24 साल की वनीता सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित एक लेखिका हैं। वह दिल्ली में रहती हैं।
मेरा खुशी की जगह
जब मैं स्कूल में थी उसी समय हमें घर बदलना पड़ा। कई सालों तक घर ढूंढने के बाद आखिरकार मेरे परिवार को एक बेहतर घर मिल ही गया। यहां रहने में हमें सिर्फ एक ही परेशानी थी कि इस घर से मेरा स्कूल बहुत दूर था।
विकलांग होने के कारण मैं अपनी ज़िंदगी में पढ़ाई के महत्व को जानती थी। इसलिए मैं किसी भी कीमत पर शिक्षित होना चाहती थी। मेरे माता-पिता भी यही चाहते थे लेकिन स्कूल आने जाने की समस्या एक मुसीबत थी।
कई महीनों तक वैन ढूंढने के बाद, मेरे माता-पिता को आखिरकार एक ऐसा ड्राइवर मिल ही गया, जो वैन में चढ़ाने और उतारने में मेरी मदद करने के लिए तैयार था। हम बहुत खुश थे क्योंकि मैं अब हर दिन स्कूल जा सकती थी।
वैन में आमतौर पर बहुत भीड़ होती थी लेकिन मुझे लोगों से बातचीत करना अच्छा लगता था। कुछ दिनों के भीतर ही कई लोग मेरे अच्छे दोस्त बन गए। स्कूल जाते समय हम सभी गाते और अपने मन की बातें करते थे। धीरे-धीरे वह वैन मेरे लिए एक ऐसी जगह बन गई जहां मुझे बहुत खुशी मिलती थी।
हैरत और आहत
एक सुबह वैन से नीचे उतरने में ड्राइवर मेरी मदद कर रहा था। अचानक मुझे लगा कि उसके हाथ मेरे स्तनों पर हैं। पहले तो मुझे समझ नहीं आया लेकिन धीरे-धीरे एहसास हुआ, वह मेरे स्तन को दबा रहा था। मैं हिल नहीं सकी और चुपचाप उतर गई। मैंने खुद को तब तक रोके रखा जब तक कि उसने मुझे व्हीलचेयर में बिठा नहीं दिया।
उस दिन स्कूल में पढ़ाई में मेरा मन ही नहीं लग रहा था और मैं इसी घटना के बारे में सोचती रही। मेरे स्तनों में अभी भी दर्द हो रहा था।
यह घटना मेरे दिमाग से निकल ही नहीं पा रही थी। मेरा दिमाग कह रहा था कि मुझे किसी न किसी को इसके बारे में बताना चाहिए, लेकिन मेरा दिल मुझसे कह रहा था कि अगर मैंने किसी को बताया, तो मैं फिर कभी स्कूल नहीं जा पाउंगी। मेरे माता-पिता को लगेगा कि स्कूल जाना मेरे लिए सुरक्षित नहीं है।
हालांकि मुझे उसी वैन में घर लौटने में भी डर लग रहा था। मैं सच में इस बात को अपने दिमाग से बाहर निकालना चाहती थी, लेकिन मैं यह बात किसी को नहीं बता सकती थी। वह घटना बार-बार मेरे आंखों के सामने घूम रही थी।
तभी, वैन में मेरे अच्छे दोस्त रहे आयुष ने मुझे रोते हुए देख लिया। उसने मुझसे पूछा कि क्या हुआ? मेरे पास उसे इस घटना के बारे में बताने के अलावा कोई और चारा नहीं था।
बस और नहीं
आयुष ने मेरी बात सुनी और मुझे शांत किया। उसने मुझे गले लगाया और मुझसे कहा कि वह ऐसा दोबारा नहीं होने देगा। तुम क्या करोगे, मैंने उससे पूछा। उसने कहा तुम चिंता मत करो।
मैं यह सोचकर परेशान होने लगी कि कहीं वो ड्राइवर से जाकर ना कुछ कह दे। मैंने उनसे निवेदन किया कि वह इस बारे में किसी से बात न करें।
स्कूल खत्म होने के बाद आयुष ने मुझे वैन में चढ़ाने में मदद की और यहाँ तक कि घर पहुँचने पर वैन से उतारकर व्हीलचेयर में बिठाने में भी मदद की। उसने मुझसे कहा कि अब से सिर्फ वो ही मुझे वैन के अंदर और बाहर उतरने चढ़ने में मदद करेगा।
यहां तक कि जब वह एक दिन की छुट्टी लेता था, तो वह हमारे अन्य दोस्तों में से किसी को मेरी मदद करने के लिए कहता था। उस दिन के बाद आयुष ने मुझे ड्राइवर के साथ अकेले कभी नहीं जाने दिया।
मैंने ड्राइवर से लड़ाई नहीं की और न ही उसके खिलाफ़ शिकायत दर्ज़ कराई। मुझे लगता है कि हम में से बहुत से लोग किसी कारण से चुप रहते हैं। मेरा अपना कारण था। मैं स्कूल जाना बंद नहीं करना चाहती थी। लेकिन मुझे एक रास्ता मिल गया था और मैं सच में इसके लिए आभारी थी।
वनिता की ये कहानी लव मैटर्स इंडिया के #It’sTimeToAct कैंपेन का हिस्सा हैं. इस कैंपेन का मकसद महिलाओं पर होने वाली हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता बढ़ाना और ऐसी हिंसा या उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं की लड़ाई की कहानियों को सामने लाना है।
पहचान की रक्षा के लिए, तस्वीर में व्यक्ति एक मॉडल है और नाम बदल दिए गए हैं।
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लेखिका के बारे में: विनयना खुराना दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.फिल कर रही हैं। उनको सेरेब्रल पाल्सी लेकिन यह उनकी पहचान नहीं है। वह एक लेखिका, कवि और हास्य कलाकार हैं। वह फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और लिंक्डइन पर भी हैं।