forced sex
Shutterstock/Photo With Kiran/फोटो में मॉडल् हैं

'बच्चा सो गया हो तो आओ न'

पति की कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद आरती घबरा गई। बच्चे की देखभाल करने के साथ ही उसे अंकुश का भी पूरा ख्याल रखना था। लेकिन उस रात जो हुआ, आरती ने उसकी कल्पना भी नहीं की थी। अंततः आरती को भी अपना कोविड टेस्ट कराना पड़ा। रिपोर्ट देखकर वह परेशान हो उठी। आरती ने लव मैटर्स से अपनी कहानी शेयर की।

28 वर्षीय आरती हाउसवाइफ हैं और दिल्ली में रहती हैं।

वर्क फ्रॉम होम

कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे थे। इसके चलते अंकुश का ऑफिस बंद हो गया और वह वर्क फ्रॉम होम करने लगे। लेकिन घर से काम करते हुए वह कुछ ही दिन में बोर हो गए। संक्रमण से बचने के लिए लोग भले ही अपने घरों में रह रहे थे लेकिन वर्क फ्रॉम होम अंकुश को पसंद नहीं आ रहा था। मैंने कई बार बात करने की कोशिश की। तो उन्होंने बताया कि ‘ऑफिस में जाकर काम करने की बात ही अलग है, दोस्तों और सहकर्मियों से मिलना, चाय और गप्पेबाजी घर में रहकर कहां हो पाती है। इस तरह घर में कैद होकर रहना तो बहुत मुश्किल है।’

कॉलोनी में कई दुकानें थी। वहां जरूरत के सभी सामान मिल जाते थे। यहां तक कि फल और सब्जी वाले भी दिन में कई बार कॉलोनी में चक्कर लगा जाते थे। लेकिन अंकुश घर के आसपास की दुकानों से खरीदने की बजाय दूर की दुकान से सामान लाते थे। कोरोना को लेकर उनकी इस लापरवाही के बारे में मैंने उन्हें कई बार सतर्क किया लेकिन कोई न कोई बहाना करके वो अपनी मनमानी कर ही लेते थे। उनके अपने तर्क थे कि खुली हवा में सांस लेना भी तो ज़रूरी है... फिर मैंने टोकना ही बंद कर दिया।

छोटे से फ्लैट में आइसोलेशन

रात के एक बज रहे थे। मैं गहरी नींद में थी लेकिन अचानक तेज खांसी की आवाज से नींद खुल गई। देखा तो अंकुश खांस रहे थे और उन्हें तेज बुखार भी था। अगली सुबह मैंने ही जिद करके उन्हें टेस्ट कराने के लिए हॉस्पिटल भेजा। दो दिन बाद उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। हम दोनों काफी परेशान हो गए। घर के सभी काम करते हुए मुझे बच्चे और अंकुश की देखभाल भी करनी थी। रिपोर्ट आने के बाद ही अंकुश को मैंने कहा कि आप उसी कमरे में रहिये अकेले ..ताकि बच्चे को आपसे दूर रखा जा सके।

दिल्ली में हम दोनों किराए के एक घर में रहते थे। जिसमें एक कमरा, एक छोटा हॉल और किचन था। मैंने अपना और बच्चे का बिस्तर हॉल में लगा लिया और अंकुश अपने कमरे में आइसोलेट हो गए। चूंकि अंकुश की तबियत ठीक नहीं थी इसलिए उन्होंने वर्क फ्रॉम होम भी बंद कर दिया। अब उन्हें कोई सामान लेने के लिए घर से नहीं निकलना था। हालांकि दवाओं की मदद से तीसरे दिन से बुखार ठीक होने लगा लेकिन बंद कमरे में उनका चिड़चिड़ापन लगातार बढ़ता जा रहा था।

अंकुश का बिस्तर और कमरा जरूर अलग था लेकिन वो अक्सर हॉल में आकर थोड़ी दूर से बच्चे को पुचकारा करते। मास्क लगाने के लिए कई बार तो मुझे टोकना पड़ता था। कोरोना प्रोटोकॉल के नियम उन्हें पता तो थे, लेकिन लापरवाही अब भी थी। ना चाहते हुए भी वो मुझे टच कर लेते या न्यूज देखने के लिए हॉल में आ जाते। टोकने पर कहते...इतनी ही तो जगह है...एक कमरे में बंद होकर मर जाऊंगा मैं...घर में न टहलूं तो कहां जाऊं। बात भी सही थी। लेकिन उनकी इस लापरवाही से मुझे बहुत डर लगता था।

बच्चा सो गया हो तो आओ न

रात हो चुकी थी..अंकुश अपने कमरे में सो रहे थे और मैं हॉल में बच्चे को सुलाने के बाद मोबाइल में कुछ वीडियो देख रही थी। तभी अंकुश का मैसेज आया। ‘बच्चा सो गया हो, तो कमरे में आओ न...आज सेक्स करने का बहुत मन कर रहा है।’ मैसेज पढ़कर तो मुझे गुस्सा आया लेकिन फिर मैंने उन्हें प्यार से समझाया कि ‘आप पहले पूरी तरह ठीक हो जाइए, फिर सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा। हमारी लाइफ पहले की तरह हो जाएगी।’ अंकुश ने गुस्से में कोई जवाब नहीं दिया।

अंकुश पिछले दो दिनों से कई बार सेक्स के लिए कह चुके थे और मैं उन्हें लगातार याद दिला रही थी की वो कोरोना से संक्रमित हैं। लेकिन पांचवें दिन अंकुश ने मेरी एक न सुनी और आधी रात को वो अपने कमरे से निकलकर हॉल में आ गए। जब मैंने करवट बदला तो देखा वो सामने खड़े हैं। मैं डर गई...पहले मुझे लगा उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत है लेकिन उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा कि चलो आओ कमरे में इसे यहीं सोने दो। लाख मना करने के बावजूद उस रात अंकुश ने मेरे साथ सेक्स किया और फिर वो सो गए, मैं वापस हॉल में बच्चे के पास आ गई। अब मेरा डर और बढ़ गया था।

अगले दिन मुझे अपने शरीर का तापमान कुछ बढ़ा हुआ महसूस हुआ। गले में हल्की खराश थी। बिस्तर से उठने का मन नहीं कर रहा था और हल्की कमजोरी महसूस हो रही था। उसके अगले दिन ये लक्षण और बढ़ गए और आखिरकार मुझे टेस्ट कराना ही पड़ा। जिस बात का डर था वही हुआ मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। अब न तो मैं घर के काम कर पा रही थी और न ही बच्चे को संभाल पा रही थी। इस कोरोना काल में कोई मदद करने के लिए भी तैयार नहीं था।

अब वो इज्जत नहीं रही 

अंकुश को अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा था, क्योंकि मेरी तबियत उनसे भी ज्यादा खराब होने लगी। अब उन्हें ही खुद के साथ मुझे और बच्चे को संभालना था। ऐसे दिन भी देखे जब हम दिन में सिर्फ एक बार भोजन करते थे और अपने बेटे की देखभाल करने के लिए मुश्किल से ही हमारे पास ताकत होती थी।  

हमारी मुश्किलें कई गुना बढ़ गयीं, अंकुश डॉक्टर से परामर्श लेकर कुछ दवाएं लाए। कोरोना के संक्रमण से उबरने में मुझे बीस दिन लग गए। इस बीच अंकुश के भी लक्षण काफी हद तक कम हो गए। हम दोनों कोरोना को मात देकर ठीक तो हो गए। लेकिन जानबूझकर की गई अंकुश की यह जबरदस्ती मैं कभी नहीं भूल सकती। मेरे मन में अंकुश के प्रति अब वो इज्जत नहीं रह गई।

गोपनीयता का ध्यान रखते हुए नाम बदल दिए गए हैं और फोटो में मॉडल् हैं।

क्या आपके पास भी कोई कहानी है? हम से शेयर कीजिये। कोई सवाल? नीचे टिप्पणी करें या हमारे चर्चा मंच पर विशेषज्ञों से पूछें। हमारा फेसबुक पेज चेक करना ना भूलें। हम Instagram, YouTube  और Twitter पे भी हैं!

लेखक के बारे में: अनूप कुमार सिंह एक फ्रीलांस अनुवादक और हिंदी कॉपीराइटर हैं और वे गुरुग्राम में रहते हैं। उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। वह हेल्थ, लाइफस्टाइल और मार्केटिंग डोमेन की कंपनियों के लिए हिंदी में एसईओ कंटेंट बनाने में एक्सपर्ट हैं। वह सबस्टैक और ट्विटर पर भी हैं।

क्या आप इस जानकारी को उपयोगी पाते हैं?

Comments
नई टिप्पणी जोड़ें

Comment

  • अनुमति रखने वाले HTML टैगस: <a href hreflang>