गर्भपात अथवा चिकित्सकीय रूप से गर्भावस्था की समाप्ति एक संवेदनशील मुद्दा है क्योंकि इस सम्बन्ध में लोगों के परस्पर विरोधी विचार हैं। दुर्भाग्यवश, इस सम्बन्ध में संचार माध्यमों ( मीडिया) का अवैज्ञानिक और गलत व्याख्या पर आधारित विवरण प्रायः इस समस्या को बढ़ा देता है, जिससे यह कार्य (गर्भपात) अनैतिक और अवांछनीय प्रतीत होता है।
सुरक्षित और क़ानूनी गर्भपात की सुलभता के लिए मनाए जाने वाले वैश्विक दिवस (28 सितम्बर) के अवसर पर लव मैटर्स आपके लिए उन शब्दों और शब्दावलियों की एक आसान गाइड लेकर आया है, जिनका प्रयोग गर्भपात के बारे में बात करते हुए ना किया जाए तो बेहतर होगाI इसके साथ ही इन शब्दों के विकल्प भी दिए गए हैं।
रिपोर्टिंग की प्रकृति में बदलाव इससे (गर्भपात से) जुड़ी हुई शर्म और अनैतिकता से मुक्ति दिलाएगा जिससे लाखों महिलाओं को अपने शरीर पर स्वयं का नियंत्रण स्थापित करने और अपने निर्णय स्वयं लेने में सहायता मिलेगी।
किसी भी गर्भवती महिला के लिए यह आवश्यक नहीं कि वह पहले से बच्चों की मां हो। माँ होने के लिए किसी अन्य व्यक्ति अर्थात बच्चे से रिश्ता होना चाहिए। महिला के गर्भ में विकसित हो रहे भ्रूण से, 'बच्चे और मां' का रिश्ता तभी बनेगा जब प्रसव के बाद एक नए मानव का जन्म हो। अतः वास्तव में 'गर्भवती मां' शब्द का कोई अर्थ नहीं होता।
भ्रूण तब तक बच्चा नहीं है जब तक कि इसने गर्भवती महिला के गर्भ के बाहर एक स्वतन्त्र व्यक्तित्व को ना प्राप्त कर लिया होI इसलिए इसे बच्चा नहीं कहा जा सकता। 'अजन्मा बच्चा' नामक शब्द अर्थहीन है। हम प्रायः 'अजन्मे बच्चे का गर्भपात' नामक शब्द सुनते और पढ़ते हैं, जो सर्वथा अनुचित है। भ्रूण को तब तक बच्चा नहीं कहा जा सकता जब तक इसने गर्भ के बाहर एक नए व्यक्ति का अस्तित्व स्वयं ना धारण कर लिया हो। इस सम्बन्ध में गर्भावस्था अथवा भ्रूण सही शब्दावली है।
गर्भावस्था की समाप्ति गर्भपात को बताने का एक दूसरा तरीका है। लेकिन 'बच्चा गिराना' नामक शब्दावली का प्रयोग गलत और अनुचित है और इस शब्दावली से सुनने और पढ़ने वालों के मन में एक गलत छवि बनती है।
कभी-कभी गर्भवती महिला अथवा उसके रिश्तेदार होने वाले बच्चे की लैंगिकता जानने के लिए परीक्षण करवाते हैं (यह कार्य भारत में गैर कानूनी है)। यह परीक्षण भ्रूण के विकसित होने के तरीके पर आधारित होता है। ऐसे परीक्षण प्रायः गर्भावस्था को उस परिस्थिति में समाप्त करवाने के लिए करवाये जाते हैं जब भ्रूण पुरुष लैंगिकता का न हो। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि भारतीय उपमहाद्वीप की कई संस्कृतियों में पुत्र को वरीयता दी जाती है। इस चलन को लिंग आधारित गर्भपात कहा जाता है जहां गर्भावस्था को समाप्त करवाने का कारण बच्चे की वह लैंगिकता है, जो उसे गर्भावस्था के पूर्ण होने पर उसके जन्म लेने के बाद मिलती।
हालांकि कभी कभी इस तरह के गर्भपात को भ्रूण हत्या कहा जाता है। भ्रूणहत्या नामक शब्द पूरी तरह गलत है। फोएटिसाइड (अर्थात गर्भपात) में 'साइड' लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता 'हत्या करने का काम’'। यह प्रयोग गलत है क्योंकि किसी की हत्या करने के लिए उस व्यक्ति का जीवित होना और उसके स्वयं का अस्तित्व होना आवश्यक है। जन्म के बाद ही 'जीवन' या 'जीवित होना' सम्भव है। और इस हिसाब से 'जीवित होना' भ्रूण पर लागू नहीं होता।
गर्भनिरोधक उपायों जैसे यौन सहभागियों (सेक्शुअल पार्टनर्स) को गर्भनिरोधक साधनों के सही इस्तेमाल के बारे में जानकारी तथा गर्भनिरोधक साधनों की सुलभता में सुधार आदि के द्वारा अनपेक्षित गर्भधारण से बचा जा सकता है।
हालांकि, यदि अनपेक्षित गर्भधारण हुआ तो गर्भपात से बचाव सम्भव नहीं है। गर्भपात से बचाव का मतलब सिर्फ यह हो सकता है कि गर्भपात करवाने की इच्छा रखने वाली महिला को यह चिकित्सकीय सुविधा देने से इनकार कर दिया जाए। अतः अनपेक्षित गर्भधारण से बचाव ही सही शब्दावली है।
यद्यपि एक से ज़्यादा बार गर्भपात करवाने की सलाह नहीं दी जाती क्योंकि इससे महिला का स्वास्थ्य प्रभावित होता है, फिर भी महिला एक से अधिक बार अनपेक्षित रूप से गर्भवती हो सकती है इसके कई कारण हो सकते है- जैसे गर्भनिरोकों की अनुपलब्धता, गर्भनिरोकों की विफलता, गर्भनिरोक उपायों के बारे में अपर्याप्त जानकारी, प्रजनन सम्बन्धी स्वास्थ्य के बारे निर्णय लेने का अभाव आदि। और उसे अपने जीवन में एक से अधिक बार गर्भपात करवाना पड़ सकता है।
इस परिस्थिति में 'गर्भपात की पुनरावृत्ति' की अपेक्षा 'एक से अधिक बार गर्भपात' शब्द का प्रयोग करना चाहिए। 'पुनरावृत्ति' शब्द तार्किक रूप से गलत प्रतीत होता है क्योंकि इस शब्द से नकारात्मक अर्थ भी निकलता है जो गर्भवती महिला को गैरजिम्मेदार होने और बार-बार गर्भपात करवाने के लिए दोष देता है।
गर्भपात के संदर्भ में अधिकारों और नैतिकता की चर्चा, गर्भवती महिला के अधिकारों, स्वास्थ्य और भलाई के परिप्रेक्ष्य में होनी चाहिए। वह (महिला) एकमात्र व्यक्ति है जिसका मानवाधिकार गर्भपात के दौरान अस्तित्व में है और उस मानवाधिकार को सम्मान दिया चाहिए । भ्रूण का कोई व्यक्तित्व नहीं होता अर्थात भ्रूण को तब तक व्यक्ति नहीं कहा जा सकता जब तक वह गर्भ के बाहर एक मानव के रूप में पूर्ण विकसित और स्वतंत्र रूप से क्रियाशील न हो।
ये शब्द सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं और गर्भपात सम्बन्धी वैचारिक दृष्टिकोण में इनका व्यापक स्तर पर दुरुपयोग होता है। एक वे लोग हैं जो सोचते हैं कि गर्भपात करवाने का विकल्प होना चाहिए और एक वे लोग हैं जो सोचते हैं कि किसी भी परिस्थिति में गर्भपात करवाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। पहली तरह के लोगों को चयन समर्थक (अथवा सुरक्षित गर्भपात के समर्थक अथवा गर्भपात सम्बन्धी अधिकारों के समर्थक) कहना चाहिए और दूसरी तरह के लोगों को चयन विरोधी (अथवा गर्भपात विरोधी) कहना चाहिए।
हालांकि प्रायः जो लोग गर्भपात का विरोध करते हैं उन्हें जीवन समर्थक कहा जाता है। इससे यह गलत आशय निकलता है कि जो लोग (सुरक्षित गर्भपात के समर्थक अथवा गर्भपात सम्बन्धी अधिकारों के समर्थक) गर्भपात करवाने के विकल्प का समर्थन करते हैं, वे लोग जीवन विरोधी हैं। लेकिन यह सच नहीं है। ये लोग जीवन के अधिकार, भलाई और गर्भवती महिला की पसन्द का पूरा समर्थन करते हैं, अर्थात वे लोग महिला के इस अधिकार का समर्थन करते हैं कि अनपेक्षित गर्भावस्था के दौरान महिला को अपनी पसन्द के मुताबिक फैसला करने का अधिकार होना चाहिए। अर्थात वे लोग चयन समर्थक और उसके (महिला के) जीवन और भलाई के समर्थक हैं। जहां भी ये विवरण किसी भी तरह अनुचित जान पड़े वहां इन्हें छोड़ देना ही सबसे अच्छा है ताकि इस पर निर्णय महिला करे।
गर्भपात हमेशा दुखद विकल्प नहीं होता है और इसलिए ऐसी छवियों का इस्तेमाल भी नहीं होना चाहिएI अक्सर गर्भपात पर लिखते समय संपादक अवसादग्रस्त या उदास चेहरे वाले भ्रूण, शिशुओं या महिलाओं की छवियों का उपयोग करते हैं। इस तरह की छवियां से इस बात की पुष्टि हो जाएगी कि शर्म, कलंक और अपराध जैसे शब्द हमेशा गर्भपात से जुड़े रहेI एक तस्वीर हजारों शब्दों की तरह है और अगर यह एक ऐसे लेख के साथ इस्तेमाल की गयीं जो कि एक प्रगतिशील दृष्टिकोण प्रदर्शित कर रहा हो तो पाठक के ऊपर उतना उस लेख के सकारात्मक शब्दों से ज़्यादा उसके साथ इस्तेमाल की गयीं नकारत्मक और दुखद छवियों का प्रभाव ज़्यादा पड़ेगाI
इसलिए यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि उन चित्रों का उपयोग किया जाये जो कहानी की मनोदशा, भावना और सार का सटीक रूप से प्रदर्शन करेंI एक साहसी और आत्मविश्वास से भरपूर महिला की कहानी (जिसने खुद प्रजनन सम्बन्धी निर्णय लिया है), वास्तव में हमारे समाज में गर्भपात से जुड़ी गहरी नकारात्मकता का जड़ से उन्मूलन करने में बेहद सहायक सिद्ध हो सकती हैI