लेकिन शान समलैंगिक था। तो फिर विभा ने उससे शादी क्यूँ की? आइये जाने...
विभा 26 वर्षीय इंटीरियर डिज़ाइनर है और पुणे में रहती है।
शान और मैं बचपन से एक दुसरे के जिगरी है। हम सब कुछ एक साथ करते थे और हमारी कोई भी बात एक दुसरे से छुपी नहीं थी। हमारे परिवार भी बेहद करीब थे और छुट्टियां मनाने भी हम लोग साथ में जाते थे।
वो 19 साल का था, जब मुझे पता चला कि वो समलैंगिक है। आप इसे छठी इन्द्रिय कहे या कुछ और, लेकिन ना जाने कैसे पर मुझे इस बात का अंदेशा पहले से था। उसकी आँखे नम थी और वो काँप रहा था जब उसने मुझे पहली बार बताया, लेकिन, जब मैंने उसे गले लगाकर कहा "अब हम पहले से भी ज़्यादा करीब है, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी", तब उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं थाI
परिवार की प्रतिक्रिया
उसे 5 साल और लगे यह सच अपने परिवार के समक्ष लाने में। उन्हें विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि उनका इतना खूबसूरत, बुद्धिमान और बलिष्ठ नौजवान सुपुत्र इतरलिंगी नहीं है ।
इसके बाद तो जैसे शान की दुनिया ही पलट गयी। उसके माता-पिता ने पूजा पाठ से लेकर पॉर्न तक हर संभव प्रयास किया जिससे कि उसके अंदर का 'पुरुष' ज़िंदा हो सके। रिश्तेदारो ने भी बेसर-पैर के कई सुझाव प्रस्तुत किये। कुछ का मानना था कि शान को 'आघात चिकित्सा' की ज़रुरत है जिससे ऐसे 'बुरे विचार' उसके दिलो-दिमाग से बाहर निकल जायेंगे। एक भाईसाहब ने उसे अमरीका जाने की सलाह दे डाली, क्यूंकि भारत में उसे जेल जाना पड़ सकता है।
एक "सनकी" सुझाव?
साल दर साल, शान होमोफोबिआ से और ग्रस्त होता चला गया। धीरे-धीरे उसका सुख-चैन खत्म हो रहा था और उसका जीवन उदासीन होता जा रहा था। एक दिन वो फ़ूट-फ़ूट कर रोने लगा और उसने कहा कि वो और जीना नहीं चाहता! उसके पास और चारा भी क्या था? ना वो शादी करना चाहता था और ना ही देश छोड़ कर जाना चाहता था, शायद उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो करे तो क्या करे?
तभी मैंने यह फैसला किया कि मुझे और शान को शादी कर लेनी चाहिए। यह एकलौता तरीका था जिससे लोग उसे अकेला छोड़ देते और वो फ़िर से जीना शुरू कर सकेता। शान ने कहा "नहीं यह कतई नहीं हो सकता, तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया है? मैं तुम्हारी ज़िंदगी गड्ढे में नहीं डाल सकता!"
आखिरकार मैंने उसे मना लिया कि इस सारे जंजाल से बाहर निकलने का इससे बेहतर उपाय नहीं हो सकता। उसके माता-पिता की खुशी शब्दों में बयां करना मुश्किल था। रही बात मेरे माता-पिता की, तो वो भी बेहद खुश थे। क्योंकि उन्हें शान के बारे में पता ही नहीं था। दो-चार रस्मे और मैं और शान अब एक पति-पत्नी थे।
सेक्सहीन शादी
एक साल हो गया था हमारी शादी को और सब कुछ बेहद रोचक था। हम एक दोहरी ज़िंदगी जी रहे थे - परिवार और दोस्तों के सामने हम एक प्रेममय जोड़ा थे, एक दुसरे की ओर शारिरिक स्पर्श देखते ही बनता था, रात होते ही हम अच्छे दोस्त बन जाते थे जो एक दुसरे के शरीर के अलावा सब कुछ बांटते थे।
शुरू में सब बहुत सुहावना था, लेकिन बिना सेक्स की शादी कब तक टिकेगी। धीरे-धीरे बातचीत चिड़चिड़ाहट में बदल गयी और सुकून के लम्हे रोने धोने में। हमने सोचा कि अपनी अपनी शारीरिक संतुष्टी के लिए शादी से बाहर झांके, पर हम दोनों शायद इस तरह की 'बेवफ़ाई' के लिए भी तैयार नहीं थे।
सम्भोग, आखिरकार
एक पार्टी में हम दोनों ने काफ़ी शराब पी ली और घर आकर दारु के नशे में सेक्स भी कर लिया। वो बेहद अजीब था लेकिन शायद हम दोनों को उसकी ज़रुरत थी! ऐसा नहीं था कि हम दोनों ने उसके बाद शारिरिक सुख नहीं उठाया, लेकिन वो केवल शारिरिक था और 'सुख' और कामुकता से पूरी तरह वंचित था।
कभी कभी मैं सोचती हूँ कि कितना अच्छा होता अगर शान के माता-पिता ने उसका सहयोग किया होता। शायद हम दोनों की ज़िंदगी नरक बनने से बच जाती। मुझे पता है कि आज नहीं तो कल हम दोनों को कुछ कठिन फ़ैसले लेने पड़ेंगे जैसे संतान होने का सुख या शायद तलाक़। जब तक हम दोनों इन फैसलों को लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते, कम से कम तब तक तो ज़िंदगी यूँ ही चलती रहेगी।
इस फ़ोटो में दिखाए गए लोग केवल मॉडल है और उनका इस कहानी से कोई सरोकार नहीं है।