नैना 22 साल की मुंबई में रहने वाली एम.बीए. स्टूडेंट हैI
परिवार में शुरू से यही सिखाया गया की जो 'सामान्य' है वो गलत हैI और समलैंगिक होना तो उनकी असामान्यता की सूची में शायद सबसे ऊपर रहा होगाI मैं 15 की थी जब एक शादी के दौरान मेरी आंटी हमारे घर रहने आई थी और मैं गलती से उनके कमरे में उस समय प्रविष्ट हो गयी जब वो कपडे बदल रही थीI उनके अर्धनग्न शरीर पर मेरी नज़रें टिक सी गयींI मैंने खुद को संभाला और माफ़ी मांग कर कमरे से बाहर चली गयीI
मुझे इस घटना के बाद असल में थोड़ी शर्मिंदगी होनी चाहिए थी, लेकिन मैं तो मुस्कुरा रही थी और मेरे दिमाग में उनके शरीर की कल्पना ने मानो घर कर लिया थाI मेरे मन में उन्हें छूने और चूमने की इच्छा आ रही थी, लेकिन मुझे तुरंत अपनी इस इच्छा से घृणा होने लगीI आखिर मैं ऐसी इच्छा कैसे रख सकती हूँ? शायद मेरा दिमाग ठिकाने नहीं हैI
खुद को सज़ा
दो साल बाद मेरा अफेयर सार्थक नाम के लड़के से शुरू हुआ जो मेरे दोस्तों के मुताबिक दिखने में काफी अच्छा थाI मुझे वो अच्छा तो लगता था लेकिन उसके चूमने से या छूने से मुझे कुछ नहीं होता थाI ऐसे ही दो साल गुज़र गए और मैं अपने आप को खुद के सामने सामान्य साबित करने के लिए सेक्स का लुत्फ़ उठाने का नाटक करती रहीI. मैंने सदा ही समलैंगिकों से घृणा की थी और उनका मज़ाक उड़ाया थाI
और फिर मैं अपनी कुछ सहेलियों के साथ गोआ गयीI वह एक डांस बार में मुझे यूक्रेन की एक बेहद खूबसूरत लड़की मिलीI हमने साथ शराब पी और फिर हम दोनों उसके कमरे में चले गएI कुछ ही देर में हम दोनों के शरीर पर कपडे नहीं थे और हम एक दुसरे को बेतहाशा चूम रहे थेI उसके छूने के बाद मुझे उस शारीरिक सुख का एह्साह हुआ जिसके बारे में मुझे अंदाज़ा ही नही थाI अब मुझे समझ आया था की सेक्स के सुख किसे कहते हैं!
जब मैं सुबह उठी और मेरा नशा उतरा तो मुझे खुद से घिन्न आने लगीI मैं वहां से भाग आई और फिर उससे कभी नहीं मिलीI वापस लौट कर मैंने सार्थक से अपना रिश्ता तोड़ लियाI लेकिन मेरी खुद से नफरत इतनी बढ़ गयी की मैंने ब्लेड लेकर अपनी जांघ का अंदर का हिस्सा काट लियाI जब वहां से खून निकला तो मुझे लगा की अब मैं वापस साफ़ हो चुकी हूँI मेरे मन में जब भी इस तरह के 'घटिया' ख्याल आये मैंने खुद को ऐसे ही चोट पहुंचा कर दण्डित कियाI
जिन्दा, खुश और समलैंगिक
अगले दो साल मेरी जांघों पर लगातार घाव रहेI एक रात मैं एक फिर एक लाजवाब महिला से मिलीI घर आकर मैंने फिर खुद को दंड देने का फैसला किया और घाव कुछ ज़्यादा गहरा हो गयाI पूरा फर्श खून से भर गयाI मैंने दरवाज़ा खोल कर किसी तरह अपनी माँ की बुलायाI
मुझे हस्पताल ले जाया गया और कई घंटे बाद मुझे फिर से होश आयाI पुलिस इसे आत्महत्या का प्रयास समझ कर मेरे माता पिता से सवाल जवाब कर रही थीI मैंने उन्हें बताया की ये गलती उनकी नहीं मेरी हैI. और इस पल मैंने अपने माँ बाप को अपनी इस हकीकत के बारे में भी बता दियाI उन्होंने इस सच को स्वीकार लिया की उनकी बेटी समलैंगिक हैI
मैंने इसके लिए मनोचिकित्सक से मुलाकात की जिसने मुझे समझाया की मेरे समलैंगिक होने में मेरी या किसी और की कोई गलती नहीं हैI मेरे माता पिता ने इस सच के साथ जीना सीख लिया हैI और जहाँ तक मेरा सवाल है, मुझे उम्मीद है की मुझे किसी दिन कोई ख़ास साथी मिलेगा जिसके साथ मैं अपना जीवन बाँट पाऊँगी- ख़ुशी के साथ!
समलैंगिक होने से शर्मिंदा हैं? क्या आप ऐसे समलैंगिक को जानते हैं जो इस बात का दंड खुद को देता है? आप उनकी मदद कैसे कर सकते हैं? अपने विचार हमसे बाँटिये यहाँ अपनी राय लिख कर या फिर फेसबुक पर इस चर्चा में भाग लेकरI