशानी भी नहीं होती थीI