होली ने दिया मुझे मेरा पहला प्यार
मुझे होली अपने परिवार के साथ मनाना पसंद था लेकिन उस साल ट्रेन की टिकट ना मिल पाने की वजह से मैंने होली एक दोस्त के घर पर मनाई थीI हम सभी दोस्तों की कद-काठी एक समान हैI हम सब एक साथ खेल रहे थे जब मेरी दोस्त के कुछ और दोस्त वहां आ गएI चूंकि मैं उनमें से किसी को भी नहीं जानती थी इसलिए मैं अपनी दोस्त की माँ की मदद करने किचन के अंदर चली गयीI
जैसे ही मैं ट्रे लेकर किचन से बाहर निकली किसी ने मुझे पीछे से जकड़ लिया और चमकदार सितारों वाली बोतल मेरे सर पर खाली करते हुए कहा, 'हैप्पी होली चुनमुन'I उसी समय मेरी दोस्त छत से नीचे उतरी और मुझे नहीं लगता कि मेरे साथ जो हुआ वो उसने देखा था, क्यूंकि वो अपने हाथों में रंग लिए ज़ोर से 'रोहित' चिल्लाते हुए हमारी तरफ़ भागीI
तब जाकर रोहित को एहसास हुआ कि उसने जिसकी कोली भरकर होली की मुबारकबाद दी थी वो उसकी दोस्त चुनमुन नहीं, मैं थीI वो इसके लिए बहुत शर्मिन्दा हुआ और मुझसे माफ़ी भी माँगीI मुझे वो बहुत प्यारा लगा था तो मैंने कह दिया कि उसे इस बारे में चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं हैI हम पूरी शाम रंगो के साथ खेलते रहे और उस होली का अंत भांग के साथ हुआI मेरे लिए वो अब तक की सबसे यादगार होली थी क्यूंकि ना सिर्फ़ उस दिन बहुत मज़ा आया था बल्कि मुझे मेरा प्यार, रोहित भी मिला था जो आज मेरा मंगेतर हैI
*नीलू, 27, आई टी प्रोफेशनल
अंडे का फंडा
मुझे होली बिलकुल पसंद नहीं हैI या यूँ कहूं कि मैं होली से डरती हूँ, ज़्यादा सही होगाI इसीलिए मैं होली वाले दिन अपने आपको कमरे बंद कर पूरे दिन घर पर ही रहती हूँI पिछली होली भी इससे कुछ अलग नहीं थीI दोपहर में जब मैं अपने कमरे से बाहर निकली तो मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि घर पर मेरा पसंदीदा चचेरा भाई, मेरी माँ और पिता के अलावा कोई नहीं थाI भगवान् का शुक्र मनाकर मैं गुजिया खाने बैठी और अपने भाई को ठंडा पानी लाने के लिए भेज दियाI
मैं अभी अपनी माँ को बता ही रही थी कि मुझे खुशी है कि होली खत्म हो गयी कि मुझे अपने सर पर किसी गिलगिली चीज़ का एहसास हुआI मेरे 'पसंदीदा' भाई ने मेरे सर पर कच्चा अंडा फोड़ दिया था और यह देखकर मेरी माँ की हंसी रोके नहीं रुक रही थीI मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए और मेरा भाई कह रहा था 'बुरा ना मानो होली है, बहना!' इतना तो बनता है, कल से तेरी सब बातें सुनूंगा! '
*लीला, 30, फाइनेंस एनालिस्ट
घटिया सोच अच्छा निशाना
पिछले साल मैं अपनी नौकरी मैं इतनी व्यस्त हो गयी कि यह बात भूल ही गयी कि होली पर लाजपत नगर में क्या होता हैI मुझे अपनी दोस्त के घर से स्पीकर लाना था जिसके लिए मैंने मूलचंद से जामिया नगर तक एक ऑटो लिया था।
अमर कालोनी आते-आते हमारे ऑटो पर इतने गुब्बारे पड़ चुके थे कि अंदर गंगा-जमुना-सरस्वती बह रही थीI यह सब देखकर मुझे बड़ा अच्छा महसूस हो रहा थाI मुझे याद आ गया था कि त्यौहार का माहौल है और ऐसे में काम-वाम के चक्कर में मुझे इसे नहीं भूलना चाहिएI बस तभी मेरे बगल से एक बाइक गुज़री और बाइक सवार ने मुझे गुब्बारा देकर मारा जो ठीक मेरे दोनों पैरों के बीचोबीच आकर लगा थाI एक झटके में ही होली को लेकर मेरे मन में जो हर्षोउल्लास पनपना शुरू हो रहा था, वो ख़त्म हो चुका थाI मेरे लिए यह अनुभव इतना कटु है कि उस दिन के बाद से मैंने लाजपत/अमर कालोनी जाना ही छोड़ दिया हैI
*ऋचा, 29, फोटोग्राफर
डाँटू या छोड़ दूँ
मैंने पिछले 7-8 सालों से होली पर अपने घर से बाहर कदम तक नहीं रखा हैI मुझे रंगो के साथ खेलने का कोइ शौक नहीं हैI मुझे लगता है कि मुझे रंगों से एलर्जी है क्योंकि रंगो का स्पर्श होते ही मेरे गालों पर खुजली शुरू हो जाती हैI फ़िर मुझे पानी ऐसे बर्बाद करना भी पसंद नहीं हैI इसके अलावा, मुझे लगता है कि यह एक असभ्य उत्सव है क्योंकि कोई भी कभी भी आप पर गुब्ब्बरो और रंगो की बौछार कर सकता है, चाहे आप उसे जानते हैं या नहींI मेरे ख्याल से यह उचित नहीं हैI पिछले साल, होली से कुछ दिन पहले, मुझे अपने घर की छत से एक बच्चे ने पानी का गुब्बारा खींच कर माराI उसके घर जाकर मैंने एक महिला को डांटना शुरू कर दिया क्यूंकि मुझे लगा कि वो उस बच्चे की माँ हैI माफ़ी मांगने की बजाय उस औरत ने उलटा मुझ पर ही चिल्लाना शुरू कर दियाI।
उस औरत ने बहुत ही गंदी तरह से मुझे चिल्लाते हुए बताया कि 'उसके कोई बच्चे नहीं है'I मैंने भी हिम्मत नहीं हारी और ऊपर जाकर एक और औरत को डांटना शुरू कर दियाI उस महिला ने कहा कि उसके बच्चे होली नहीं खेल रहे थे, लेकिन उसने मुझे वो घर दिखा दिया जहाँ वो शैतान बच्चे खेल रहे थेI वहां पहुँची तो मुझे शरारती बच्चों का एक पूरा झुण्ड नज़र आयाI वे सभी बहुत प्यारे थे और मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि उन्हें कुछ भी कह पाऊंI उन्होंने भी कहा कि वो 'बहुत सॉरी हैं'I मैं उन्हें बिना कुछ कहे और उनके बालों पर हाथ फिरा कर वापस मुड़ गयी लेकिन अभी मैं दरवाज़े तक ही पहुँची थी कि एक गुब्बारा ज़ोर से आकर मेरी कमर पर लगाI गुस्से में पलटी तो वही बच्चे मुस्कुराकर कह रहे थे 'हैप्पी होली दीदी!'
*मुदिता 23, मीडिया प्रोफेशनल
*नाम बदल दिए गए हैं
तस्वीर के लिए मॉडल का इस्तेमाल हुआ है, यह लेख पहली बार 27 फरवरी, 2018 को प्रकाशित हुआ था।
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