सेक्स कैसा भी हो, कहीं भी हो, लेकिन अपनी मर्ज़ी से हो, तो हमें ख़ुशी तो बहुत देता है,और जितना ज़्यादा सेक्स मिले, जितनी बार मिले, उतने ही ज़्यादा खुश हम रहते हैं। लेकिन सेक्स और ख़ुशी का सम्बन्ध समझना इतना आसान भी नहीं है, ऐसा इस 15000 लोगों को लेकर किये गए अमेरिकी शोध में पाया गया।
इस शोध में, शोधकर्ताओं ने, 8 साल के अन्तराल को लेकर आंकड़े लिए और उनका विश्लेषण किया। शोध में भाग ले रहे लोगों से पुछा गया की उन्होंने पिछले साल में कितनी बार सेक्स किया होगा, और वो अपनी ज़िन्दगी में कितने खुश हैं।
कुछ 20 प्रतिशत अमेरिकी हफ्ते में दो या तीन बार सेक्स कर रहे थे, और कुछ 19 प्रतिशत हफ्ते में कम से कम एक बार हस्त्मेइथुन कर रहे थे। 18 प्रतिशत लोगों ने कहा की उन्होंने पिछले साल बिलकुल सेक्स नहीं किया था।
तुलनात्मक ख़ुशी
लेकिन ख़ुशी का सम्बन्ध सिर्फ इससे नहीं था की वो कितना सेक्स कर रहे थे या कितना सेक्स नहीं कर रहे थे। बल्कि, वो कितने खुश थे, इसका सम्बन्ध इससे भी था की दुसरे लोग कितना सेक्स कर रहे थे। जिन लोगों को यह पता चल रहा था की वो बाकी लोगों की तुलना में ज़्यादा सेक्स कर रहे थे, वो यह जानकर और भी ज़्यादा खुश थे। तो अगर कोई हफ्ते में दो से तीन बार सेक्स कर रहा था/रही थी, वो यह जानकर और भी संतुष्ट और खुश थे की उनकी जान पहचान वाले उनसे कम सेक्स कर पा रहे थे। और अगर इन्ही लोगों को यह पता चलता की उनकी जान पहचान वाले हर रोज़ सेक्स कर रहे हैं, तो वो कम खुश होते।
सामाजिक प्राणी
क्या आप जानते हैं की आपके दोस्त कितना सेक्स कर रहे है? लोगों को दूसरों की सेक्स लाइफ के बारे में कैसे पता चलता है? आखिर, दोस्तों के ग्रुप में कोई बात छुपती कहाँ है। लेकिन दोस्तों और सोशल मीडिया के अलावा, सेक्स की जनकारी मीडिया से भी मिलती है। उधारण के तौर पर, महिलाओं और पुरुषों की मैगज़ीन अक्सर 'सेक्स सर्वे' करती रहती है और उनके नतीजे छापती हैं। और इन सर्वे में गुमनाम लोगों से उनकी सेक्स लाइफ के बारे में पुछा जाता है। इस तरीके से, लोगों को यह आईडिया तो लग ही जाता है की लोगों की सेक्स लाइफ चल कैसी रही है।
आखिर हम दूसरों की सेक्स लाइफ के बारे में जानने के लिए इतने उत्सुक क्यूँ होते हैं? इंसान सामाजिक प्राणी है, ऐसा इस शोध के लेखक का कहना है। इसका मतलब है की हम चाहकर भी अपनी तुलना दूसरों से करने में अपने आप को रोक नहीं पाते हैं। परेशानी यह है, लेखक बताते हैं, अधिकतर यह तुलना हमारे पक्ष में नहीं होती - हम हमेशा यही सोचते है की शायद दोसरों की ज़िन्दगी हमसे बेहतर है, और उनकी सेक्स लाइफ हमसे ज़्यादा अच्छी।
क्या आपको भी लगता है की ज़्यादा सेक्स का मतलब है ज़्यादा ख़ुशी? ज़्यादा ज़रूरी क्या है - ज़्यादा बार सेक्स या ज़्यादा अच्छा और संतुष्ट सेक्स? यहाँ लिखिए फेसबुक पर हो रही चर्चा में भाग लीजिये।