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मेरा शरीर अक्षम है पर मेरा दिल सक्षम

Submitted by Kavya Mukhija on शुक्र, 02/21/2020 - 04:05 बजे
अर्णव को बिलकुल भी मालूम नहीं था कि उसे काव्या कितना पसंद करती थी. उसके दिल का एक हिस्सा चाहता था कि अर्णव को इस बारे में तब ही बता दे जब वो लंच ब्रेक में पानी की बोतल लेने आया था, पर किस चीज़ ने काव्या को ऐसा करने से रोक लिया था? उन्होंने अपनी कहानी राइजिंग फ्लेम से साझा की।

21 साल की काव्या जयपुर में रहती हैं , साइकोलॉजी की छात्रा हैं और लिखती भी हैं. 

फिल्मों की दुनिया से

किशोरावस्था के उन दिनों में जब प्यार बढ़ाने वाले हॉर्मोन ने हममें ख़ूब सारा प्यार भर दिया था, मुझे भी अहसास हो रहा था जैसे मेरे अन्दर भी कुछ खिल गया है. मैं तब बारह साल की थी और दक्षिणी दिल्ली के एक नामी स्कूल में ग्रेड 7 में  पढ़ रही थी. अर्णव लम्बा था, हल्के भूरे रंग के बालों वाला ... जैसे लोग अक्सर फ़िल्मों में नज़र आते हैं. ऐसा लगा जैसे वह उसी दुनिया से निकल कर बाहर आया है.

अप्रैल के शुरूआती दिन थे, ग्रेड 7 का पहला दिन, उसी दिन मैंने उसे पहली बार देखा था.  उसने नया-नया दाख़िला लिया था और क्लास टीचर ने उसे सामने बुलाया था ताकि बाक़ी सब से उसका परिचय करवा सकें.

वो स्मार्ट, दुबला-पतला और काफ़ी प्यारा था - लाजवाब दंतपंक्ति और चमकीली मुस्कान.अर्णव गेहुएं रंग का था और आँखें इतनी नीली जैसे समंदर... अप्रैल की उस गर्मी में उसका होना किसी ठन्डे झोंके की तरह था. 

बैक बेंचर

जैसे-जैसे दिन गुज़रते गये, मुझे पता चला कि वो स्पोर्ट्सपर्सन (खिलाड़ी) भी है. और ज्यों-ज्यों, उसके खेल के,  उसकी खेल भावना के क़िस्से सुने जाने लगे, मुझे जानकारी मिली कि वह बास्केट बॉल कोर्ट में कमाल कर देता जब भी खेलता. हालाँकि, मैं कभी उसे खेलता हुआ नहीं देख पायी थी. स्कूल के मेरे शिक्षक हमेशा डरे रहते थे कि कहीं मुझे बॉल से चोट न लग जाये, बस इस वजह से मैं हमेशा पीटी के पीरियड में क्लास के अन्दर ही रहती थी.

आप अर्णव को पीछे की किसी बेंच पर बैठे देख सकते थे जबकि मेरी सीट टीचर के डेस्क के ठीक सामने बिलकुल आगे सुरक्षित रहती थी. यह बात साफ़ नज़र आती थी कि हम भौतिक रूप से एक दूसरे से बहुत दूर थे, और हम बाक़ी मायनों में भी काफ़ी अलग थे – मैं शारीरिक रूप से अक्षम लड़की थी जबकि वह ऐसा नहीं था.

हर ओर प्यार का ख़ुमार

इन नाज़ुक सालों में, मेरे आस-पास हर कोई प्यार में था, नये-नये बने रिश्तों के स्वाद में तिरता हुआ. आबोहवा में प्यार की महक थी. मेरे दोस्त मुझे खूब चहक के साथ बताते कि उन्हें उनके प्रेमी/प्रेमिकाओं ने तोहफ़े में चॉकलेट दिया और डेट कितना मज़ेदार बीता, और मैं मन ही मन सोचा करती कि कब इन क़िस्सों को सुनाने का मौका मुझे मिलेगा? क्या कभी मिलेगा भी?

इसलिए जब प्यार मेरे पास आया मैं तनिक संशय में थी. मेरे किसी भी दोस्त को ठीक-ठीक मालूम नहीं था कि मुझे भी कोई पसंद है – कोई क्लास का ही. मुझे नहीं लगता कि उन्हें अंदाज़ा भी होगा कि मेरा किसी पर क्रश को सकता है क्योंकि मेरा दिल जानता है कि प्यार कैसे करना है, तब भी जब मेरा शरीर इस बात को कह न सके. मेरी सारी  कल्पनाएँ, मेरे सारे भाव वहीं रहे जहाँ थे यानि मेरे दिल के अन्दर .

लगभग कह ही दिया था उससे लेकिन...

अर्णव को भी बिलकुल अंदाज़ा नहीं था कि मैं उसे पसंद करती थी. मेरे दिल का एक हिस्सा इसे उस पर तब ही ज़ाहिर कर देना चाहता था जब लंच ब्रेक में पानी का बोतल लेने आया था. बुधवार था उस दिन, उस दिन हमारी पीटी क्लास हुआ करती थी मुझे इसलिए भी याद है क्योंकि उसने स्कूल का स्पोर्ट्स यूनिफार्म पहन रखा था – ब्लू हाउस टीशर्ट और डार्क ब्लू ट्रैक पैंट. वो बिलकुल वैसा ही लग रहा था, जैसा आम तौर पर लगता था. उलझे हुए बाल, फ्रेमलेस चश्मा उसकी नाक पर रखा हुआ, जैसे दुनिया का सबसे बड़ा नर्ड हो और उसकी त्वचा मई की उस गर्मी में बड़ी ख़ूबसूरती से चमक रही थी.

किन्तु मेरे दिल का एक हिस्सा अब भी डरा हुआ था कि क्या हो सकता है आगे. मुझे नहीं पता था कि वह कैसी प्रतिक्रिया देगा. मुझे नहीं पता था कि वह हँस देगा और कहेगा कि मैं बिलकुल भी वैसा नहीं महसूस करता और मेरी सारी चाहत भरभराकर नीचे गिर पड़ी.

हमेशा के लिए दोस्त

हालाँकि हम डेट नहीं कर रहे थे, हम सच में बड़े अच्छे दोस्त थे. सालों के दरमियाँ हमने न जाने कविता, किताब और साइकोलॉजी पर कितनी बार बातें की. मैं उसे फ़ोन किया  करती थी, वो खुलकर बातें करना पसंद करता था, और मैं अपने-आप में रहने वाली थी. इसलिए अक्सर बातें वही करता था और मैं शांति से सुन रहा था.

उसकी बातें गहरी हुआ करती थीं, उसका हास्य-बोध कमाल का था. जैसे वो कोई जादू जानता हो और चुटकी बजाते ही सबका मूड ठीक कर देता हो. उसके साथ होना ऐसा था जैसे आज़ाद हवा में सांस लेना क्योंकि वह मुझे बहुत जगह देता था. उसे फ़िल्में देखना पसंद था और जैसे ही कोई नई फिल्म रिलीज़ होती वह देखने चला जाता.  उसकी सबसे पसंदीदा फ़िल्म ‘स्प्लिट’ थी. ज़ाहिर है क्यों – साइकोलॉजी के लिए प्रेम उसके खून में दौड़ता था. इतना सब होने के बाद मैं कैसे नहीं उसके प्यार में पड़ती?

हमारी दोस्ती किसी साहित्यिक बात पर शुरू हुई थी. हुआ यूँ था कि मैंने एक ऑनलाइन पब्लिशिंग कंपनी के लिए एक लेख लिखा था और उसके बाद उसने मुझे पिंग करके कहा था कि उसे वह लेख किस क़दर पसंद आया था. 

जो नज़र के सामने नहीं, वो ज़ेहन से बाहर

साल जैसे गुजरते गये, हमारी दोस्ती बढ़ती गयी. हालाँकि मैं कभी सामने से उसे खेलते हुए नहीं देख सकी पर मैंने तय किया था कि हर मैच से पहले शुभकामनाएं दूँ.

एक मैच से पहले जब मैंने उसे शुभकानाएँ दी तो एक आँख दबाते हुए उसने कहा, ‘अब तो हमारी ही टीम जीतेगी.’

शायद, ये वो सब था जिसकी मैंने कभी कल्पना की थी, लेकिन एक बार हम स्कूल से बाहर हुए, हमारे क्लास कम होने शुरू हुए, हमारी दोस्ती हलकी होने लगी. वैसे तो हम सोशल मीडिया पर जुड़े हुए थे और कभी-कभी मैं सोशल मीडिया पर उसकी जासूसी भी करती. मुझे अब भी हमारी बातें और उसकी चमकीली मुसुराहट याद आती. क्या वो भी मुझे याद करता होगा, मैं सोचती.

मैंने उसे कभी नहीं बताया कि मैं उसके लिए क्या महसूस करती थी, कैसे कह सकती थी मैं? वह पहले से ही रिश्ते में था और उस रिश्ते में ख़ुश भी था. वैसे भी मैं हमारी दोस्ती को सुरक्षित रखना चाहती थी. उसे अपने पार्टनर के साथ देखना मुझमें जलन भर देता था. मुझे अपनी चुप रहने की बात पर गुस्सा भी आता था. मुझे लगता था कि कई दफ़े उसने मुझे इशारा भी किया था कि वह मुझे पसंद करता है, शायद मुझे भी उसके प्रति अपनी दीवानगी उस पर ज़ाहिर कर देनी चाहिए थी. लेकिन मुझे लगता था कि हम दोनों दो अलग मंजिलों की और अलग राह के राही हैं. 

रिश्ते के बारे में मेरे विचार

 जब भी मैंने किसी भी रिश्ते में होने के बारे में सोचा, मैंने यही सोचा कि दो सबसे अच्छे दोस्त साथ रह रहे हैं. आपस में हर चीज़ एक-दूसरे से साझा करते हुए, अपने साथियों को बिना किसी भी कसौटी पर तौले हुए, एक दूसरे से खूब प्यार कर रहे हैं. वे हँसी-मज़ाक कर रहे हैं, साथ घूमने जा रहे हैं या फ़िर घर पर रूमानी रात बिता रहे हैं.

मुझे अपने लिए ऐसा ही रिश्ता चाहिए  – जहाँ भरोसा और आज़ादी हो. परवाह और चाहना हो, प्रेम और नोक-झोंक भी, और मैं जानती हूँ एक दिन मेरी ज़िंदगी में भी ऐसा ही कोई ख़ास आएगा जिसके साथ मेरा ठीक वैसा ही रिश्ता होगा.

नाम बदल दिए गए हैं और तस्वीर में मौजूद व्यक्ति एक मॉडल है।

लव मैटर्सराइजिंग फ्लेम के सहयोग से प्रेम, अंतरंगता, रिश्तों और विकलांगता पर निबंधों की एक श्रृंखला प्रस्तुत करता है। दिल विल प्यार व्यार विकलांग महिलाओं की आवाज़ को बढ़ाने का एक प्रयास है; प्रेम पर आख्यान जो शायद ही कभी रोमांस पर मुख्यधारा की चर्चा में देखा जाता है। 14 फरवरी से, हम विकलांग महिलाओं द्वारा लिखी गई कई कृतियों को जारी करेंगे, जिससे हमें उनके जीवन में झांकने का मौका मिलेगा।

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