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‘अपने आस-पास सब प्यार जैसा लगता है’

Submitted by Rising Flame on सोम, 03/01/2021 - 05:10 बजे
कभी-कभी साधारण चीज़ों की चाह सबसे ज्यादा होती है, और मैं चाहती थी कि उसका ध्यान मेरी ओर हो। मैंने उसे या किसी और को कभी नहीं बताया कि मुझे कैसा महसूस होता है पर मैं मन ही मन उससे प्यार करती थी। मेरी ज़िन्दगी उस तमिल गाने ‘कनाबाथेलम ... कधालाड़ी’ (मैं जो भी आस-पास देखती हूँ, सब प्यार जैसा लगता है) के जैसी लगने लगी थी। डॉक्टर दीपा वी. राइजिंग फ्लेम से अपनी कहानी बताते हुए कहती हैं।

डॉ दीपा वेंकटेश कोडागु इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस मदिकेरी में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। वह एक उत्सुक लेखक, उत्कट उद्यमी और पशु प्रेमी है। उन्हें अपने आस-पास की छोटी-छोटी चीजों से खुशी मिलती है और संगीत से उन्हें ख़ास लगाव है। वह राइजिंग फ्लेम के 'आई कैन लीड' 2020 प्रोग्राम के फेलोस में से एक हैं।

पारस्परिक दोस्तों से लेकर फेसबुक दोस्तों तक 

मैंने उसके बारे में एक कॉमन फ्रेंड से सुना थावो कॉलेज में मेरे सीनियर थे, विकलांग और मेरी ही तरह डेंटिस्ट भीजिस वक़्त मुझे उनकी डिसेबिलिटी के बारे में पता चला, मैं तय कर लिया कि वही हैं बस... 

उनकी डिसेबिलिटी मुझसे थोड़ी कम है, शायद इसी वजह से मैं उनकी ओर आकर्षित हुई, ऐसा महसूस हुआ वो मुझे कमतर करके नहीं देखेंगे और हमदोनों एक-दूसरे को मदद भी कर सकेंगेमैं उनके करीब जाने के तरीके के बारे में सोचने लगीमैंने फेसबुक पर एक मेसेज भेजा और उन्होंने तुरंत जवाब भी लिख दियामेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा

मैंने उनका व्हाट्सएप नम्बर लिया और हम दोनों एक दूसरे के स्टेट्स पर मेसेज करने लगे, हालाँकि यह अक्सर फॉर्मल ही होता था

मुझे अच्छा लगता था जब भी वो मेसेज करते थे, पर मेरी उनसे शायद ही कभी बात होती थीउन्हें प्रकृति से प्यार था और वे ग़ज़ब के फोटोग्राफर थेजल्द ही मैंने भी फोटोग्राफी में इंटरेस्ट लेना शुरू कर दिया और मैं अपने स्टेट्स में रंगीन फूल और तितलियाँ लगाती थी कि उन्हें इम्प्रेस कर सकूँ

कभी-कभी सबसे साधारण चीज़ों की चाह सबसे ज्यादा होती है, और मैं चाहती थी कि उनका ध्यान मेरी ओर होमैंने उन्हें या किसी और को कभी नहीं बताया कि मुझे कैसा महसूस होता है पर मैं मन ही मन उन्हें प्यार करती थीमेरी ज़िन्दगी उस तमिल गाने कनाबाथेलम ... कधालाड़ी (मैं जो भी आस-पास देखती हूँ, सब प्यार जैसा लगता है) के जैसी लगने लगी थी

इच्छाएं और पश्चाताप 

मुझे हमेशा इस बात का दुःख रहा है कि मैं अपने उम्र के बाक़ी लोगों की तरह नहीं हूँमैं कई बार हर वो काम करना चाहती थी जो जवान लोग अकसर करते हैं, जैसे लड़कों के साथ मौज-मस्ती करना, फ्लर्ट करनाऐसा भी नहीं है कि मैं ठीक यही सब चाहती थी पर मैं यह सोचना बंद नहीं कर पाती थी कि मैं उन जैसी क्यों नहीं हूँ? क्यों मैं लड़कों से बात भी नहीं कर सकती? क्या मैं भी किसी को अच्छी लगूंगी? 

जब भी मैं किसी नये व्यक्ति से मिली, मैं चाहती कि वो मेरे लाइफ पार्टनर के रूप में सामने आयें पर हर बार वे मेरे दिल को टूटा छोड़कर चले जाते

एक बार बातचीत के दौरान मैंने अपने एक सहकर्मी और दोस्त को बताया कि मैं एक डेंटिस्ट से शादी करना चाहती हूँउसने तुरंत पलटकर कहा, ‘तुम कुछ ज़्यादा ही आत्म-विश्वास में नहीं हो?’

मेरी प्यारी दोस्त, ‘क्या यह ग़लत है कि अपना जीवनसाथी अपने ही पेशे से चुनने की इच्छा रखी जाए? क्या किसी कथित रूप से सामान्य व्यक्ति ने यह इच्छा ज़ाहिर की होती तो तुम यही कहती? क्या डिसेबिलिटी वाले लोगों के पास अपने जीवनसाथी को चुनते वक़्त विकल्प नहीं होना चाहिए?’

आख़िरशः पहली डेट 

मैं अब 34 साल की हूँ, और मेरे अधिकतर दोस्तों की शादी हो गेई है, पर मैं अब भी हमसफ़र की तलाश में हूँदो साल तक फेसबुक और व्हाट्सएप पर फॉर्मल मेसेज भेजने के बाद मैंने तय किया कि अपने गुप्त प्यार से इज़हार कर दूं कि मैं कैसा महसूस करती हूँमैं न चाहकर भी यह सोचती रही कि क्या होगा अगर उसने मेरी डिसेबिलिटी की वजह से मुझे नकार दिया तो? 

पर हम बहुत सारे मसलों में एक सा सोचते थे और उन्होंने उस पर ज़रूर ध्यान दिया होगा, ये सब सोचकर मैंने उन्हें अपने दिल की बात बताते हुए व्हाट्सएप पर एक सन्देश भेजाउन्होंने मुझे चौंकाते हुए कहा कि वो कल मुझे फ़ोन करेंगेतनाव में मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था. हम घंटे भर बात करते रहे, एक दूसरे को समझते रहे और उनके लिए मेरा प्यार बढ़ ही गयाहमने मिलने का सोचा और मैं लगभग 250 किलोमीटर की यात्रा करके उनसे  एक कैफ़े में मिलने गयी. 

इस बार मैं कोई भी कसर नहीं बाक़ी रखना चाहती थी. मैंने खुद को अच्छे से तैयार किया, ब्लीच किया ताकि थोड़ी और गोरी दिख सकूँ, शार्ट पिक्सी कट से बालों को शोल्डर बॉब में बदला, अपने बालों को घुंघराला किया, अपना बेस्ट ब्लू ड्रेस पहना, अपने क्रचेस (बैसाखियाँ) ली और उनके लिए एक तोहफ़ा भी लियामैं पहली बार उनसे मिलने वाली थी, और वो बेहद ख़ूबसूरत थेमेरा ध्यान उनकी बिल्लौरी आँखों पर गया, सफ़ेद और काले के बीच की रंगत वाली आँखें, और उनकी सफ़ेद और नीली स्ट्राइप वाली टीशर्ट

उन्होंने अपने बारे में कुछ नया नहीं बताया, सिर्फ इस बात के कि वो कट्टर ब्राह्मण हैंउन्होंने मुझसे मेरे पारिवारिक पृष्टभूमि के बारे में भी पूछा जिसकी वजह से मैं थोड़ी परेशान भी हुईमैं किसी ‘उच्च’ वर्गीय परिवार से नहीं हूँ

मुझे किसी वैसे व्यक्ति की तलाश थी जो मेरे साथ शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से खड़ा हो सके. वास्तव में, ख़ूबसूरत रिश्ते नियम और शर्तों से बंधकर नहीं मिलते, बल्कि दो लोगों द्वारा आपसी भरोसे और समझदारी की बिना पर खड़े किये जाते हैं

उम्मीद का दामन थामे रखना 

डेट ख़त्म होते-होते वो यह कहकर चले गये कि हम केवल दोस्त हैंमेरा दिल यह मानने को तैयार नहीं थामैंने उन्हें तोहफा नहीं दिया, केवल साथ वक़्त बिताने का शुकराना अदा किया और लौट गयी बिना एक बार भी मुड़कर देखे हुए

जब अगले दिन भी उनका कोई मेसेज नहीं मिला तो मैंने ख़ुद उन्हें एक शुक्रिया का सन्देश लिखा  कि यह मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत फर्स्ट डेट थाउनका जवाब फॉर्मल था और उन्होंने भविष्य के लिए मुझे शुभकामनाएँ दी

फिर भी कुछ तो है उनके बारे में जो मैं बयां नहीं कर सकती पर था बेहद आकर्षकशायद वह प्यार है जिसकी गहराई नहीं मापी जा सकती, जिसे तोड़ा नहीं जा सकताहम एक दूसरे के स्टेट्स पर अब भी मेसेज भेजते हैं और मैं अब भी उम्मीद में हूँ कि वो मुझे सन्देश भेजेंगे कि वो मुझसे शादी करना चाहते हैंसपने के सच होने की यह संभावना जो है न, वही ज़िन्दगी को मज़ेदार बनाये रखती है.  

लव मैटर्स के सहयोग से राइजिंग फ्लेम प्रेम, अंतरंगता, रिश्तों और अक्षमता पर निबंधों की एक श्रृंखला ला रहा है। ‘दिल-विल, प्यार-व्यार’ अक्षम महिलाओं की आवाज़ को आगे बढ़ाने का एक प्रयास है। कुछ ऐसे कहानियाँ जो शायद ही मुख्यधारा में प्यार पर होने वाली चर्चाओं में शामिल की जाती है। फरवरी में हम डिसेबल्ड महिलाओं द्वारा लिखित चार कहानियाँ प्रकाशित करेंगे, जिससे हमें उनके जीवन में झांककर उनके सपने और प्यार की संभावनाओं की उम्मीद देखने को मिलेगी।

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