Don Stevenson

अपने गोरे बॉय फ्रेंड के साथ रहने का कटु अनुभव

नमिता अपने जर्मन बॉयफ्रेंड के साथ पिछले दो सालों से रेह रही है। "मेरे लिए ये अनुभव मुश्किल रहा है। और ये हमारे रिश्ते कि वजह से नहीं, बल्कि इस वजह से कि दूसरे लोग हमारे रिश्ते के बारे में बहुत कुछ कहते हैं!" ऐसा उसका कहना है।

नमिता मुम्बई में रहने वाली 27 वर्षीया पत्रकार है।

'जातिवाद काँटा'

हमारा रिश्ता पहले डीन्स इ ही मुश्किल रहा है। और वो इसलिए क्यूंकि वो जर्मन हैं और मैं भारतीय। जब हमें एक दूसरे से प्यार हुआ था, तब हमने यह नहीं सोचा था कि पार सांस्कृतिक रिश्ता भारत में होना मुश्किल होगा।

मेरा "भला" सोचने वालों कि तरफ से मुझे बहुत सारे कमेन्ट सुनने को मिले, जैसे, "तुम किसी गोरे लड़के पर इतना भरोसा कैसे कर सकती हो", "फिरंगी कभी वफादार नहीं होते, इसलिए ध्यान रखना", "तुम्हे कोई भारतीय लड़का नहीं मिला?", और और भी बहुत कुछ। मेरी अपनी रक्षात्मक प्रतिक्रिया थी - एक विनम्र जवाब जैसे: "तुम अपने काम से मतलब क्यूँ नहीं रखते, जातिवाद कांटे?"

स्वार्थी चयन?

सबसे ज़यादा परेशानी तब शुरू हुई जब हमने साथ रहना शुरू किया। हमारा निर्णय हमारे लिए बिलकुल सही था और आसान भी। क्यूंकि अलग-अलग रेह्कर मुम्बई जैसे महंगे शहर में बसर करना एक तरह से पैसे कि बर्बादी थी। तो साथ रहकर घर के किराये कि बचत क्यूँ ना करें? और अगर हम एक दूसरे को ना झेल पाएं तो हम वापस अलग-अलग रेह सकते हैं। ऐसा नहीं था ना कि हम अपने चुनाव से पीछे नहीं हट सकते थे।

 

लेकिन हमारे आस-पास के सभी लोगों ने मुझे बहुत डरा दिया था। मेरे माता-पिता को भी हमारे शादी बगैर साथ रहने कि बात बहुत बुरी लगी। उनका कहना था "तुम बिना शादी के साथ रहने कि सोच भी कैसे सकती हो।" मेरे दोस्त भी पूरी तरह मेरा साथ नहीं दे रहे थे। एक दोस्त का कहना था, "तुम्हे थोडा अपने माता-पिता के बारे में भी सोचना चाहिए कि तुम्हारे ऐसा करने से उन्हें कैसा लगेगा।" तो एक तरह से मुझे ऐसा महसूस कराया जा रहा था जैसे कि मैं बहुत स्वार्थी निर्णय ले रही थी।

कानूनन तौर पर साथ नहीं

अपने मन कि किसी कोने में मुझे लगता था कि मुझे समाज कि बातों से हटकर अपने खुद के मन के चुनाव के साथ जाना चाहिए। मैंने काफी बार सोचा कि क्या मेरा अपने साथी से प्यार करना गलत निर्मय था, या अपने माता-पिता कि बात ना मानकर उसका साथ रहना का निर्णय गलत था, क्या मैं बहुत स्वार्थी हो रही थी। और आईएनएस अभी सवालूं का सच्चा जवाब था, नहीं!

तो फिर हमने आगे बढ़कर साथ रहने का निर्णय लिया। और तब शुरू हुआ हमारे रिश्ते का मज़ेदार समय. मकान-मालिक, ठेकेदार, भूमि भवन व्यापार वाले और पड़ोसी सभी नई हमारे कानूनी तौर पर साथ ना होने कि वजह से हमें घर किराये पर देने से मना कर दिया। बिना शादी के भारत में साथ रहना अभी भी अमान्य है, और अंतर-जातिय युगलों के लिए यह और भी मुश्किल हो जाता है। आख़िरकार दो हफ्ते तक घर ढूंढने के बाद, हमें ऐसा मकान-मालिक मिला जिसे हमारे कानूनन तौर पर शादी-शुदा ना होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था।

पति और पत्नी

पिछले कुछ सालों में, मैंने अपनी तरफ बहुत साड़ी भोहें उठते हुए देखी हैं, ऐसी नज़ारे देखी है जो यह जताना चाहती है कि मैं कितनी गलत हूँ लेकिन इनसे निपटने का मैंने अपना तरीका अपना लिया है। अधिकतर मेरी प्रतिक्रिया यही होती है "अपने काम से काम रखो।"

लेकिन फिर भी ऐसे बहुत सारे पल होते हैं जो मुझे अचम्बे में दाल देते हैं। जैसे कि उस दिन जब मेरे घर साफ़-सफाई करने वाली ने मुझसे पुछा, "मुझे एक बात सच-सच बताओ, क्या आप दोनों पति-पत्नी हैं?" मैंने सर हिला कर मना कर दिया। वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुरायी और बोली, "हाँ, आज-कल तो यह सब चलता है। साथ रहने के लिए शादी करने कि ज़रूरत नहीं होती, हैना? समय बदल गया है।"

इस चित्र में जो युगल हैं वो नमिता और उसका साथी नहीं।

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