शिवानी, 26, दिल्ली में रहने वाली एक वेबसाइट डेवलपर हैंI
मैं 15 साल की थी जब मुझे दीपक से प्यार हुआ था, बिलकुल एक बॉलीवुड कहानी की तरहI हमारी कॉलोनी में एक नया परिवार आया था और हमारा पूरा परिवार उनका स्वागत करने उनके घर गया थाI मेरी माँ ने अपने नए पड़ोसियों के लिए एक बड़ा सा केक बनाया था, जो मुझसे संभाले नहीं संभल रहा थाI जब मैंने उनके दरवाज़े की घंटी बजाई तो यह सोच रही थी कि दरवाज़ा खुलते ही सबसे पहले इस मुये केक को ही टेबल पर रखूंगीI लेकिन यह क्या? जब दरवाज़ा खुला तो मैंने पाया कि सामने एक तीखे नैन-नक्श और घुंघराले बालों वाला लड़का खड़ा थाI वो लड़का मुझे इतना अच्छा लगा था कि मैंने अगले तीस सेकंड उसे ही निहारते हुए गुज़ारे थेI यह तीस सेकंड कुछ घंटे भी हो सकते थे अगर मेरी माँ झुंझलाकर मेरे हाथ से केक लेकर अंदर ना चली गयी होतीI
पहली नज़र का प्यार
मेरे दिल का आलम यह था कि जब हम दोनों के परिवार एक दूसरे को जानने में व्यस्त थे, मेरी आँखें उसे निहारने मेंI अच्छी बात यह थी कि आग दोनों तरफ़ बराबर लगी हुई थी, क्यूंकि जब हम बाहर निकल रहे थे तब दीपक ने मेरे हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा थमा दिया थाI उसमें उसका नंबर थाI मैंने उसी शाम फ़ोन घुमा दिया था और उसके बाद तो हम लगभग रोज़ ही मिलने लगे थेI सौभाग्य से हम एक ही कॉलेज में भी थे और हम दोनों को अंदाज़ा ही नहीं हुआ कि हम कब एक दूसरे को डेट करने लग गए थेI कॉलेज के आख़री दिन दीपक ने मुझसे शादी का प्रस्ताव रखा,जिसे मैंने झट स्वीकार कर लिया थाI अगले ही साल हमारी शादी हो गयी थीI शादी के वक़्त मैं 19 साल की थी, और वो मुझसे एक साल बड़ाI
मुझे लग रहा था कि मुझे मेरे सपनो का राजकुमार मिल गया है और अब सब कुछ अच्छा ही होगाI लेकिन वास्तविकता उससे थोड़ी अलग होने वाली थीI
विपरीत व्यक्तित्व
शुरुआती दिनों में, प्यार हमारे बीच कोई भी मतभेद नहीं होने देता थाI हम हमेशा एक दूसरे के साथ रहना चाहते थे और शायद इसीलिए एक दूसरे के हर काम में रूचि लेते थेI लेकिन धीरे-धीरे चीज़ें बदलनी शुरू हुईI
हम मूलत: दो बेहद अलग लोग थेI उसे बाहर जाना, लोगों से मिलना पसंद थाI मुझे घर में दीपक के साथ समय बिताना अच्छा लगता थाI वो जानवरों से घृणा करता था, मैं बिल्लियों से प्यार करती थीI यहाँ तक कि मैं एक पालतू आश्रय में स्वयंसेवा भी करती थीI उसे फिल्मे देखना पसंद था तो मुझे लगता था कि तीन घंटे बर्बाद करने से अच्छा कोई अच्छी किताब पढ़ लोI उसे जिम में किकबॉक्सिंग और मार्शल आर्ट करना पसंद था, तो मुझे खुले आसमान के नीचे योगा करनाI मुझे जहाज़ के नाम से ही उल्टी आती थी और वो पूरा संसार घूमना चाहता थाI वो व्हिस्की, वोदका, बीयर, रम, टकीला, कुछ भी पी सकता था, मेरी बात चाय और बिस्कुट पर खत्म हो जाती थीI हम हर छोटी से छोटी सी बात पर लड़ते थे - कहाँ जाना है, क्या खाना है, बैडरूम का रंग, पैसे बचाने का ढंग, टीवी पर क्या देखें, दूसरो से क्या सीखें, वगैरह-वगैरहI हालात ऐसे हो गए थे कि हम एक दूसरे से तब तक लड़ते थे, जब तक थक ना जाएँI हमारे बीच में दूरियां बढ़ चुकी थीI हम शायद ही कोई समय साथ बिताते थे, क्यूंकि किसी भी एक चीज़ पर हमारी राय ही नहीं मिलती थीI
सच का सामना
शायद सब कुछ ऐसे ही चलता रहता अगर मेरे 25वें जन्मदिन पर वो ड्रामा ना हुआ होताI हमारा पूरा परिवार उस दिन इकट्ठा हुआ थाI हमारी शादी को छः साल भी हो गए थे तो मुझे बिलकुल भी आश्चर्य नहीं हुआ था जब हमारे दोस्तों और रिश्तेदारों ने हमसे यह जानना चाहा था कि हम बच्चे कब चाहते हैंI सभी को लग रहा था कि मेरे लिए यह गर्भवती होने का सही समय हैI
दीपक और मेरे बीच इस बारे में कभी कोई बात नहीं हुई थी और शायद इसीलिए उसका जवाब सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन निकल गयी थीI उसने हम दोनों के माता-पिता और दोस्तों को दो टूक जवाब दिया था "आप लोग चिंता करना छोड़ दो, क्यूंकि ऐसा कोई चमत्कार नहीं होने वाला"I उसका जवाब सुनकर मेरे दिल को इतना बड़ा धक्का लगा था कि शायद मेरे पास उसके लिए शब्द नहीं हैंI इस बात का तो दुःख था ही कि दीपक बच्चे नहीं चाहता, लेकिन शायद मुझे इस बात से ज़्यादा ठेस पहुँची थी कि इतने महत्त्वपूर्ण मुद्दे के बारे में भी हम दोनों एक दूसरे की पसंद-नापसंद के बारे में कितना कम जानते थेI
बेशक, हमने कभी बच्चों के बारे में बात नहीं की थी, क्योंकि हम दोनों ही अपने-अपने काम में बेहद व्यस्त थेI वैसे भी दीपक हमारे परिवार के बाकी बच्चो के साथ इतना खुश रहता था कि मुझे कभी यह ख्याल आया ही नहीं कि वो कुछ ऐसा भी सोच सकता हैI मुझे यही लगता था कि बाकी लोगों के तरह, एक दिन हमारा आंगन भी बच्चो की किलकारियों से गूंजेगा- कितनी गलत थी मैंI
अंतिम पड़ाव
उस रात, हम दोनों के बीच कोई लड़ाई नहीं हुई थीI हम चुपचाप अपने-अपने कोनों मे सो गए थेI शायद हम दोनों को ही यह एहसास हो गया था कि हमारे रिश्ते में एक बहुत बड़ा बदलाव आ चुका हैI अगली सुबह मैंने उसका फैसला बदलने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो अपने निर्णय पर अटल थाI मैंने उससे कहा कि मैं अपना बच्चा चाहती हूँ और वो मुझसे मातृत्व की भावना नहीं छीन सकताI उसका मानना था कि वो एक अच्छा पिता नहीं साबित होगा क्यूंकि उसे बच्चे पसंद ही नहीं हैंI मैंने उसे बहुत समझाया कि उसका यह सोचना बदल जाएगा जब उसके खुद के बच्चे होंगेI लेकिन वो फैसला कर चुका थाI
वो एक मुश्किल पल था क्यूंकि हम जानते थे कि हमारे बीच एक ऐसा अंतर आ गया था जिसे हम कितना भी चाहें, दूर नहीं कर पाएंगेI हम उसी दिन अलग हो गए थेI आज इस बात को दो महीने हो गए हैं और सच कहूं तो आगे बढ़ना एक दैनिक संघर्ष है। लेकिन मुझे यह भी पता है कि हम दोनों के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं हैI हम दोनों अभी भी जवान हैं और हमारे आगे पूरा जीवन पड़ा हैI
मुझे अभी भी उम्मीद है कि मेरे जीवन में कोई आएगा जो ना सिर्फ़ मेरी इच्छाओं का मान रखेगा बल्कि उसकी पसंद-नापसंद भी मुझसे मेल खाती होगीI मुझे माँ बनने का इतना शोक है कि अगर अगले कुछ सालों में मुझे एक सही जीवनसाथी ना मिला तो मैं बच्चे को गोद ले लूंगीI
*नाम बदल दिए गए हैं
तस्वीर के लिए एक मॉडल का इस्तेमाल हुआ है
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